Sunday, April 17, 2022

विद्यापतिक पदावलीमे अभिसार वर्णन


 

 
अभिशरणं तु अभिसारः । चलय, आगा बढ़ब, अभिसरण करव, अभिसार थिक । अंगार रसक एहि विभेद मे नायक नायिक द्वारा गुप्त रूपे, निर्धारित स्थान पर मिलनक हेतु अभिसरण प्रेमक विभिन्न चरणक एक अंश थिक ।

अभिसार-प्रेम परीक्षाक एक कसौटी थिक । एहि सं प्रियतमक प्रति प्रमोद्देगक संग-संग जीवनक उपेक्षा वा बलिदानक परिचय प्राप्त होइत अछि । प्रेमक धारा मे कोनो प्रकारक रुकावट आबि गेला सँ कोन प्रकारे प्रेम प्रवाह मे व्याकुलता, आवेगक तीव्रता, सीमोल्लंघन होइत छैक वा कोन प्रकार सँ अपन प्राणकेँ हाथ पर राखि कय ओकरा संग खेलबा मे उमंग आबैत अछि । एकर उदाहरण अभिसारे मे भेटैत छैक । एहि हेतु श्रृंगारि‍क कवि अभिसारक वर्णन बहुत मार्मिक ढंग सं कयलनि अछि ।

अभिसार तीन प्रकारक होइत अछि - शुक्लाभिसार, कृष्णाभिसार तथा दिवसाभिसार ।

विद्यापतिक अभिसार साहित्य शास्त्र-वर्णित भौतिक अभिसारे धरि सीमित नहि अछि । | प्रत्युत ओकर लक्ष्य विशेष कए आध्यात्मिक एकता अछि । कृष्णक सभ प्रकारक अभिसारकेँ विद्यापति सिद्धिदायक बुझैत छथि । हुनका अनुसार प्रेमक साधना अभिसारक साधन सँ सिद्ध होइत छैक । यथा

सबहि सुन्दरि साहस सार, तेहि तेजि के करय पार ।
सफल अभिसार सिद्धदायक, रूपे अभिनव कुसुमसायक । ।

ई जानितहुँ जे अभिसार प्रेमक सिद्धिदायक मंत्र छैक, कुल कामिनी राधा लोक लाजक भय सँ मंत्र-सिद्धिक पथ पर अग्रसर होयबा मे सशंकित भय रहल छथि । एक दिस नव अनुरागक उद्वेग अछि तँ दोसर दिस उपहासक भय । एहि प्रकारक अतर्द्वन्द्व सं राधाक हृदय जर्जर भय रहल अछि:

ओ भरे लागल नव सिनेहा, ए भरे कुलक गारि ।
सकल प्रेम सम्भारि न होएत, हठे विनासति नारि । ।

जाहि प्रकार सँ व्याधक डर सँ भीत हरिणी चारू दिस चौंकैत बचबाक उपाय ताकैत रहैत अछि, ओहि प्रकार सँ राधा एहि इन्द्र सँ बचबाक उपायकेँ शून्य दिशा मे ताकैत अछि :

अगमने प्रेम गमने फुल जाएत चिन्ता पज्ञ लागलि करिनी ।
मजे अवला दह दिस भमि झाँकेओ जनि उपाय डरे भिरू हरिनी । ।

प्रेमोद्विग्न राधा लोकापवाद सँ एतेक कुपित अछि जे अंतरंग सखीक द्वारा प्रियतमक लग पत्र पठेबामे सेहो डर लागि रहल छैक जे कतहु केओ ओकरा पत्र लए जाइत देखि ने लैक । एहि हेतु ओ चन्द्रमा सं अनुनय-विनय करैछ जे हे चन्द्रमा, आइ राति मे अहाँ नहि ऊगू । मात्र लोकापवादक कारण ओ साओन सँ अभिसार करवाक विचार रखैत अछि:

चन्दा जनि उग आजुक राति, पिआ के लिखिआ पठाओब पाँति ।
साओन स हम करब पिरीत, जत अभिमत अभिसारक रीति ।

साओन सँ हम करय पिरीत 'आ' 'कोटि रतन जलधर तोहे लेह' स व्यंजित होइत अछि जे ई आषाढ़क मास छैक । यद्यपि मेघ घेरने छैक तथापि राति ओतेक अन्हार नहि अछि जतेक कृष्णाभिसारिकाक हेतु अभीष्ट छैक । एहि हेतु तँ ओ साओन मास सँ प्रेम करबाक बात करैत अछि । अतएव नायिका कहैत अछि जे हे मेघ! पूर्ण आडम्बर सँ आजुक रातिकेँ भीषण अंधकारावृत कय दिअ आ हम ओकर बदला मे करोड़क करोड, रत्न देयौक । विद्यापति कहैत छथि जे अभिसार शुभ होयत, किएक ते सज्जन व्यक्ति दोसरक उपकार करैत अछि ।

एतावता ज्ञात होइत अछि जे कतय राधा पत्र लिखि साओन सँ अभिसार करय कहैछ मुदा वर्षाकाल में अभिसारक हेतु विवश भय जाइछ । किएक तँ प्रणयक प्रतिज्ञा-पूर्तिक चिन्ता मे ओ सोचौत अछि जे

'आशादय नहि करिए निरासे
'भल-न कएल मोजे देल बिसवासा' ।

विश्वास देबाक कारण प्रियतम कृष्ण अवश्य संकेत स्थल पर आबिकय उपस्थित होयत । वर्षाक एहि भयावह राति मे घनघोर वृष्टि भय रहल छेक, दसो दिसा कारी से पोतल अछि । आब की करबाक चाही? समय अभिसारक हेतु उत्तेजित कय रहल अछि । कृष्णकेँ निमंत्रित कय निराश करब सेहो ठीक नहि अछि । हुनकर स्मरण सँ प्राण व्याकुल भय रहल अछि । प्रज्वलित आगिक सदृश बिजली चमकि रहल छैक । वज्रपातक भयंकर शब्द भय रहल अछि । तथापि घर में रहल नहि जाइछ:

झर झर सघन जल धार,
दस दिश सबहुँ भेल अन्धियार ।
ए सरिश किए करब परकार,
अब जनि बारए हरि अभिसार । ।

नायिका जानैत अछि जे प्रेम पथ मे आपदा-बाधा, विघ्न आ व्याघात होइछ । मुदा एहि सँ की? यश-अपयश, विपदा आ बाधा सब के अंगीकार करैत नायिका कहैत अछि जे प्रेमक कारण चन्द्रमा अपन कोरा मे हरिणकेँ धारण कय राहुक ग्रास सहन नहि करैछ । आय जे होयवाक होयत हम अभिसार करवे करव । एकर कारण इहो अछि जे एकान्त जीवन दुस्सह भय रहल अछि । लोकापवादक कारण एहन नीक मुहूर्तकेँ नहि गमायब । एहन हालतमे अभिसार नहिं करब से अनर्थ होयत:

रयनि काजर बम भीम भुअज्भम कुलिस परए दरवार ।
गरज तरज मन रोसे बरिस घन संसअ पड् अभिसार

नायिका अपन देहक ओ रूप बनाय लैत अछि जे चन्द्रमाक किरणक सदुश ओकर देहक कान्ति चमकैत अछि । एहि हेतु सखी कहैत अछि जे आँखि पसारि कय हम सम्पूर्ण संसार में देखलहूँ मुदा तोरा सनक कोनो दोसर रमणी नहि भेटल । तँ अन्हारकेँ अपन दोस्त नहिं बुझू किएक तँ तोहर मुंह चन्द्रमाक सदृश छैक चन्द्रमा आ अन्हार मे मैत्री असंभव अछि । चन्द्रमा आ अन्हारमे स्वाभाविक विरोधकेँ छोडि कृष्णक समीप चलु । नायिका दूतीक वाक्यकेँ हितकर बुझलक आ ओहि मे कामदेव चालकक काज कयलक । अर्थात दूतीक वाक्य, प्रेममिलनक उद्भावना का संचालित कयलक तथा नायिका ओहि पथ पर अग्रसर भेल ।

विद्यापतिक नायिका पुरूषक भेष मे अभिसार करैत अछि । चन्द्रमा उदयाचल पर चठि कय तरूणीकेँ अभिसारक लेल प्रेरित करैत अछि । चन्द्रमाक किरण आकाश में पहुँच गेल छैक । नायिका नव प्रेमक चोटकेँ सहि नहि सकलनि । ओ पुरूष रूपधारण कए अभिसार कयल । केशकेँ साधुक समान खोपा बान्हलक । पुरूषक अनुकूल वस्त्र पहिरलक । मुदा स्थूल कुच वस्त्र सँ झापलो पर नहि झपायल । अतएव सितारकेँ हृदय सँ लगौलक । एहि वेष में नायिका कृष्ण लग आयलि । मुदा कृष्ण चीन्हि नहि सकलाह । कृष्ण संदेह मे पड़ि गेलथि, मुदा स्पर्श करितहि दुविधा दूर भय गेल ।

अंबहु राजपथ पुरजन जागि ।
चाँद किरन नभमंडल लागि ।
सहए न पारए नव-नव नेह ।
हरि हरि सुन्दरि पडिल संदेह ।

वास्तव में विद्यापतिक अभिसारक सफलता ओकर गोपनीयतामे अछि । एतय कविवरक कल्पना से कोनो कारण नहि रहि जाइछ जाहि सँ रहस्योद्घाटनक भय होयत । एतबे नहि विद्यापतिक नायिका अपन प्रेमक कारण दिनहिमे अभिसार करैत छथि । जखन की अभिसरण कार्यमे दिनक समय अनुपयुक्त होइत अछि आ बड़ कठिन होइत अछि । तथापि कने विद्यापतिक दिवसाभिसारिका के देखू :

राहु मेघ भए गरसल सूर, पथ परिचय दिवसहि भेल दूर ।
नहि बरिसए अवसन नहि होए, पुर परिजन संचर नहि कोए ।
...भनइ विद्यापति कवि कंठहार, कोटिहुँ न घट दिवस अभियार ।

कवि विद्यापति दिवासाभिसारणक खूब पक्षापाती छथि । उपर्युक्त पदमे दिवसाभिसारिकाक हेतु परिस्थिति किछ आरो अछि । मेघ सघन घटाटोप छैक जाहि सँ दिनमे रातुक भान होइत अछि । लोकक बाट पर आयब जायब बन्द अछि । मुदा एक दोसर दिवसाभिसारिका तँ लाज धाख छोडि टहाटही रोद वला दिन मे अभिसार कए अपन प्रेमक परिचय देछ:

तपनक ताप तपत भेलि महितल.
तातल बालू दहन समान ।
चढ़ल मनोरथ श्भामिनी पथ
ताप तपत नहिं जाना
प्रेमक गति दुरबार ।

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