Monday, April 18, 2022

मैथिली साहित्यक शिल्पी आचार्य सुरेन्द्र झा 'सुमन'




मैथि‍ली भाषा आ सहित्यक ई सौभाग्य छल वा ई कही जे ई दैवी संयोग रहलैक जे प्रत्येक कालखंड मे एकरा कोनो न कोनो एकटा विशि‍ष्ठ महापुरूषक नेतृत्व ओ अभि‍भावकत्व प्राप्त होइत रहलैक अछि आ ताहि द्वारे मैथि‍ली अपन प्रगति यात्रा पर सदति आगू बढ़ैत रहलीह अछि । मैथि‍लीक आधुनिक कालक नेतृत्व कवीश्वर चन्दा झा सँ प्रारंभ भेल । 1907 मे हुनक मृत्यु सँ पहिने मिथि‍ला-मोदक माध्यम सँ म0 म0 मुरलीधर झा सन प्रखर-मुखर व्यक्‍ति‍त्‍वक नेतृत्व भेटलैक । 1930 मे मुरलीधर झाक मृत्युपरांत किछु काल शुन्‍यक स्थिति रहल । मुदा 1935 ई0 मे मैथि‍लीक मंच पर तेहन प्रखर तेजोमय व्यक्तित्‍व सँ मैथि‍ली प्रकाशमान भेलीह कि कतोक दशक धरि उर्जस्वि‍त-प्रकाशि‍त होइत रहलीह । जिनक व्य‍क्ति‍त्व ओ कृतित्व मैथि‍लीक एकटा युगक सर्जन कयलक । ओ विराट व्यक्तित्‍व दोसर केओ नहि आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ छलाह ।

आचार्य श्री सुरेन्द्र झा सुमन प्राचीनता ओ नवीनताक संधि‍ स्थल पर ठाढ़, कविक कवि, संस्कृत कs गलाकs मैथि‍लीक श्रंगार कयनिहार, रससिद्ध कवि छलाह । अहाँ नहि केवल मैथि‍लीक शीर्षस्थ महाकवि छलहुँ अपितु यशस्वी सम्पाकदको बनि मैथि‍लीक शुन्याताकेँ भरबाक काज केलनि‍ । उत्कृष्ट कोटिक कथाकर आ समालोचक संगे सुविख्यात प्राध्यापकों छलनि । संस्कृट आ बांग्ला ग्रन्थक सफल अनुवादक संग-संग धाराप्रवाह सुसंस्कृत- चित्‍ताकर्षक वक्ताक रूप मे सेहो सुप्रसिद्ध छलाह । साहित्यिक अतिरिक्तओ हिनक जीवनक राजनीतिक पक्ष सेहो छल, ई बिहार विभानसभा तथा लोकसभा मे दरभंगा क्षेत्रक प्रतिनिधि‍त्व कयने छलाह‍ । सुरेन्द्र बाबू 1983 सँ साहित्य अकादमी दिल्लीमे मैथि‍ली भाषाक प्रतिनिधि‍ आ ओकर कार्यकारी सदस्य सेहो छलाह । ओ एहि पद पर 1987 धरि रहलाह । मैथि‍ली साहित्य परिषदक पूर्व मे ई महामंत्री रहि‍ चुकल छथि‍ । एहन बहुमूखी प्रतिभाक ओ एकमात्र व्यक्ति ‍ छलाह जे कवि, साहित्यकार, अनुवादक, आलोचक, समालोचक प्रध्यापक आ राजनेता रहि चुकल छल ।

समस्तीपुर जिलाक बल्लीपुर नामक गाममे हिनक जन्म 1910 ई0 मे आश्वि‍न शुक्ल पंचमी तिथि‍ कs तदनुसार 1 अक्टूबर कs भेलनि । संस्कृत साहित्यक ई अत्यन्‍त मेघावी छात्र छलाह तथा धर्मसमाज संस्‍कृत कॉलेज, मुजफ्फरपुरसँ साहित्याचार्य कयलनि । आरंभमे किछु दिन एकटा उच्च विद्यालयमे अध्यापन कयलनि पुन: 1934 मे मिथि‍ला मिहिरक सम्पादक भs दरभंगा आबि गेलाह । एहि पद पर ओ 1944 धरि रहलाह । 1946 मे चन्द्रधारी मिथि‍ला महाविद्यालयमे मैथि‍ली विभागमे प्राध्यापक रूपमे प्रवेश कयलनि आ ओतय अपन विलक्षण ज्ञान प्रतिभा सँ विश्वविद्यालयक स्नातकोत्तर मैथि‍ली विभागाध्यक्षक पद धरि कs गौरवान्वित कयलनि । अवकाश-ग्रहण कयलाक बाद साहित्यि ओ राजनीतिक काजमे ई अपनाकेँ समर्पित कs देलनि । अपन एकनिष्ठ साधनाक बल पर 15 अगस्त 1972 सँ दैनिक ‘स्वदेश’ क पुन: प्रकाशन आरम्भ कयलनि जे 84 क पूर्वाध धरि चलैत रहल ।

संस्कृत आ हिन्दी‍-रचनामे सेहो हिनका समान गति छनि, मुदा अपन सम्पूर्ण सेवा मैथि‍लीकेँ समर्पित कs देने छलाह । हिनक महत्वक एक कारण ईहो अछि जे हिनके प्रेरणा पाबि कतेको प्रतिभाशाली साहित्यकार मैथि‍ली दिस आकृष्ठ भेलाह तथा अपन बहुमूल्य अवदानसँ एकर भण्डार कs भरैत गेलाह । परवर्ती तँ सहजहिँ जे हिनक समकालीन कविचूड़ामणि‍ श्री काशीकान्ता मिश्र ‘मधुप’ तथा कविवर उपेन्द्र ठाकुर ‘मोहन’ सेहो हिनक प्रेरणासँ मैथि‍ली-लेखन दिस उन्मुख भेलाह ।

तीस गोट मौलिक काव्य-पुस्तक हिनक प्रकाशि‍त अछि तथा अनूदित आ सम्पा‍दित कृतिक संख्या लगभग पन्द्रह अछि । एहि मे किछु महत्वतपूर्ण मौलिक काव्य -संग्रहक नाम थिक – प्रतिपदा, अर्चन, साओन-भादव, अंकावली, अन्तर्नाद, भारत-वन्दना, पयस्वनी तथा उत्तरा । जाहि में हिनका पयसवनी लेल 1971 ई0 में साहित्य अकादमी भेटल छल । आ उत्तरा लेल 1981 में विद्यापति पुस्कार भेटल छल ।

हिनक मुख्य अनुदित पोथीमे पुरूष-परीक्षा, अनुगीतांजलि, ऋतुश्रंगार आ बड़की दाइ प्रमुख अछि । हिनक सम्पादित प्रमुख पोथी थीक वर्णरत्नाकर, पारिजात-हरण, कृष्ण जन्म, आनन्द विजय, गोविन्दगीतांजलि, मैथि‍ली प्रबन्ध काव्‍य आदि ।

आचार्य सुरेन्द्र संस्कृदत साहित्यक प्रकाण्ड विद्वान छलाह तेँ हिनक कवितामे संस्कृत काव्यक गरिमाक सहजहिं दर्शन होइछ । हिनक दृष्टि‍ आधुनिक छनि, तेँ हिनक काव्यमे आधुनिकताक विचारधाराक झलक सदिखन देखेबामे अबैत अछि । ई खास राजनीतिक विचारधाराक प्रबल-प्रवक्ता छलाह ते हिनक किछु कवितामे अनायासे ओहन स्वर-झंकार सुनबा मे आबि जाइछ ।

मैथि‍लीक आलोचक लोकनि हिनका प्राचीनता ओ नवीनताक संगम पर ठाढ़ पबैत छथि‍ । ओतहि प्रो0 जयदेव मिश्रक कहब छनि जे ‘ई संस्कृरत कs गलाकs मैथि‍लीक श्रृंगार करैत छथि‍’ । वास्तिव मे हिनक कवितामे भारतीय संस्कृकतिक जेहन झांकी भेटैत अछि, से अन्यत्र दुर्लभ अछि । डॉ0 शैलेन्द्र सेहो हिनक पोथीक बारे मे कहने छथि‍ जे, ‘आचार्यक अर्चना मैथि‍ली मन्दि।रक एकटा भक्ति‍ प्रधान काव्य‍ अछि । गंगातरंगिणी, मैथि‍लीवन्दना ओ मिथि‍ला-महिमा ई तीनू कविक एहन कृति अछि जकर आधार मूलत: सांस्कृतिक अछि । परन्तु एकर वर्णनमे कवि जाहि पौराणि‍क गाथाक उल्लेख कयने छथि‍ ओ इतिवृत मात्र नहि भs अपन काव्य-चम्त‍कारक बलेँ अती आकर्षक ओ महत्वपूर्ण भs गेल अछि । केओ हिनका बारे मे कहने छलाह जे ई संस्कृतक स्थि‍र किनार कs छोड़ि‍ आधुनिक प्रवाहमे ओतवहि दूर जाइत छथि‍ जतय सँ पुन: फिरिकs अयवामे कठिनता नहि होइत छनि ।

आचार्य रामानाथ झाक अनुसारेँ, ‘ई प्राचीन बेसी छथि‍, नवीन कमतर, आ आधुनिक सोरहो आना छथि‍’ । हिनक आधुनिकता थि‍क प्राचीनताक नवीनीकरण । चमत्कारपूर्ण सूक्ष्म कल्पाथनसँ निबद्ध हिनक प्रत्येक रचनामे उक्त ‍वक्रता भेटैत अछि, किछु नव बात उत्प‍न्न‍ करबाक क्षमता भेटैत अछि । हिनक विषय क्षेत्र व्यापक छल, प्राय: कोनो वाद-प्रवाद नहि छूटल होइत जाहि आधार पर ई रचना नहि कयने होथि‍ । वर्णनक पाण्डि‍त्यिपूर्ण उत्कर्षक कारणें हिनक रचना सर्वसाधारणक हेतु दुरूह अछि । भाषा हिनक तत्समबहुल ओ उक्ति पाण्डि‍त्यपूर्ण वक्रता हिनका सर्वसाधारणक कवि नहि बनय दैत अछि । सुमनजीक वास्तिविक महत्व काव्यधाराक कोनो ‘बाद’ क वृतक अन्तर्गत नहि अछि, प्रत्युत कविताक ओहि भावभममि पर प्रतिष्ठि अछि जाहि हेतु कवि युगातीत कहल जाइत छथि‍ ।‘’ एकठाम त आचार्य रामानाथ झा हिनका ‘कविक कवि’ कहने छथि‍ । हुनक कहब छनि जे वास्तवमे हिनक कविताक रसास्वादक लेल एक गोट कविक हृदय चाही । डॉ0 शैलेन्द्र’ मोहन झाक शब्दमे ‘’सुमनजीक समस्त काव्यक–साधना पर विचार कयने देखब जे आधुनिक युगक विविध काव्यधाराक सामंजस्य यदि कोनो कविमे अछि तँ ओ सुमने जी मे अछि ।

वास्तवमे हिनक गद्य की, पद्य की, सभमे वैह गूढ़ार्थ-बोधक भाषा, वैह माजल शि‍ल्प-शैली, वैह ‘तिल-तिल नूतन होय’क चमत्कार, वैह मनोमोहक वर्णन-विन्यास, वैह पांति-पांतिमे बिहारीक गम्भीरता । निष्कर्षत: कहल जाए त आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ एक मे अनेक वा अनेक मे एक छल । ओ अपन स्वयं मे एकटा विराट संस्था छलाह । एकटा अप्रि‍तम साधक छलाह जनिका मे एक्के संग पत्रकारिता, साहित्य, अध्यापन, समाजसेवा ओ राजनीति सबकेँ साधि‍ सकबाक क्षमता छलनि ।

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