Thursday, August 8, 2019

Should Textbooks Be Replaced By Notebook Computers?

किताबे अनमोल है इसकी कोई सानी नहीं है । कागज पर पढ़ना अपने आप में उतना ही रोमांचकारी होता है जितना किसी किसान के लिए एक एकड़ जमीन पर धान बोना, किसी पर्वतारोही के लिए काराकोरम की उँची चोटी पर चढ़ना, या किसी तैराक के लिए इंग्‍लि‍श चैनल पार करना । इन सबके बावजूद भी अगर हम पाठ्यपुस्‍तकों की बात करें तो पाते हैं कि एक औसत बच्‍चा प्रतिदिन 10 पांउड से ज्‍यादा किताबे सिर्फ इसलिए ढ़ोता है कि ताकि उनकी कक्षाओं में उन सब किताबों में से कुछ पन्‍ने उस दिन उनकी कक्षा में पढ़ाया जाएगा । इस कुछ पन्‍नों के एवज में उन्‍हें 10 पाउंड का एक भारी भरकम बस्‍ता ढ़ोना पड़ता है जिसमें किताबों के अलावा लंच बॉक्‍स, पानी का बोतल आदि होता है । इस हिसाब से नोटबुक इन भारी भरकम किताबों का एक अच्‍छा विकल्‍प हो सकता है । जो न केवल हल्‍का है, बल्‍कि‍ इनमें वैसे कई सारी जानकारीयाँ भरी है जो कुछेकु किताबों या फिर पुरी की पुरी पुस्‍तकालय में नहीं मिलेगी । 

एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ भारत में 400 लाख से ज्‍यादा पेड़ सिर्फ पाठ्यपुस्‍तक बनाने के लिए काट दिए जाते हैं । क्‍योंकि सरकार अपने निजी फायदे के लिए और कुछ प्रकाशकों को फायदे पहुँचाने के लिए प्रत्‍येक वर्ष सिलेबस में भारी फेर-बदल कर देती है या पुरा का पुरा सिलेबस ही बदल डालती है । नोटबुक इस परिवर्तन के लिए हमेशा से तैयार है और रहेगा । इन्‍हें ऐसे किसी भी परिवर्तन के लिए अपने में परिवर्तन करने की जरूरत नही होगी । इसमें कंटेंट आसानी से और त्‍वरित गति से अपडेट हो जाएगा जो विद्यार्थ‍ियों को इस रोज-रोज के विषय में होने वाले बदलाव और कक्षा में ढ़ोने वाले पुस्‍तकों से आज़ादी दिलाएगा । साथ ही यह पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद होगा क्‍योंकि हम सिर्फ अपने पाठ्यपुस्‍तकों के कारण इतने पेड़ खो देते हैं जितनी हमे जीवन भर प्राणवायु देने के लिए काफी होता है । 

अब बात अगर स्‍वास्‍थ्य की करें तो प्रत्‍येक छात्र/छात्रा फिर चाहे वो नर्सरी में हो अथवा स्‍नातक में सिर्फ पाठ्यपुस्‍तक ढ़ोने के कारण पीठ दर्द और कंधे दर्द की शि‍कायत से परेशान रहता है । नोटबुक इन सभी परेशानियों को दुर कर सकता है । यह कही भी लाने ले जाने में आसान, पतला और अनेक प्रकार के ऑंकड़े से युक्‍त रहता है । एक उदाहरण के लिए एक नर्सरी का बच्‍चा भी अपने कक्षा में कम से हिन्‍दी, विज्ञान, गणि‍त, ड्रांईग आदि की पाठ्यपुस्‍तक ले जाएगा, उस विषय से संबंधि‍त कॉपी ले जाएगा, उसके बाद दो पेन, पेन्‍सि‍ल, रबर और प्रैक्‍टि‍कल बॉक्‍स आदि ले जाएगा । इसके बाद भी लंच बॉक्‍स है, पानी का बोतल है और भी बहुत कुछ है जो उसकी बैग में रहता है । नोटबुक इन सबका एक मात्र विकल्‍प होगा । न कापी की चिंता न किताब की, माउस और कीबोर्ड की सहायता से पेन, रबर और पेन्‍सि‍ल का भी कम कर लेगा । यानी आठ से दस पाउंड का विकल्‍प कुछेकु पाउंड से हो जाएगा । 

फिर भी किसी भी सिक्‍के के जिस प्रकार दो पहलू होते हैं ठीक उसी प्रकार नोटबुक के भी दो पहलू है । यह थोड़ा मंहगा और आसानी से उपलब्‍ध नहीं होने वाली वस्‍तु है । मगर हम देखे तो जिस प्रकार प्रत्‍येक वर्ष पाठ्यपुस्‍तकों में परिवर्तन हो रहा है और किताबों की कीमतों में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है उस हिसाब से नोटबुक काफी सस्‍ता है । चुकि यह कागज से नहीं बना है इसलिए इसके रखाव में भी ज्‍यादा परेशानी नहीं है, यह आसनी से गलने और जलने वाला भी नही है । यह आसानी से स्‍टोर होने वाला है और किताबों की तरह ज्‍यादा जगह भी नहीं लेता है । 

इन सबसे अलग बिना उर्जा के यह बिलकुल डब्‍बा है । भारत में इसका उपयोग अभी भी सिर्फ इस वजह से नहीं हो पा रहा है क्‍योंकि लाखों गावों में अभी भी बिजली नहीं पहुँच पाई है । और बिना बिजली के इसकी उपयोगिता शुन्‍य है । लेकिन विज्ञान के नित नए प्रयोग ने हमारे डेस्‍कटॉप कम्‍पयुटर को नोटबुक, टैबलेट में बदलकर इसे काफी सरल और आसान बना दिया है । अब डेस्‍क्‍टॉप कम्‍प्युटर की तरह इसमें प्रत्‍येक समय बिजली का पल्‍ग लगाने की जरूरत नही है । नोटबुक की बैटरी ने इसे सुदूर गाँव के लिए भी आसान बना दिया है । अब एक बार चार्ज कर लेने के बाद इसे 3 से 4 घंटे आसानी से चला सकते हैं । इस क्रांतिकारी बदलाव ने इसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी शुलभ बना दिया है । 

नोटबुक के इंटरनेट से जुड़ जाने के बाद यह ज्ञान का एक ऐसा स्‍त्रोत बन जाता है जिसकी तुलना किसी भी किताब से नहीं की जा सकती । यह न केवल प्रतिदिन अपडेट होता है अपितु हमेशा नई नई जानकारियों से अवगत भी कराता है । पुस्‍तकालय में बैठ कर घंटों सर खपाने के बावजूद भी जितना कंटेट नही मिल पाएगा वह सिर्फ कुछ समय नोटबुक पर गुजारकर निकाला जा सकता है । इंटरनेट के तमाम के तमाम गुणों के बावजुद भी इसकी सत्‍यता पूर्ण रूपेण प्रमाणि‍क नहीं है । किसी भी अपूर्ण जानकारी अथवा कंटेट से छात्रों को जीवनभर गलतफहमी का शि‍कार भी होना पड़ सकता है । इंटरनेट के दुरूपयोग से छात्रो का भविष्‍य भी अंधकारमय हो सकता है । लेकिन सदुपयोग जीवन की सफल राह भी बना सकता है । 

यह भी सत्‍य है कि किताबें पढ़ने में ज्‍यादा आसान है नोटबुक के बनिस्‍पत । किताबों को कभी भी चार्ज नहीं करना पड़ता और बिना बिजली के भी आप इसका आनंद ले सकते हैं । लेकिन जिस तरह से विज्ञान तरक्‍की कर रहा है, रोज नए नए अविस्‍कार और घटनाए हो रही है हम बिना परिवर्तन के अपने आप को इस समाज में नही ढ़ाल पाएंगे । नोटबुक एक ऐसा हथि‍यार है जो हमारे व्‍यक्‍ति‍व को निखारने का काम करता है । हज़ारों डायरी के पन्‍नों को नोटबुक के एक छोटे से ड्राइव में रख सकते हैं । हजारों सिनेमा, किताबें, संगीत आराम से नोटबुक के एक छोटे से हिस्‍से में आसानी से आ सकती है जिसे आप आसानी से ढुंढ़ सकते है, और उसका पुन: पुन: उपयोग कर सकते है । बावजुद इसके यह थोड़ा सेसेंटिव भी है आपकी जरा सी लापरवाही आपको आपके डेटा से हमेशा के लिए दुर भी कर सकती है । 

अंतत: मेरा मानना है कि जिस प्रकार सरकार किताबों पर अनुदान दे रही है उसी प्रकार अगर अनुदान देकर नोटबुक का भी वितरण किया जाए तो आने वाले समय के लिए यह विद्यार्थीयों के लिए काफी हितकर होगी जो हमे अपडेट तो रखेगा ही साथ ही किताबों के भारी भरकम बोझ से भी छुटकारा दिलाएगा ।

जब चेला है राजी तो क्या करेगा काजी ?

म० म० महेश ठाकुर के शिष्य रघुनंदन झा और मुल्ला के शास्रार्थ में मुल्ला को पराजित करने के बाद, बादशाह अकबर ने मिथिला राज्य का शाही फरमान रघुनन्दन झा के नाम कर दिया । लेकिन गुरुभक्ति में रघुनन्दन झा ने मिथिला राज्य का शाही फरमान गुरु के नाम करने का आग्रह किया । कई दिनों तक बहस होती रही, राजा के मंत्री और बिरवल इस पर मंत्रणा करते रहें लेकिन फरमान बदलने का कोई साधन निकल नही रहा था । इसी बीच राजा मानसिंह के कहने पर म० म० महेश ठाकुर को संस्कृत भाषा में अकबरनामा लिखने का अनुरोध किया गया । जिन्हें म० म० महेश ठाकुर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया । लिखने के क्रम में उनका अकबर के माताजी के कक्ष में जाने का अवसर मिला । किसी बेटे की कथा माँ से ज्यादा और किसे मालूम हो सकता है, म० म० महेश ठाकुर माताजी को पुराणों की कथा भी सुनाते और उनसे जानकारी लेकर अकबरनामा (वर्तमान में ये किताब, लंदन के सम्राट पुस्तकालय में हैं, जिनकी एक प्रति बोली लगाकर मिथिला नरेश रामेश्वर ठाकुर 9 हज़ार रुपए खर्च के दरभंगा के राज पुस्तकालय में रखवाएं थे) भी लिखते रहें । म० म० महेश ठाकुर के काम से प्रसन्न होकर उनकी माताजी ने इन्हें कुछ पारितोषिक देने के लिए बीरबल से मंत्रणा की, बीरबल ने उन्हें उनके शिष्य के मिले फरमान को गुरु के नाम करवाने का आग्रह किया, इस पर माताजी ने पूछा कि चेला राजी है ? इसपर बीरबल ने रघुनन्दन झा को उनके समीप खड़ा कर दिया । रघुनंदन झा की भक्ति और उनका गुरु के प्रति सम्मान देखकर अकबर की माताजी ने बीरबल को कहा, 'चेला राजी तो क्या करेगा काजी' उनको आज ही फरमान इनके नाम लिखवाने का हुक्म दिया। और इस तरह मिथिला का राज्य म० म० महेश ठाकुर के नाम हुआ ।

मिथिला नरेश ने शुरू किया था चौठ चन्द्र का व्रत

बात 878 साल (1571ई०) की है, मिथिला की गद्दी पर तीसरे नरेश म० म० हेमागंद ठाकुर गद्दीनशीं थे । अकबर बादशाह के 7 वर्षों की मालगुज़ारी (ज्ञात हो कि अकबर ने 1 लाख रुपए वार्षिक कर पर म०म० महेश ठाकुर को मिथिला का राज्य दिया था) नही चुका सकने पर उनके सिपाही उन्हें जैल में डाल दिए ।

जैल में पड़े-पड़े म० म० हेमांगद ठाकुर ने एक गणित शास्त्र की रचना की जो आज भी मिथिला में राहुपरागपंजी के नाम से ख्यात है । इसी पंजी के मदद स्व आज भी खगोलीय वैज्ञानिक चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण का सटीक पता लगा पाते हैं । इस ग्रन्थ के निर्माण में पाटी पेंसिल के अभाव में श्रीकुमार जमीन पर ही मिट्टी से लिखते और मिटाते रहते । उन्हें ऐसा करते देख कारागार के रक्षक उन्हें पागल समझ बादशाह को खबर भिजवाया की तिरहुत का जमींदार पागल हो गया है । दिन भर जमीन पर लिखता और मिटाता रहता है । बादशाह को जब इनकी खबर मिली तो इन्हें देखने एक दिन कारागार पहुंचे, वहाँ पहुंचकर उन्होंने इनसे पूछा क्या कर रहे हो ?, श्रीमान ठाकुर ने जवाब दिया राहुपरागपंजी बना रहे हैं । प्रतिउत्तर में सारी बातें समझाने पर बादशाह ने पूछा ग्रहण कब लगेगा ? श्री ठाकुर ने कहा इसी भाद्रपद की अमावस में ग्रहण लगेगा । बादशाह ने पूरा ब्यौरा लिया किधर से कितना ग्रहण लगेगा । श्री ठाकुर ने तुरंत जमीन पर पूरा परिलेख बना दिया । इस पर बादशाह ने कहा कि अगर इस मोताबिक देखा जाएगा तो कुल मालगुज़ारी माफ देकर विदाई आपकी करेंगे ।


श्री ठाकुर खुश हुए और संध्या वंदन के समय श्री गणेश की पूजा पश्चात चंद्रमा से प्रार्थनापूर्वक वादा किए की, हे चौठी चन्द्र अगर मेरा परिलेख सही मिल गया तो स्वदेश पहुंचकर शुक्लपक्ष की चतुर्थी (भाद्रपद) की पूजा अपने देश मे चलाएंगे । हम बहुत दिन से आपकी पूजा करते आ रहे हैं, देखिए कहीं विघ्न न हो ।

अनन्तर उक्तदिवस में परिलेख के पूर्ण मिलान होने से बादशाह अकबर ने सातो लाख की मालगुज़ारी माफ कर उन्हें दस हजार रुपए और एक हाथी विदाई में देकर स्वदेश विदा किये । और यहाँ कर उन्होंने वादे के मुताबिक चौठ चन्द्र का व्रत पूरे देश (मिथिला) में मनाने का ऐलान किया जो आजतक जीवित है ।

भूमिहार = जिमी दार

चम्पारण जिला की जमींदारी उस समय प्रबल पराक्रमी गजसिंह के हाथों थी । ये लोग 'मूर्धवसक्त' नाम के याज्ञवल्क्य द्वारा रचित विज्ञानभिक्षु (मिताक्षराकार) के व्यख्यानुसार क्षत्रिय से उच्च त्रिकर्म्मा होकर अपने आपको ब्राह्मण समझने लगें । चुकी आप खेती भी करते थे इसलिए भूमिदार ब्राह्मण कहाने लगे ।

जब यहाँ मुसलमान का शासन हुआ तब 'दार' शब्द का विदारण शब्द हटाकर जिमीदार शब्द का व्यवहार करने लगे । चुकी जिमी शब्द उर्दू या फारशी में भूमिवाचक दृधातु के अर्थ में विदारण के साथ भी समान रूप से उपयोग होने लगा, इसलिए मदार-महार में समानता देख दार शब्द के स्थान में हार शब्द का प्रयोग होने लगा ।


बाद में दूसरे की भूमि बलपूर्वक हरण करने के कारण जिमिहार शब्द अपमार्जित होकर भूमिहार बन गया।

आइये जश्न मनाइए, बेटी रोटी का संबंध हो गया कश्मीरियों के साथ ।



मेरे वाल पर एक से ए कुतर्क आ रहे हैं कि कश्मीरियों को डराया जा रहा है ? डल झील में छठ मनाने की बात हो रही है, और गुलमर्ग में प्लाट खरीदने की बात हो रही है, और तो और कश्मीरियों से शादी की बात भी हो रही है ।

तो इसमें गलत क्या है, भाई ? हिन्दू मुश्लिम और ईसाई आपस मे सब भाई-भाई कहते तो तुम्हारी जुबान नही थकती थी । अब हमने भारत कश्मीर भाई-भाई कह दिया तो तुम्हारे पेट मे मरोड़ होने लगा । क्यों भला ? अगर हमने कश्मीर में छठ मना लिया तो उसका नुकसान कैसे होगा, उल्टा उसका तो भला ही होगा, उनकी बिक्री बढ़ेगी, होटल से लेकर खाने तक का व्यवसाय बढ़ेगा तो फिर दिक्कत क्या है ।


कश्मीर में ली मेरिडियन और ताज खुल पाएगा, बड़े बड़े मॉल खुलेंगे, अर्थव्यवस्था सुदृढ होगी तो लोग भी पटरी पर लौटेंगे । उनको भी लगेगा कि कमाई हो रही तो पत्थरबाजी छोड़ आम इंसानों की तरह रहेंगे ।

कश्मीर का एक होना मेरे लिए सहरसा दरभंगा पुल के बनने जैसा है । ऐसा लग रहा है जैसे बेटी-रोटी का संबंध जुड़ गया हो । तो आइए जश्न मनाइए, हम फिर से एक हो गए ।

Should Textbooks Be Replaced By Notebook Computers?

Books are precious, there is no alternate of book reading. Reading the words scripted over the pages make us feel like a farmer sowing the crop on his own land, like a mountaineer to climb over the peak of Karakorem, it feels like a swimmer has crossed the English channel. In spite of this if we talk about the textbooks, We see that an average child is carrying more than tensof pound books per day, just for the reason some of the books in those classes may be taught in their class on that day. Just for few pages, they have to carry about ten pound bag on their back which includes lunch box, watter bottle, etc. For this the Notebook could be a good option. It is not only lighter but also consists unbound and enormous knowledge, which in practical is almost impossible even for the libraries across the globe. 

It is said that only in India itself more than 400 lakh of trees are cut down to make textbooks, because the government makes a huge changes in the syllabus every year due to their own profit and to make benefit to some publishers. Notebook computers would help the environment, a student’s organization and attentive skills and they would not have to carry around heavy books on a daily basis. According to Google, the average school spends 3-4 Lakh paper a year on paper alone. Not only are schools spending too much money on paper, but they are destroying 74 trees a year. we are losing thousands of trees that result in deforestation and abuse habitats of many animals. Schools constantly need to update textbooks, which leads to killing many trees and can become very costly. However, if students were to use notebook computers, they would have updated resources at all times without having to hurt the environment. Students would not need to buy many school supplies like binders, notebooks, highlighters, pencils and pens when using a notebook computer which can save them money. 

It need not any change though, Notebook is programmed, for any kind of change needed, it is user friendly. Content can be fed very easily and with tremendous speed, which in affect will give the freedom to the students from day-to-day changes in the syllabus and from carrying the bags of textbooks. Along with these it will also good for the environment, since we lose such a huge number of trees, just for making these textbooks, which would be capable of providing oxygen for the whole life. If we talk about the health, every students, they may be of nursery or an under graduate, are caused by back-ache and shoulder pain due to carrying this. A notebook can be the great solution to all these problems. It is very light, slim and consisting of various data, and so is easy to carry. For an example a nursery child have to carry the textbooks of Hindi, Science, Mathematics, drawing etc, and the notebooks for each of these subjects, and after that pen, pencil, practical-box etc. Along with these they have to carry lunch box, water bottle etc, and these all lies in the same schoolbag. Notebook would be an alternate of this problem. No more of carrying a pen, a paper or a book would be needed, just with the help of a mouse and a keyboard it all would be done. Means some of pounds will replace the tens of pound. 

Nevertheless there are two aspects of a coin, it also has two aspects. It is costly and not easily available. But if we see, the way the syllabus is being changed and the books are getting costlier day-by-day, notebook seems cheaper. Since it is not made of paper it does not need much care and maintenance. Unlike books it does not take much space and so easy to carry. 

But on the other hand, without power, it is not more than a box. In India, yet it is still not popular because lakh of villages here have no electricity. And without power it is useless. But the new technology and continuous inventions has brought the solution. Desktop computers has been moderated into notebooks and tablets, which is not dependent on the electricity only, it comes with the batteries which on charging once longs up to 3 to 4 hours very easily. This revolutionary change has made it very easy for the rural areas. 

A notebook on connecting with the internet becomes such a great source of knowledge which really is incomparable to any other means or books. It not only updates daily but also provides new facts. Only few minutes of searching on notebook can bring out the wide source of content which is impossible even by sitting in a library for hours. Besides this, the facts available on internet is not always true or verified, which in effect could interpret wrong information or misconception among the readers. It’s misuse could impact badly on students future, otherwise it’s usefulness can help them achieve their goal. 

It is also true that a book is much easier to be read than a notebook, books need not be charged and one can enjoy reading it without power supply. But on the other hand the way science is developing day-by-day and we have new inventions daily, we can not cope up without being update ourself. Notebook is like such a tool which could help in enhancing our personality. A diary of thousand pages can be contained in a tiny drive of notebook. Thousands of movies, books, musics, can be stored in a drive of a notebook, which can be easily looked for, and can be reused again and again. Beside all these ease it is very sensitive also as a single mistake can lead loss of all the precious data forever. 

At the end, in my opinion the way our government is providing subsidies on books, it should also help distributing the notebook to the students at subsidy, which in coming future will be very beneficial to the students by keeping us update and helping get rid of form the heavy load of books.

Friday, August 2, 2019

शुक्रिया फेसबूक



डियर फेसबूक,

जोमैटो के झोल ने हमें ये सीखा दिया है कि जिंदगी में कैसे बीते को भुलाया जा सकता है । कल से पूरा फेसबूक अपडेट पढ़ डाला, सबका वाल तक खंगाल लिया, हर जगह पण्डित जी ही दिख रहे हैं । दिख रहा है जोमैटो को पड़ रही गालियाँ और पण्डित जी के पक्ष के लोग । हमें जोमैटो के अनइंस्टाल होने की खबर भी मिल रही है फेसबूक । एक रेटिंग डालकर शेयर बाजार को ऐसी-तैसी करने की खबर भी है ।

हम उन्नाव को भूल चुके हैं फेसबूक, हमने सीसीडी के मालिक की आत्महत्या की खबर भी नज़र नही आ रही है । केरल की बाढ़ और बिहार की बाढ़ भी पण्डित जी के आर्डर में कहीं दब सा गया है फेसबूक । इक्का दुक्का लोग तीन तलाक का जश्न और औवेसी को गाली पढ़ते तो दिखे लेकिन बुझे मन से ।


हम ये घटना भी भूल जाएंगे फेसबूक, निर्भया से लेकर दामिनी तक हम सब भूल चुके हैं । हम भूल चुके हैं कि डूबते हुए राज्य में हमलोगों की औकाद बस एक रेंगते कीड़े सी है जिसे कोई भी सोशल मीडिया का जानकार अपनी जरा सी बुद्धि लगाकर हमें इधर से उधर कर सकता है ।

असल में फेसबूक तुमने हमें आदमी से रोबोट बना दिया है । शुक्रिया फेसबूक ।

Thursday, August 1, 2019

खाने का धर्म और धर्म का खाना

जोमैटो पर पंडित जी के ट्वीट ने सोशल मीडिया पर तूफ़ान ला दिया है । सिर्फ इस बात के लिए की उसके खाने को लाने वाला एक मुसलमान था । भले ही आर्डर बिरयानी हो, लेकिन बनाया हिन्दू ने हो, काटा हिन्दू ने हो और मशाला तो भाई रामदेव के फैक्ट्री का हो तभी जमेगा, और हाँ... बता दें कि ये वही पण्डित जी हैं जिसने तस्लीमा नसरीन को उसके स्तन अच्छे हैं कहते हुए ट्वीट किया था । लेकिन नाम के आगे पण्डित लगा लेने से इनके पाप वैसे ही धूल गए जैसे गंगाजल छीट लेने से पापियों के पाप...


खैर बबाल की असली जड़ ये कतई नही है, बबाल की जड़ उस मियाजी के ट्वीट से हुई है, जिसमे उन्होंने जोमैटो को ये कहते हुए लताड़ा की, उसे झटका मीट दिया जा रहा है या हलाल इसकी जानकारी आर्डर करते वक्त नही दी गई । जोमैटो ने इस ट्वीट पर सॉरी बोला और मियाजी का सारा पैसा रिफंड भी किया, ऊपर वाले केस में ऐसा नही हुआ...बल्कि जोमैटो ने लिखा कि खाने का कोई मज़हब नही होता ।

अब बात मुद्दे की... 90 फ़ीसदी मुसलमान आज भी मंदिरों के प्रसाद नही खाते, झटका मीट को हाथ नही लगाते, रामदेव का प्रोडक्ट नही खरीदते और तो और मदरसा में इस्कॉन के मध्याहन भोजन को भी अस्वीकार कर देते हैं । इनके लिए खाने का मज़हब है और धर्म भी ।

खैर...पण्डितजी को गलत बताने की होड़ सी लगी हुई है, ट्वीटर पर उन्हें अनाज और पेट्रोल तक नही लेने की अपील की जा रही है, ज्यादातर हिन्दू भारत के धर्मनिरपेक्ष वाले कॉलम को सोशल मीडिया पर सार्थक करने में लगे हुए हैं । आपको बता दें कि ये वही लोग हैं जिन्हें केसरिया हिन्दू और हरा मुसलमान दिखता है । बाँकि जो है वो तो हइये है...

Saturday, March 30, 2019

जन गण मन, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के शब्दों में

यह गीत न तो विक्टोरिया का गुणगान है, न ही अंग्रेजी हुकूमत का महिमामंडन । यह देसी वर्जन है जिन्हें आज़ाद हिंद फ़ौज के सिपाहियों ने देश के लिए अनुदित किया है । आज़ाद भारत के लिए बनाया है ।




शुभ सुख चैन की बरखा बरसे
भारत भाग्य है जागा
पंजाब, सिंधु, गुजरात, मराठा
द्राविड़, उत्कल, बंगा
चंचल सागर, विंध्य हिमालय
नीला यमुना गंगा
तेरे नित गुण गाएं
तुझसे जीवन पाएं
सब जन पाएं आशा
सूरज बनकर जग पर चमके
भारत नाम सुभागा
जय हो, जय हो, जय हो, जय जय जय जय हो
भारत नाम सुभागा



सबके मन में प्रीत बसाए
तेरी मीठी वाणी
हर सूबे के रहनेवाले
हर मज़हब के प्राणी
सब भेद और फर्क मिटाके
सब गोद में तेरी आगे
गूँथें प्रेम की माला
सूरज बनकर जग पर चमके
भारत नाम सुभागा
जय हो जय हो जय हो
जय हो, जय हो, जय हो, जय जय जय जय हो
भारत नाम सुभागा


सुबह सवेरे पंख पखेरू
तेरे ही गुण गाएं
बास भरी भरपूर हवाएं
जीवन मं ॠतु लाएं
सब मिलकर हिंद पुकारें
जय आज़ाद हिंद के नारे
प्यारा देश हमारा सूरज बनकर जग पर चमके
भारत नाम सुभागा
जय हो, जय हो, जय हो, जय जय जय जय हो
भारत नाम सुभागा



यह गीत गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर के "जन गण मन" गीत का हिंदी रुपांतर है जो स्वयं नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, अबीद हसन और आज़ाद हिंद के उच्च अधिकारियों ने अनुदित किया था। इसे संगीत दिया था आज़ाद हिंद फौज के कप्तान राम सिंह ठाकुर ने।