Thursday, April 14, 2022

विद्यापतिक पदावली मे श्रृंगार भावना




महाकवि विद्यापति मुख्यतः श्रृंगार रसक कवि छथि । हुनका प्रेम आ सौन्दर्यक कवि आ जीवनक राग, रंग आ रसक गायक कहल जाइत छनि । हुनक श्रृंगारिक वर्णन पर दू प्रकार पूर्ववर्ती ग्रन्‍थक प्रभाव अछि- 1. शास्त्रीय ग्रन्थ 2. काव्य ग्रन्थ । शास्त्रीय ग्रन्थ मे छहटा सामुद्रिक कामशास्त्र आ काव्यशास्‍त्रक ग्रन्थ । कामशास्‍त्रक ग्रन्थमे काम सूत्र, रति रहस्य, अनंग रंग तथा नगर सर्वस्य । ई ग्रंथ विशेष सँ कामिनी लक्षण आ कन्या विश्रम्भण क उल्लेख करयवला अछि । काव्य ग्रंथ अनेक अछि । यथा-गीत गोविन्द, अमरूक शतक, गाहा सत्तसइ । विद्यापति स्वयं अपन रचनाक उद्देश्य प्रकट करैत कहैत छथिः

'रस सिंगार सरस कवि गाओल'

पुनश्च:

'सुरत रस रंग संसार सारा'

कीर्तिलतामे श्रृंगार रस के कवि सर्वश्रेष्ठ कहलनि अछि:

कवि मह नव जयदेव कवि
रसमह एहु सिंगार,
...तीनिजु त्रिभुवन सार । ।

तेँ तं श्रृंगार रस रसज्ञ कवि विद्यापति नीबि बंध खोलबाक आधारक श्रेय अपन आश्रय दाता आ नायककेँ देत छथि । एहन कामुक पुरुषकेँ चतुरा नायिका हाट-बाजारमे या बार चलैत अपन क्रीत दास बनाय लैत छलि । ऑखिक मटको पावि कय पुरुष अपनाके ओहि रमणी हाथै बेचि दैत छल । आ ई सौदा समाज में नुकाय कय नहि, समाजक लोकके गवाही राखि कय तय होइत छलैक । एहि भौतिक क्रय-विक्रयक एक चित्र देखः

बड़ कौशलि तुअ राधे । फिनल कन्हाइ लोचन आधे ।
प्रातुपति हटबइ नहि परमादी । मनमथ मधथ उचित मुलवादी । ।
द्विज पिक लेखक मसि मकरनन्दा । काँप भमर पद साखी चन्दा ।
बहि रति रंग लिखापन माने । श्री शिव सिंह सरस कवि भाने ।

वन, कथन अछि:- 'निवि बंध करल उदेस विद्यापतिक मनोरथ सेस ।' ओ श्रृंगार रसक आ विप्रलम्भ दूनू प्रकारक वर्णन कयने छथि । हुनक श्रृंगार रसक अन्तर्गत वय सन्धि, नख-शिख, सधःस्नाता, दूती, नोक-झोंक, सखी, मिलन, सखीशिक्षा, सखी-संभाषण, कौतुक, अभिसार, छलना, मान, मानभंग, विदग्ध विलास, विरह- भावोललास, वसन्त आदि अबैत अछि ।

विद्यापति राधा-कृष्णक प्रेम-लीलाक वर्णन करबाक हेतु श्रृंगार रस का माध्यम बनौने छथि । ओ सौन्दर्यक वाह्य आ आभ्यान्तर दूनू रूपक वर्णन केलनि अछि । हुनका द्वारा वाह्म सौन्दर्य-वर्णनक अन्तर्गत विभिन्न अंगक वर्णन कयल गेल अछि । ओ आभ्यान्तर सौन्दर्यवर्णनक अन्तर्गत अपन मनोवैज्ञानिक ज्ञानक आधार पर नायिकाक मोन में उठयवला विभिन्न भावक उद्घाटन कयने छथि ।

नायिकाक बाह्य सौन्दर्य मे नख-शिख वर्णन, वेशभूषा, सुकुमारता, आकृति-प्रकृति आदिक वर्णन भेल अछि । नख-शिखक सम्बन्ध लौकिक आलम्बन से होइत छैक । विधापतिक सौन्दर्य वर्णनक सभसँ पैघ विशेषता थिक विम्‍ब । नायिकाक अनुपम रूप-भावक अवतारणा करैत ओ लिखैत छथि जे रूपसीक स्वाभाविक मुस्कुराहट प्रसन्न मुख-मण्डलक झांकी हृदयकेँ पुलकायमान करयबाला अछि । ओकर झलक मात्र सँ मुख-मदिराक तरल तरंग उठय लगैछ । आकाश आ पातालक दूरी पर रहयवाला चन्द्रमा आ कमल एक संग फुलाइत अछि आ दूनू एक भय जाइछः

सहज प्रसन मुख दरस हृदय सुख लाचन तरल तरंग ।
आकाश पाताल बस से जो कइसे भेल रस चाँद सरोरूह संग ।

एतय श्रृंगार रसक भावानुभाव, संचारी भावक अभिव्यक्ति करैत श्रृंगार रसक सजीव वर्णन भेल छैक । प्रत्येक शब्द रति-स्थायी भाव के उदीप्त करयवाला अछि । एक पद में कविक रूपकातिशयोक्ति अलंकारक आधार पर देखूः

पल्लवराज चरन-युग सोभित, गति गजराजक भाने
कनक कदलि पर सिंह समारल ता पर मेरू समाने

नारी सौंदर्यक केन्द्र बिन्दु उरोज अछि । उरोजक वर्णन मे विद्यापति सर्वप्रथम स्थान पर आसीन देखल जाइछ । यथा ---

1) पीन पयोधर दूबरिगता ।
मेरू डपजल कनकलता ।

2) कुच युग परसि चिकुर फुजि पसरल ता अरुझायल हारा ।
जनि सुमेरू ऊपरमिलिउगल चाँद बिहिन सय तारा ।

अस्तु विद्यापति काव्य में वर्णित उरोज नारी-सौन्दर्य, आसक्ति, भोग आ प्रेमक केन्द्र अछि । हुनक उरोज सम्बन्धी परिकल्पना श्रृंगारक उच्चतम सीमा स्पर्श करैछ ।

किशोर एवं यौवनक संधि बेला मे युवक युवतीक एक विलक्षण दशा भय जाइछ । युवतीक काया में अज्ञात रूप से अनंग प्रवेश कय उत्पात करय लगैत अछि । अंग-पप्रत्यंग मे काम भावनाक आगमन सँ शरीरक विभिन्न अंग में परिवर्तन होमय लगैछ । परिवर्त्ततक कारण रतिक प्रवेश अछि । अपनहि अंग के देखि आश्चर्यित भय जाइछ । कवि विद्यापति नायिकाक उरोज मे श्रृंगारक प्रवेश कराय नायिका के श्रृंगारिक बना दैत छथि ।

सैसव यौवन दुहु मिलि गेल
श्रवणक पथ दुहु लोचन लेल ।

काम प्रवेश सं वयः सन्धिक नायिकाक उरोज उपर बढ्य लगैछ । ओ अपन स्तनकेँ कखनहु देखैत अछि त क्षणहि झापि दैत छैक । ओकर परेशानी बढ़ि जाइछ । शरीरक एक अंग दोसर अंगकेँ अपन अधिकार मे लय लैत अछि:

मदनक भाष पहिल परचार,
भिन जन देल भिन्न अधिकार ।
कटिक गौरव पाओल नितम्ब,
एकक विकास अओक अवलम्ब ।
प्रकट हास अब गोपुत भेल,
उरज प्रगट अब तन्हिक लेल ।

विद्यापति अंजन अंजित सुन्दरीक आँखिक वर्णन एहि प्रकारक अधि:

चंचल लोचन बान्धे निहारए अंजन शोभा ।
जनि इन्दीवर पवले पेखल अलि भरे उलटाय
उनत उरोज चिरे झपावस पुनपनु दरसाय ।
जइओ जतने पिआए चाहत हिमगिरि न नुकाय ।

एहि प्रकार से कवि मनोवैज्ञानिक प्रभावक रसमय लक्षणक काव्यात्मक विवेचन कय नायिकाक हृदय के कामुक बनेयाक चेष्टा कयलनि अछि ।

विद्यापतिक सघःस्नाता जे मुनि पर्यन्तक मोन मे कामदेव के जगाय दैत छधिः

कामिनि करए सनाने हेरितहि हृदय हनए पंचवाने ।
चिकुर गरए जलधारा । जनि मुख-ससि उर रोआए अंधारा ।
कुच-जुग चारू चकेवा । निअ कुल मिलिअ आनि कोन देवा ।
तें सका भुज-पासे बाधि धएल उड़ि जाएत अकासे ।
तितल बसन तनु लागु । मुनिहुफ मानस मन्मथ जागु ।

विद्यापतिक वर्णनकेँ इएह विशेषता छनि जे ओ जे कोनो वर्णन करैत छथि, ओकर साकार-प्रतिमा पाठकक समक्ष प्रस्तुत कय दैत छथि । हमरा लगैत अछि जे विद्यापति श्रृंगारिक सधः स्नाताक वर्णन कए विद्यापति अपन आश्रयदाता शिवसिंह का दिल्लीश्वरक कैद सं छोड़ाय अनने छलाह । कवि अपन कल्पना जगत मे सेहो काम भाव जगाय देत छथि:

सजनी निहुरि फूकू आगि ।
तोहर कमल भमर मोर देखल
मदन उठल जागि ।
जौ तोहे भामिनि भवन जएवह
ऐबह कोन बेला ।
जौं एहि संकट सौ जिव बाँचत
होयत लोचन मेला ।

एक दोसर सद्य स्नाताक कुच ट्वय पर भीजल वस्त्र एना लगैत अछि जेना कनकलता पर हिम पसरल हो । ओ (वस्त्र) के नायिका स ततेक प्रेम भय गेल छेक जे ओ अपना के ओकरा स्नेह सँ विमुक्त नहि होमय चाहेछ । एतय वस्त्रक मानवीकरण कय देने छथि:

....न जाइत पेखाल नहाएलि गोरी । .
....... सजल चीर रह पयोधर सीमा ।
कनक-बेल जनि पड़ि गैल होमा ।
ओ नुकि करतहि चाहि किए देहा ।
अबहि छोड़व मोहि तेजब नेहा ।

प्रेम-प्रसंग- प्रेम प्रसंग मे राधा-कृष्ण (नायक-नायिका) क परस्पर प्रेम प्रसंगक वर्णन में श्रृंगार रसक समावेश स्वतः भय जाइछ । एक दोसर का देखला से मनसिज जागि जाइछ प्रेम-लीला शुरू भय जाइत अछि:

पथ गति मिलल राधा कान ।
दुहु मन मनसिज पूरल साधा
दुहु मुख हेरइत दुहु भेल भोर ।
समय ने बूझए अचतुर चोर ।
विदगधि संगिनि सय रस जान ।
कुटिल नयन कयलन्हि समधान ।

सखी शिक्षा-

परकीया नायिकाक समागम करेबा मे सखीक बहुत पैघ हाथ रहैछ । काम-कला निष्णात सखीएटा एहि प्रसंग मे अपन योगदान कय सकैत अछि । प्रथम समागम सँ पहिने नायिकाक अपेक्षा नायकक हृदय में बहुत बेचौनी रहैछ । ओ रति क्रीडाक सोपान पर सर्वप्रथम चढ़त, एहि हेतु 'की होयत' एहि सँ भयभीत रहैत अछि । एहन परिस्थिति में कामकला विशारद सखी रति-क्रीड़ाक पाठ पढ़ाय नायिकाकेँ तैयार कय दैछ । प्रस्तुत प्रसंग में राधाकेँ सखी बुझाय रहल छथि जे प्रथम समागमक अवसर पर नायकक संग केहन व्यवहार करवाक चाही:

प्रथमहि अलक तिलक लेब साजि ।
चंचल लोचन काजर आजि ।

सब शिक्षा देलाक बाद सखी कहैत छथि जे जखन रति-लीला करबाक अवसर आयत तखन कामदेव स्वयं गुरू यनि एकर भेद कहत । एक पद मे सखी कामदेवक संग कोना दोकानदारी करबाक चाही तकरो प्रेरणा नायिका के देल जाइछ:

सुनु सुन्दरि नव मदन पसार, जन गोपह आओब बनिजार ।
रोस दरस रस राखब गोए, धएले रतन अधिक मूल होए ।

एक अन्य पद मे सखी नायि‍काक शिक्षा दैत छथि जे जेना लोक तीत औषध खाइत अछि आ बीमारी सँ त्राण पाबैत अछि तहिना सुरत रसक आनन्द प्राप्त करवाक हेतु बिना दु:ख अपनौने सुख नहि होयत । एक क्षणक प्रथम समागम मे किछु पीड़ा होइत छैक, मुदा तत्पश्चात सुख-सुख-होयत -

तिल आध दूख जनम भरि सूख ।
इथे लागि धनि किए होइ विमूख ।
तिल एक मूनि रहु दुई नयान ।
रोगि करइ जइसे औषध पान ।

मिलन-

मिलन प्रसंग मे सरस कवि विद्यापति नायक-नायिकाक प्रथम समागमक मनमोहक वर्णन कयने छथि । सखी द्वारा नायिका के जबर्दस्ती विलास भवन मे नायकक लग पहुँचा देल जाइछ ।

सुन्दरि चललिहु पहु घर ना ।
चहु दिस सखी सब कर धर ना ।
जाइतहि हार टुटिए गेल ना ।

अभिसार-

विद्यापति नायिकाक काम भावना शान्त करवाक हेतु दिन रातिक्‍ अन्तर विसरि जाइत छथि । तँ ओ कृष्णाभिसारिका, शुक्लाभिसारिका, दिवसाभिसारिका श्रृंगारिक वर्णन कयने छथि । कामशास्त्र मे वर्णित अभिलाषा, चिन्ता, गुण कथन, स्मरण, उद्देग, प्रलाप आदि विरह दशाक वर्णन सेहो विद्यापतिक पदावली मे उपलब्ध अछि । यथा

स्मरण-कतदिन चाँद कुसुम हव मेलि ।
कतदिन कमल -भ्रमर करू कॅलि ।

एहि रूप से विद्यापति मान भंग, नोंक झोंक आदि मे श्रृंगार रसक निर्झरिणी यहि गेल अछि ।

उपरोक्‍त विवेचनक आधार पर कहल जा सकैत अछि जे विद्यापति एकटा शृंगारिक कवि छलाह आ हिनक पदमे शृंगारिक भाव कुटि-कुटिकए भरल छल ।

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