Thursday, April 14, 2022

विद्यापतिक पदावलीमे मान वर्णन




प्रणयी एव प्रणयनीक प्रेम-लीलामे मानक एकटा प्रमुख स्‍थान रहैत छैक । प्रेमक अस्‍त्रागार मे मान एकटा महास्‍त्र अछि । ई दूधारी तलवार अछि । एकर चोट प्रहार करयवला आ जेकरा पर प्रहार करल जाइत छैक दुनू पर एकहि समान पड़ैछ ।

रससिद्ध कवि विद्यापति अपन पदावलीक मान प्रकारण मे सभ भेदोपभेदक आकर्षक विवेचन कयने छथि । विद्यापतिक नायिका मान-करबाक पद्धति सँ एखन अपरिचित अछि । एहि हेतु सखी ओकरा ओहि प्रणाली से अवगत करवैत अछि । सखी नायिका के बुझबैत अछि जे जखन नायक लग आबय तें महग भय जाएब...

खनहि खन महौष भइ किछु अरूण नयन कइ,
कपट धरि मान सम्मान लेही ।
कनक जयाँ प्रेम कसि पुनि पलटि बाँफ हसि
आधि सय अधर मधु-पान देही ।


अनेक यातना झेलि कए आ संकटक समुद्र पार कए राधा संकेत-गृह पहुँचैत अछि । प्राणाधारकेँ ओतय नहि पाबि व्याकुलताक संग प्रतीक्षामे जखन निराश भय गेलि तखन अभिसारक दिस उन्मुख करयवाली सखीक भर्त्सना तँ करबे कयलक संग-संग अपन प्रियतमक सेहो अनाप-सनाप सुनौलक राधाक उपालम्भ देख:

सखी हे बूझल कान्ह गोआरे ।
पितड़क टाँड़ काज दहु कओन लह, गुपर चकमक सार ।
हम तौँ कएल मन गेलहि होएत भल हम छल सुपुरूष भाने ।
तोहरे वचन सरखि कएल औखि देखि अमिय भरमे विष पाने । ।


राधा निराश भय घर घूमि जाइत अछि । प्रेमक विफलता क्रोधकेँ उभारैवला होइछ । तें जाहि प्रकार सँ 'गोहीक' कहला सँ लक्षणा द्वारा कोनो व्यक्तिक जड़ता एवं मदता स्पष्ट होइत अछि ओहि ओही प्रकार सँ एहि दूनू पद मे सेहो (गो + प) शब्द सँ कृष्णक मूर्खता लक्षित कयल गेल छैक । कृष्णकेँ काम-कला मे दक्ष बुझिए कए तेँ नायिका वा राधिका हुनका लग रमणक हेतु गेल छलि, मुदा ओकर आशा पर तुषारापात भय गलैक । एक चरवाहा काम-कला सदृश सूक्ष्म वस्तुकेँ की जानय गेल? वास्तवमे कृष्णक मूर्खत सँ नायिकाक एतेक सुन्दर राति व्यर्थमे बीत गेलि-कतक अनर्थ भेल ।

तखन कृष्ण दोसर प्रेमिकाक संग राति विताय कय राधाक समक्ष उपस्थित होइछ । कुंज भवनमे अनुपस्थितिक कारण अपन वाक्य चातुर्य सँ कहैत राधा के मनावय चाहैत छथि:

सुन सुन सुन्दरि कर अवधान, बिनु अपराध फहसि काहे आन ।
पूजनौं पशुपति जामिनी जागि, गमन विलम्ब भेल तेहि लागि ।
लागत मृगमद कुंकुम दाग, उचरइत मंत्र अधर नहि राग ।
नयन उजागर लोचन घोर, ताहि लगे तोहि मोहे बोलसि चोर
नव कविसेखर कि कहब तोय, सपथ करह तब परतीत होय ।


कृष्ण प्रेमक कारण झूठ बाजैत छथि से ओ कहैत छथि जे हम भरि राति जागि कय महादेवक पूजा कयलहुँ अछि तँ हमर ई हाल भेल अछि । तथापि राधाक विश्वास नहि होइछ । एहन समयमे विद्यापतिक नायिका कहैत अछि जे हे माधव! तो शपथ खा तखन तोहर बात पर विश्वास करब ।

मानिनि! अरून पुरष दिसि बहलि सगरि निसि गगन मलिन भेला चन्दा ।
मुदि गेलि कुमुदिनि तहआओ तोहर धनि मुनल मुख अरविन्दा । ।


एतबो पर राधा प्रसन्न नहि होइत अछि । कृष्ण घबराय जाइत छथि । ओ राधाक चरण छूए चाहेत छथि, मुदा साहस नहि होइत छनि । अन्तमे हाथ जोडि, फराकमे ठाइ भए राधाक मुँहक दिस ताकय लगैत छथि । यथा

परसइते चरण साहस ने होए, कर जोडि ठाढ़ वदन पुन जोए ।


मुदा राधा के अपमानक स्मरण होइत अछि । ओ बुझाइत अछि जे सदत होमय जनिते ने अछि । कृष्ण हारि कय राधाक लग सँ विदा होइत-होइत प्रेमोन्माद मे भौराक सम्बोधन कय कहैत छथि:

अरे अरे भमरा तोजे हित हमरा बंउसि आनह गज गामिनी रे ।
आजुकि रूसलि कालि जं बंउसब बितीति होइति मधु जामिनि रे । ।


तथापि राधाक मान भंग नहि भेलैक । निराश भय कृष्ण चल गेलाह । तखन कृष्णक दूती सैह राधा का अनेक प्रकार से बुझा रहल अछिः

विरह व्याकुल वकुल तरूअर, पेखल नन्द कुमार रे ।
नील नीरज नय सय सखि, हरइ नीर अपार रे ।


अर्थात सखी राधा सँ कहैत अछि- वकुलक गाछ तरमे वियोग सँ व्यथित कृष्णकेँ हम देखल । हुनका ऑखि सँ अत्यधिक अश्रुपात भय रहल छल । घसल चानन, कस्तूरी, कमल आ कपूरकेँ देखिकए ओ ऑखि मुनि धरती पर खसि परैत छथि । कामक लेल शीतलता प्रदान करयवला वस्तु हुनका लेल दुख:दायी अछि ।

तथापि राधा मानिनी बनल बैसलि रहलि । तखन सखी राधा सँ कहैत छथि जे हे मानवती । आब बेसीकाल मान करब उचित नहि थिक । एखन जे मिलनक समय अछि ओ फेर नहि भेटत । वर्तमान अवसर पर प्रिय-समागमक जे सुख होयत ओ सुख प्राप्त करयवाली जानि सकेत अछि । सभ गोपी अपन-अपन पतिक भोजन कराय देलक । मात्र तोरे टा पति भूखल अछि:

मानिनि आब उचित नहि मान ।
एखनुह रंग एहन सन लगइछ, एहन समय नहि आन ।
एहि अवसर पिय मिलन जेहन सुख, जकरहि हो से जान ।
अपन अपन पहु सबहु खोआओलि, भूखल तुअ जजमान ।


हे मानिनी! तोहर व्याकुल पति भीख माँगि रहल अछि । तेँ अपन सर्वस्व दान कए दे । जेना तीर्थस्थान पर पंडा यात्री सँ दान मागैत अछि आ पंडाक यात्री स्थानक पवित्रताक ध्यानमे राखि दान दैछ ठीक ओहिना राधाक सखी रति-दानक हेतु प्रेरित कय रहल अछि । एहन कृष्णकेँ पंडाक समान आ संभोगके प्रतिग्रहक समान कहल गेल छैक ।

दूतीक वचनकेँ राधा ठोकरा दैत अछि । तखन दूती कृष्णकेँ कहैत छथि जे हे माधव! मानवती राधाक मान अजेय छैक । हम ओकर विपरीत चरित्रकेँ देखि आश्चर्यित छी । ओ 'श्याम' रूपक दू अक्षर कए सुनय नहि चाहैत अछि । ओ एहि रूपके शत्रु बुझैत छैक । तोहर रूपक सदृश दोसर व्यक्ति सँ बातों धरि नहि करैत अछि । हम कोनाक आनि कय मिलायब ।

ओ अपन नील रंगक सन्न वस्तुकेँ त्यागि स्वेत वस्तु सँ विभूषित भय गेल अछि । छातीक श्याम चिन्ह (गोदना) केँ चाननक लेप-से आच्छादित कय देलक । चिंबुक पर जे तिल (कारी चिन्ह) छल तकरा चानन लगा झापि देलक । मेघ के नहि देखबाक हेतु चादरि सँ घेरि लेलक । जतेक श्याम वर्ण सखी छल सभ के अपना लग सँ हटा देलक । तमाम वृक्ष केँ चून सं ढौराय देलक । भ्रमरक डर सँ सुन्दरी चम्पा फूल तर चल गेल -

माधव, दुर्जय मानिनि मानि ।
विपरीत चरित परित्र चकरित भेल, न पुछा आधहु बानि ।
तुअ रूप साम अखर नहि सुनए. तुअ रूप रिपु सम मानि ।


जाहि नायिकाक मान मेरू पर्वत सदृश आ क्रोध सुमेरू पर्वत सदुश छैक ओकरा मनेयाक हेतु हे कृष्ण! स्वयं प्रस्थान करब तखनहि राधाक मान भंग होयत ।

दूतीक बात सुनि किंकर्तव्यविमूढ़ भय गेलाह । जे कृष्ण कोनो समयमे ब्रजवासीक डूबैत काल नह पर गोवर्धन पर्वत उठाय कए बचौने छलाह ओ स्वयं आय डूबि रहल छथि । हुनक उद्धार ओहि ब्रजबालाक हाथ मे आबि गेल अछि, की चमत्कार छैक ।

अन्ततोगत्वा तं राधा प्रेमक प्रतिमा अछि । प्रियतमक प्रेमकेँ कखन धरि रोकि सकितय? अनेक प्रकार सँ सखी द्वारा सम्बोधित भेला पर प्रेम सँ बताहि भेलि राधा स्वयं प्राणाधार कृष्ण लग दौड़ि जाइछ :

गगन गरज मेघा जामिनि घोर, रतनहु लागि ने संचरू चोर । ।
हना नेजि अएलहुँ निअ गेह, अपनहु न देखिअ अपनुक देह । ।


विद्यापति काव्य-जगतमे अभिनय भाषाक पादुर्भाव कयने छथि । नायिकाक मानक वर्णन सर्वत्र भेटेत अछि, मुदा नायकफ मानक वर्णन कदाचित कतहु भेटैत की नहि । एकाएक कृष्णकेँ अपन अपमानक स्मरण भेलनि । ओ स्वयं मान कय बैसि गेलाह ।

राधा माधव रत नहि मंदिर नियसय सययनक सूख ।
रस रस दारूण दंद उपजल, कान्ह चलल सब रूख ।


मान भंग भेलाक बाद रति रस में तल्लीनताक वर्णनक कल्पनाक वातक अनुभव के कहत? सौन्दर्योपासक विद्यापतिक एहि गीत में कल्पनाक गगनांगन उड़ानक भूरि-भूरि प्रशंसा करय पाबैत अछि । एहि पद मे श्लेषक कतेक सुन्दर चमत्कार लौकप्रलय मे सेहो प्रणयक चित्र के देखय आ देखावयवला एक मात्र कवि विद्यापति टा छथि ।

महाकवि विधापति एहि मान वर्णन मे नायिका एवं नायकक मानकेँ चरमोत्कर्ष पर पहुंचा देलनि अछि । नायक नायिका स्वयं मान भंग करवाक हेतु प्रस्तुत होइत छथि । मुदा मान भंग होइत अछि कृष्णक स्त्री वेष धारण कय राधा सं मानरूपी-रत्न माँगला पर । राधा सहर्ष मान रूपी रत्न दान दैत छथि । दूनूक पूर्णरूप सँ मान भंग होइत अछि । दूनू रति-क्रीड़ा मे लीन होइत-छथि ।

कवि विद्यापति कृष्णक मानक वर्णन कय साहित्य संसार मे एक नवीन सिद्धान्त स्थापित कयलनि अछि । विद्यापतिक श्रृंगार संबंधी पदावली मे मान वर्णन अपन विशेष स्थान रखैत अछि । मानक विविध रूप, विभिन्न स्थिति ओ वर्णनक चातुर्य हिनक वर्णनक वैशिष्ट्य थिक ।

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