Monday, April 18, 2022

भावनामे भसिआइत आ' सम्हरैत मनमहोन झाक सुकेशी



आधुनिक मैथिली साहित्यमे श्री मनमोहन झा एक विशिष्ट कथाकारक रूपमे प्रतिष्ठित छथि । दीर्घ लेखन-जीवनमे हुनका अभिज्ञता प्राप्त भेलनि जकरा ओ अपन साहित्य साधनामे नियोजित कएलनि । हिनक कथाक पृष्ठभूमि पूर्णतः सामाजिक रहैत अछि । बुझि पडैत अछि लेखक मुख्यतः समाजहिसँ अपन कथाक प्रेरणा पबैत छथि । वास्तवमे आधुनिक गल्पकलाक प्रधान लीलाभूमि समाजेक धरातल पर अधिष्ठित छैक । समाजमे अति निम्न वर्ग अथवा मध्यम वर्गक लोक लेखकक कल्पनाक विषय होइत अछि । . कथाक उद्देश्य होइत अछि मानव जीवनक विभिन्न परिस्थिति ओ मानव मनक विशिष्ट रहस्यक उद्घाटन करब, जाहिसँ जीवनक व्याख्या होअए । जीवनमे उषा आ संध्या, मिलन आ विरह सदृश सुखक संग दुःख अनिवार्य होइत अछि । मनमोहन झाक कथा सब एहि शाश्वत सत्यके सहज रूपें उपस्थापित करैत अछि । हिनक रुना, झगड़ा, चन्द्रहार आदि कथा दुःखान्त अछि । मुदा वीरभोग्या, सुकेशी, ईर्ष्या, सप्तपदी बलिदानक एक मर्मस्पर्शी कथा थिक ।

मनमोहन झाक प्रसिद्ध कथा 'सुकेशी' एक नारीक जीवनक कथा थिक । झाजीक अधिक कथाक केन्द्रमे नारी-चरित्रक प्राधान्य अछि । सौन्दर्य ओ प्रेमक चित्रणक लेल नारी चरित्रक निरूपण अनिवार्य अछि । सुकेशी कथा पत्र-शैलीमे अछि, जकरा सुकेशी अपन प्राणप्रिय सखी प्रभाकै लिखने छथि । हुनक केशसँ मोहित भएके रमेश प्रेम निवेदन करैत छथि । सुकेशीके देखि हुनक अधिक काल एकटा प्रश्न होनि, “सुकेशी, अहाँ खोपा किएक ने बन्हैत छी ?" सुकेशीक उत्तर, "खोपा हम किएक बान्हब । कुमारि कन्या तँ अधिक काल केश खोलनहि रहैत अछि ।" तखन रमेश कहथिन, "अहाँ शीघ्र विवाह कए लिअ, नहि तँ एहि केशक ससरफानीमे हम मरि जाएब ।" एहि प्रकारे

ओ परोक्षमे अपन प्रेम निवेदन करैत छथि । मुदा एक गामक होएबाक कारणे दुनू गोटाक मिलन नहि भेलनि । हमरा लगैत अछि एतए लेखक सामाजिक परम्परामे जकड़ल छथि । हुनका अनुसार एक गामक रहनिहार सम्बन्धमे भाइ-बहिन होइत अछि । मुदा एक नारी जीवनक प्रथम प्रेमके कखनो बिसरि नहि सकैत छथि । सुकेशी सेहो प्रेमी रमेश विवाहक बादो नहि बिसरैत छथि । हुनक हृदयमे रमेशक लेल स्थान सुरक्षित छनि । रमेशक प्रति एकटा भावनात्मक लगाओ, जे कुमारिमे भेलनि, अक्षुण्ण छनि । झाजी सुकेशी कथामे नारी मनक अनेक भावावेग नीक जकाँ सूक्ष्मतासँ वर्णन कएने छथि । सुकेशीक सफल दाम्पत्य जीवनमे एकटा समस्या छनि पतिक अनुपस्थिति । हुनक पतिक बदली भए गेल छलनि । अधिक काल ओ डेरासँ दूर रहैत छलाह । सुकेशी अपन नि:संगता व्यक्त कए प्रभाकें लिखैत छथि, "एकसर रहैत छी तखन कोनादन लगैत अछि । दिन तँ कोनहुना काटिओ लैत छी किन्तु राति तँ एतुका पहाड़ भए जाइत अछि ।" विवाहक बाद पति-पत्नीक मध्य दूरी भेलासँ एक पत्नीक मनमे अनेक तरहक अनुराग एवं विराग उत्पन्न होइत छैक । सुकेशीक लग हुनक पाँच वर्षक कन्या रीताक अतिरिक्त आर केओ नहि छलनि जकरा संग ओ एकसर जीवनके बाँटि सकथि ।

कथामे पम्पा नामक चरित्र मध्य कथाकार समाजक एक नकारात्मक प्रथाकै उजागर कएलनि अछि । पम्पा एक वारांगना थिक । ककरो दिस कटाक्ष कए, ककरोसँ हँसी कए, ककरो नाक ऐंठि ओ परपुरुषकै आकर्षित करैत सकेशी सदिखन पम्पाकै खिड़कीसँ देखैत छथि । हुनक भरल-पुरल जीवनमे जेना कोनो अभाव खटकए लगैत मनके एक विचित्र भय आच्छन्न कए दैत छनि । पम्पा एवं सुकेशी समाजक दू स्तरके उपस्थापित करैत छैक । निम्नवर्गीय बाजारू वारांगना, तँ दोसर एक साधारण गृहिणी, गृहलक्ष्मी, एक जननी; जकर संसार पति आ बेटीमे सीमित छैक । एक दिन अचानक पुरान प्रेमी रमेशकै सोझाँ देखि सुकेशीक मनमे अनेक तरहक भावना उठए लगैत छनि । पहिल भावना छल गौरवक । अपन रूप पर हुनका घमण्ड भेलनि । ई स्वाभाविक थिक । हुनक सुन्दर रूपक कारणे रमेश अपन प्रेमिकाकै एतेक वर्ष धरि नहि बिसरि सकल छथि । सुकेशी आसक्तिवश रमेशक भावनामे प्रवेश कएलनि । रमेशक चिर-कुमार रहबाक कारणे सुकेशी मनहि मन प्रसन्न भेलीह । ओ भावना विभोर भए उठलीह । सुकेशी बिसरि गेलीह जे ओ एक व्यक्तिक पत्नी छथि । सीमित परिधिसँ यदि आगाँ डेग बढ़ओतीह तँ कुलक मर्यादा भंग होएत । रमेश हुनक केश पर अपन हाथक स्पर्श करए लगलाह आ सोचए लगलाह जे सुकेशीक आत्मामे एखन धरि हुनक स्थान सुरक्षित छनि ।

सकेशीक मन तन्द्राग्रस्त छलनि । हुनक मनमे एक विचित्र भाव उठि रहल छलनि । प्रेमीक संग अभिसारक अभिप्राय मनमे छलनि । एक विवाहिता स्त्रीक परपुरुषक आकर्षण हुनका लेल पाप छलनि । सुकेशीक मन बाजारु वारागंना पम्पाक सन भए गेल छलनि । मुदा पाँच वर्षक बेटीक प्रश्न, "माए पम्पा तो चिन्हैत छही ? .......ओकरा तोरे सन केश छैक आ जहिना रमेश मामा तोहर केशर्के छुबैत छलथुन्ह तहिना होटलबला ओकरो केशके छुबैत रहैत छैक" । सुकेशी आसक्तिकै क्षणमे दूर कए देलनि । हुनक पातिव्रत्य एकाएक जागि उठल । मनक आकाशके जे मोहक कुहेस आच्छन्न कएने छल, बेटीक एके शब्दक आलोकसँ छिन्न-भिन्न भए गेल । रमेश एक कामासक्त व्यक्ति अछि । समाजमे एहि तरहक लोक बहुतो भेटैत अछि । प्रेम शाश्वत एवं चिरन्तन होइत अछि । किन्तु रमेश यथार्थमे प्रेमी नहि छथि । सुकेशीक आत्मासँ अधिक ओ हुनक शरीरके प्राथमिकता देने छथि । तकर प्रमाण अछि रमेश द्वारा अपन व्याकुलता ओ पराजयके शान्त करबाक लेल सुकेशीके पाषाणीक उपाधि देब ।

कथाक शेष भाग बहुत मार्मिक अछि । जाहि केशकै रमेशक लोलुप हाथ स्पर्श कएने छल तकरा सुकेशी काटिके फेकि देलनि । एहिठाम लेखकक तात्पर्य हमरा बुझबा योग्य नहि भेल । सुकेशीक आत्मा निर्मल ओ पवित्र छलनि । भए सकैत अछि सुकेशी अपन गलतीक प्रायश्चित करबाक प्रयास कएलनि । सुकेशी अपन स्वामीक प्रति समर्पिता छथि । आन केओ स्त्री होइत तँ एहि घटनाक चर्चा पतिक समक्ष करबाक साहस नहि करैत, मुदा सुकेशीक हृदय साफ आ पवित्र छनि तें ओ एहि घटनाक सम्पूर्ण विवरण अपन पतिक सोझाँ कहबाक क्षमता रखैत छथि । हुनका विश्वास छनि जे हुनक पति हुनका स्वीकार करथिन आ हुनक प्रेमक बन्धन आओर मजगूत बनतनि ।

सुकेशी एक नारी मनक कथा थिक । कथाकार रमेश नामक चरित्रक माध्यमसँ सुकेशीक परीक्षा लैत छथि । भावनामे भसिआ कए सुकेशी किछु क्षणक लेल विचलित अवश्य होइत छथि । बुझि पडैत अछि विवेकक संग आसक्तिक लड़ाइ होइत अछि । भावनामे भसिआइत सुकेशी सम्हरैत छथि । अन्तमे विवेकक जीत होइत अछि ।

कथामे श्री मनमोहन झा नारीक लावण्य, आकर्षण, प्रेमाख्यान, समर्पण आदि विभिन्न रूपक वर्णन मध्य सर्वत्र नारीक आदर्शक उपस्थापन करबाक प्रयास करैत छथि । एहि कथाक नारी चरित्रमे समाजक सत्य उजागर भेल अछि। सुकेशीक चरित्रक सहज ओ मर्मस्पर्शी निरूपणमे कथाकारक विशिष्टता निहित अछि । कथाकार सकेशीक मनमे एक नव प्रभातक सूचना दैत छथि जाहिमे नव चेतना आ नव कर्मठताक रंग छैक । ओ सुकेशीसँ छिन्नकेशी भए गेली सदा मनमे अपराधबोधक भावना एको रत्ती नहि छनि, प्रायश्चित जे कए लेने छथि । पूर्व क्षितिजमे सूर्यक प्रकाश जेहन निर्मल ओ उज्ज्वल होइत अछि सुकेशीक मनमे तेहने पवित्र नारीत्वक सृष्टि भए रहल छनि ।



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