Thursday, August 8, 2019

मिथिला नरेश ने शुरू किया था चौठ चन्द्र का व्रत

बात 878 साल (1571ई०) की है, मिथिला की गद्दी पर तीसरे नरेश म० म० हेमागंद ठाकुर गद्दीनशीं थे । अकबर बादशाह के 7 वर्षों की मालगुज़ारी (ज्ञात हो कि अकबर ने 1 लाख रुपए वार्षिक कर पर म०म० महेश ठाकुर को मिथिला का राज्य दिया था) नही चुका सकने पर उनके सिपाही उन्हें जैल में डाल दिए ।

जैल में पड़े-पड़े म० म० हेमांगद ठाकुर ने एक गणित शास्त्र की रचना की जो आज भी मिथिला में राहुपरागपंजी के नाम से ख्यात है । इसी पंजी के मदद स्व आज भी खगोलीय वैज्ञानिक चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण का सटीक पता लगा पाते हैं । इस ग्रन्थ के निर्माण में पाटी पेंसिल के अभाव में श्रीकुमार जमीन पर ही मिट्टी से लिखते और मिटाते रहते । उन्हें ऐसा करते देख कारागार के रक्षक उन्हें पागल समझ बादशाह को खबर भिजवाया की तिरहुत का जमींदार पागल हो गया है । दिन भर जमीन पर लिखता और मिटाता रहता है । बादशाह को जब इनकी खबर मिली तो इन्हें देखने एक दिन कारागार पहुंचे, वहाँ पहुंचकर उन्होंने इनसे पूछा क्या कर रहे हो ?, श्रीमान ठाकुर ने जवाब दिया राहुपरागपंजी बना रहे हैं । प्रतिउत्तर में सारी बातें समझाने पर बादशाह ने पूछा ग्रहण कब लगेगा ? श्री ठाकुर ने कहा इसी भाद्रपद की अमावस में ग्रहण लगेगा । बादशाह ने पूरा ब्यौरा लिया किधर से कितना ग्रहण लगेगा । श्री ठाकुर ने तुरंत जमीन पर पूरा परिलेख बना दिया । इस पर बादशाह ने कहा कि अगर इस मोताबिक देखा जाएगा तो कुल मालगुज़ारी माफ देकर विदाई आपकी करेंगे ।


श्री ठाकुर खुश हुए और संध्या वंदन के समय श्री गणेश की पूजा पश्चात चंद्रमा से प्रार्थनापूर्वक वादा किए की, हे चौठी चन्द्र अगर मेरा परिलेख सही मिल गया तो स्वदेश पहुंचकर शुक्लपक्ष की चतुर्थी (भाद्रपद) की पूजा अपने देश मे चलाएंगे । हम बहुत दिन से आपकी पूजा करते आ रहे हैं, देखिए कहीं विघ्न न हो ।

अनन्तर उक्तदिवस में परिलेख के पूर्ण मिलान होने से बादशाह अकबर ने सातो लाख की मालगुज़ारी माफ कर उन्हें दस हजार रुपए और एक हाथी विदाई में देकर स्वदेश विदा किये । और यहाँ कर उन्होंने वादे के मुताबिक चौठ चन्द्र का व्रत पूरे देश (मिथिला) में मनाने का ऐलान किया जो आजतक जीवित है ।

No comments:

Post a Comment

आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित हैं