Sunday, April 17, 2022

विद्यापतिक परवर्ती रचनाकार पर प्रभाव



 

विद्यापति बहुमुखी प्रतिभा सम्‍पन्‍न व्‍यक्‍ति‍ छलाह । ओ कैकटा राजाक दरबारक शोभा बढ़ेलनि आ कैकटा पोथीक निर्माण केलनि । कतओक पदावलीसँ मैथिलीक समृद्ध केलीह । मुदा हुनक काव्‍य जतबे दरबारमे पसिन कैल गेल ततबे साधारण लोकमे ।

'दुर्भाभक्तितरंगिणी' महाराज भैरव सिंहक आज्ञा सं लिखल गेल छल । पदावली आदि ओ स्वयं लिखलनि । ओ राजा-रानीक संग रहितहुँ राज-दरबार धरि सीमित नहि रहलाह । हुनक काव्य आ लेख जतबे दरबार में पसिन कएल गेल ततबे साधारण लोक मे । ई हुनक प्रभावक कारण थिक जे मिथिला मे छओ सए वर्ष व्यतीत भेलाक पश्चातहु हुनक नचारी आ व्यावहारिक गीत, विवाह, द्विरागमन, उपनयन, मुण्डन प्रभूति संस्कार पर सभ शिक्षित आ अशिक्षित द्वारा गाओल जाइत अछि । हुनक गीतक प्रशंसा करैत जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन लिखैत छथि

"Even when the sum of Hindu religion is set, when belief and faith in Krishna and in that medicine of deases of existance the hymn of Krishna's love is extinct stilll the love bome for the songs of vidyapatti in which he tells of Krishna and Radha will never diminish.

अर्थात् हिन्दू धर्मक सूर्य अस्त भए: सकैत अछि, कृष्णक प्रति विश्वास उठि सकेत अछि, कृष्णक प्रेम गीत जे एहि भवसागरक रोगक औषधि थिक समाप्त भए सकैत अछि मुद्रा विद्यापतिक गीतक प्रति लोकक आस्था एवं प्रेम जाहिमे राधा-कृष्णक वर्णन अछि, कखनो कम नहि भए सकैत अछि । एहि प्रकारे हुनक गीत लोक एवं साहित्य संसारमे अपन एक पैघ स्थान बनाए लेलक । इएह कारण थिक जे ओ अपन प्रतिभा सँ मैथिली साहित्यके ओहिना प्रदीप्यमान करैत छथि जहिना शेक्सपियर आ मिल्‍टन इंगलिश लिटरेचर केँ, गालिय आ दाग उर्दू अदब के आओर सूर आ तुलसी हिन्दी साहित्य केँ । अपन प्रतिभाक कारण ओ मैथिली केर अनेको कवि लोकनि के प्रभावित कएलन्हि । कविकण्ठहार विद्यापतिक प्रभाव मिथिलाक संग-संग समस्त पूर्वांचल पर पड़ल । मिधिला मे हिनक पद चरवाहा सँ लए पैघ पैघ पण्डित ओ उद्भट विद्वान केँ मुग्ध कएलक । वयःसन्धि पर ठाढ़ि कामिती सँ लए जीवनक सांध्यवेला में बैसल बूढ लोक धरि‍ हिनक गीत गाबि आनन्दित होइत छथि । विद्यापति संस्कृतक अभेध गढ़ के तोड़ि जनभाषामे रचना कए सर्व-साधारणकेँ साहित्यिक अभिव्यक्तिक हेतु सरल-सुगम साधन उपलब्ध करओलनि । मिथिला मे हिनक रचनाक भाव, भाषा, शैली, छन्द आदि सभ वस्तुक अनुकरण पर विशाल गीत राशिक जनम भेल । हिनक प्रभाव एतेक बढ़ि गेल जे कविलोकनि 'पति' शब्दस युक्त नाम धारण कएलन्हि । यथा-उमापति, नन्दीपति, रमापति, कृष्णपति, श्रीपति, हरिपति, महिपति आदि । विद्यापतिक समकालीन ओ परवर्ती कवि-समुदाय क्रमशः भानुकवि, गजसिंह, विष्णुपुरी, यशोधर, लक्ष्मीनाथ हरिदास भगीरथ कवि, रमापति, नन्दीपति, हर्षनाथ आदि हिनक अनुकरण कएल । एहि मे सभ सँ बेसी प्रभाव महाकवि गोविंददास पर पड़लनि । ओ विद्यापति के अपन गुरू मानने छथि...

"विद्यापति पद युगल सरोरुह निस्यन्दित मकरनन्दे
तसु मझु मानस मातल मधुकर पिबइत करू अनुबन्धे ।"

स्फूट रूप से रचित गीत होअए किंवा नाटकमे प्रयुक्त गीत, सभ पर विद्यापतिक प्रभाव लक्षित होइत अछि । उमापतिक 'पारिजातहरण' नाटक में प्रयुक्त निम्न गीतके देखल जाए सकैत अछि

"कि कहब माधव तनिक विषेशे, अपनहु तनु धनि पाय कलेशे ।"

आजुक कविगण सेहो हिनक प्रभाव पड़ल अछि । आधुनिक युगक प्रवर्तक 'मिथिलाभाषा रामायण' क शिल्पी कवीश्वर चन्दा झा सेहो विद्यापति सँ बड़ प्रभावित रहलाह । ओ हुनक कृति 'पुरुष-परीक्षा' क मैथिली अनुवाद कएने रहथि । कविवर सीताराम झा हास्य-व्यंग्यक क्षेत्र में विद्यापति सँ बड़ प्रभावित छलाह । विद्यापति सँ प्रभावित भए काव्य-सृजनमे प्रवृत्त भेनिहार मे टटका नाम अबैत अछि- डॉ. इन्द्रकान्त झाक । ओ महाकवि विद्यापतिसँ प्रभावित भए 'पाहुन विलमि जाउ' नामक पद-संग्रह रचना कए हुनकहि कर-कमल सं नि:सृत केलनि ।

"सुअन पसंस्सई कव्व मझु, पुज्जन बोलइ मंद ।
अवसओं विषहर विस वमइ, अमिय विमुक्कई चंद ।"

एहि में कोनो अतिशयोक्ति नहि अछि जे मैथिलीक कवि लोकनि आइयो विद्यापति सँ प्रेरणा लैत छथि आओर भविष्यो मे लैत रहताह । विद्यापतिक पद

कवरी-भय चामरि गिरि कन्दर मुख भये चाँद अकासे,
हरिन नयन भय स्वर भय कोकिल गति भय गज राजे
तुअ भय इह सब दूरहि पराएल तहु पुनि काहि डरासि ।

डॉ० इन्द्रकान्त झाक पद

चान लजागेल छ हमरे आनन के देखला सं यो
भागि गेलै धरती सं आ समा गेलै गगनांचल मे यौ

विद्यापतिक प्रभाव मिथिले धरि सीमित नहि रहल । भाषा काव्यक आदर्श मानि ओ समस्त पूर्वांचल मे समादुत भेलाह । 'तिल तिल नूतन होय'क अनुराग सँ दीप्त ओ प्रवाहमान गेयत्वक लहरि सँ उच्छलित हिनक पद-समूह बंगाल, आसाम आ उडीसाक साहित्यिक रचनाकेँ प्रभावित कएलक । प्राचीन समयमे मिथिला दर्शनशास्त्रक, दार्शनिक विधाक केन्द्र छल जतए देशक विभिन्न भाग सँ विद्वान लोकनि आबि ज्ञानोपार्जन करैत छलाह । विद्यापतिक प्रभाव जे बंगाल मे एतक व्‍यापक भेल तकर कारण इएह दार्शनिक लोकनि छथि । बंगाली विद्वान लोकनि आबि ज्ञानोपार्जन मे सिद्धि प्राप्त कए अपन देश घूमि जाइत छलाह । जएबाकाल ओ लोकनि मस्तिष्क मे दर्शनक गूढ विषयक रहस्य एवं ठोर पर विद्यापतिक दुइ-चारि मधुर गीत लए जाइत छलाह । एहि प्रकारक परम्परा बहुत दिन धरि रहल आओर बंगाली विद्वानकेँ मैथिलीक ई गीत सभ बड़ प्रियगर लगैत रहलनि, फलतः एकरहि आधारपर ओ लोकनि रचना सेहो करए लगलाह जाहि सँ बंगालमे एकटा कृत्रिम भाषा- मैथिली एवं बंगला मिश्रित भाषा ब्रजबुलिक जन्म भेल । एही प्रसंग डॉ. सुभद्र झा अपन शोध-प्रबन्ध में लिखैत छथि

"Charmed at the sweetness of this language (Maithili), some of the Bengali poets went so far sa to compose verses in Maithili, which received the name of Brajbuti language in Medieval times".

बंगालमे ब्रजबुलि रचना आधुनिक युग धरि चलैत रहल । यथा-जनमेजय मित्र, बंकिमचन्द्र चटर्जी, रासकृष्ण राय ओ रवीन्द्रनाथ ठाकुर । श्री ठाकुर 'भानुसिंह' उपनामसं बीस गोंट पदक रचना कएलनि । तेँ आनन्द शंकर रायकर कथन "After Kalidas, Vidyapati seems to have most influnced Ravindra Nath Tagore, thesethree Indian Poets are in the same tradition though their languages differ". बड़ सटीक भेल अछि । रवीन्द्रनाथ ठाकुर कविकोकिलक गीतसं कतेक प्रभावित भेलाह ताहि प्रसंग स्वयं लिखने छथि

"His (Vidyapati's) poems and songs were on of the earlies delights that stirred my youthful imagination".

विद्यापतिक प्रभाव बंगालमे जे पडल ताहि प्रसंग ई उद्धरण द्रष्टव्य अछि

"Vidyapati's fame in Bengal, rested on two scores; first that he was probably an old Bengali classic and second that he was a great 'Vaisnava singar', Bankim and Tagore respected him in the first manner, Chaitanya and subsequent vaisnava in the second.

आसाममे वैष्णव साहित्यक अभ्युदय प्रकारान्तर सँ विद्यापतिक प्रभावक परिणाम थिक । आसामक प्रसिद्ध वैष्णव सन्त ओ समाज सुधारक शंकरदेव अपन तीर्थयात्रा-क्रममे अनुभव कएलनि जे वैष्णव धर्मकेँ व्यापक ओ प्रभावकारी बनएयामे विद्यापतिक गीतक चामत्कारिक भूमिका अछि । फेर ओ अपन धर्म-प्रचारक निमित्त ओकरहि अनुसरण कए काव्य-रचनामे प्रवृत्त भेलाह । एहि प्रयास मे मैथिली ओ असमियाक मिश्रण सँ भाषाक एकटा नव रूप गठित गेल । आरम्भ में तँ वैष्णव साहित्यक एहि नव वाक्सरणि के ब्रजावली कहल गेल मुदा आब साहित्यक इतिहास मे इहो ब्रजबुलिक नामसँ प्रचलित अछि । तथापि बंगाल ओ आसाम मे ई नाम सामान्य रहितहुँ परस्पर पर्याप्त अन्तर रखैत अछि । आसामक ब्रजबुलिमे विद्यापति ओ मैथिली साहित्यक जे अंशदान अछि ओहिमे बंगाल कोनो रूपमे माध्यम नहि रहल । आसाम मे एकर विकास विद्यापति एवं मैथिली काव्य-परम्परा सँ स्वतंत्रता सम्पर्कक परिणाम थिक ।

आसामक वैष्णव-साहित्यमे असमियाक अतिरिक्त ओकर विपुल अंश एही ब्रजबुलि मे अछि । एकरा असमिया साहित्‍यक मेरूदण्ड कहल जाइछ । एकरे द्वारे आम साहित्यमे रस-समृद्धि भेल । एहि ब्रजवुलिमे रचित साहित्यक दू गोट प्रकार अछि- 'वर गीत' ओ 'अंकीया नाट' । वैष्णव साधक लोकनिक मानसमधन स कौस्तुभमणि सदृश उद्भूत भए ई दूनू काव्यरूप जेना समस्त असमिया साहित्य के आलोकित कए देलक ।

एनाहिते उड़ीसाक आ नेपाल धरि विद्यापतिक लोकप्रि‍यता पसरल आ ओहिमे कतओक तरहक गीतक निर्माण भेल । उपरोक्‍त विवेचन सँ ई स्‍पष्‍ट भए जाइत अछि जे अमर गायक विद्यापतिक प्रभाव पूर्वीय आर्यावर्त्‍तक कोना प्रान्‍त आ भाषा पर नहि पड़ल ? अगर कही जे प्राय: सब पर तँ कोनो तरहक अतिशि‍योक्‍ति‍ नहि ।



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