Monday, April 18, 2022

मनमोहन झाक वीरभोग्यामे एकटा युगचेतना छल




मनमोहन झा माने मैथिली साहित्यक अनन्य करुण कथाकार । ओ अपन कोनो कथामे करुणरससँ विलग नहि भेलाह । चाहे अश्रुकण हो या वीर भोग्या, गंगापुत्र हो वा मिथिलाक निशापुरमे । सभ ठाम एके धारा, एके प्रवाह । हुनक सभ कथामे जीवनक बाट भेटैत अछि, ओहि समयक इतिहास भेटैत अछि, एकटा नव उपदेश भेटैत अछि मुदा से सब अश्रुकणक संग ।

मैथिली कथाकार मध्य मनमोहनबाबू एकटा भिन्न पथ पकड़ने छथि मुदा से रोचकताक संग । हुनका कोनो आन कथाकार संग तुलना नहि कए सकैत छी । कारण एहि पथ पर चलनिहार विरले भेटताह । हिनक कथा पाठकक माथसँ बेशी हृदयके छुबैत अछि । हमरा विश्वास अछि पाठकके हिनक कथा पढ़लासँ संतोष नहि होइत अछि । एक बेर पढ़लासँ जिज्ञासा आओर बढ़ि जाइत अछि । हिनक कथा पढ़लासँ लगैत अछि जेना कोनो पात्रसँ आत्मीयता भए गेल हो आ ई घटना हमरेसंग भेल हो तेना बुझाइत अछि ।

हरिमोहन झा कथाक शिल्प थिक हास्य ओ व्यंग्य तहिना मनमोहन झा कथाक शिल्प थिक करुणा । जहिना हरिमोहन झाके हास्य सम्राट कहल जाइत अछि तहिना हिनको करुण-सम्राट कहल जाइछ । प्रसिद्ध कथाकार मायानन्द मिश्र हिनका नोरक कथाकार कहलनि अछि । एकरा व्यंग्य नहि बुझबाक चाही । ओ बुझैत छलाह जे ई हिनक शिल्प थिकनि । तखन नोरक कथाकार कहियनि वा करुण सम्राट बात एके । से हिनक कथा पढ़लासँ मर्म सहजहिं बुझबामे आओत ।

मनमोहन बाबूक वीरभोग्या गल्प संग्रहमे सात गोट स्त्री प्रधान कथा संग्रहीत अछि । ताहिमे बेसी पत्रक माध्यमसँ कहल गेल कथा थीक । सुकेशी, एक पत्र : एक प्रेरणा आ वीरभोग्या जाहिमे प्रसिद्ध अछि । कथाकार स्वयं सेहो एहि सभ विषय पर कहने छथि जे एहि संग्रहमे अधिक पत्र कथा अछि जे समय-समय पर कोनो क्षणक मर्मसँ अनुप्राणित भए हम लिखल अछि । एहि कथा संग्रहमे आओर प्रमुख कथा अछि से थिक- ताजक निर्माण, चाँपकली, रीवर्स मीट ओ सप्तपदी ।

मनमोहन झाक गल्पसंग्रह वीरभोग्या मैथिलीक मौलिक गल्पसंग्रहक थीक । डॉ. अजय मिश्र द्वारा 1991 ई. मे संपादित ओ प्रकाशित कएल गेल अछि । एहि गल्पसंग्रहक प्रथम कथा थीक सुकेशी जे नामहिसँ कथाकारक रसिकतासँ परिचय करबैत अछि । ई पत्रात्मक शैलीमे एक सखी द्वारा दोसर अपन प्रिय सखी के लिखल गेल पत्र-कथा थीक । एहि कथा मध्य मिथिलाक सुकेशी कन्या कोना छिन्नकेशी भऽ गेलीह तकर मार्मिक वर्णन कएल गेल अछि । सुकेशी माने 'लुधकी लागल औंठिया केश' । सुकेशीक गार्हस्थ्य जीवनमे विवाहक पाँच वर्षक बाद अपन समक्ष रमेश रूपी पूर्व प्रेमी अबैत अछि । दुनू एक दोसरासँ ओहिना प्रेम करैत अछि जहिना पूर्वमे करैत रहथि । सुकेशी अपन मर्यादा बिसरि जाइत छथि । रमेशक सान्निध्यमे ओ बिसरि जाइत छथि जे हमर विवाह भए गेल अछि आ हम पाँच वर्षक बेटीक माय छी । ओ निर्विकार रूपें रमेशक सान्निध्यमे आबए लगैत छथि । मुदा पाँच वर्षक अबोध बेटी द्वारा मायके सचेत

कएल जाइत अलि । सुकेशीक बेटी रीता अपन मायक तुलना पम्पा नामक वेश्यासँ करैत अछि आ कहैत अछि जे माय तोरो केश पम्पे सन छौ । जहिना तोहर केशके रमेश मामा छुबैत छलथुन्ह तहिना पम्पाक केशके होटलबला छुबैत रहैत छैक । सुकेशीके अपन बेटी द्वारा कहल गेल गप्पसँ चेतना जगलन्हि आ ओ बुझि गेलीह हम पाप कऽ रहल छी । ओकर बाद रमेशक सोझा नहि गेलीह आ अपन केशके कैंचीसँ काटि छिन्नकेशी भए गेलीह । नव चेतना आ नव कर्मठतास बुझा पड़लन्हि जे हृदयमे अनुभूत विश्वास आ पवित्र नारीत्वक सृष्टि भए रहल अछि । आ ओ आत्मग्लानिस मुक्त भए गेलीह ।

मनमोहन झाक कथामे एक विशिष्ट धारा प्रवाहित होइत अछि । हिनक सब कथा पाठक एक नव युगचेतनासँ परिचित करबैत अछि । हिनक कथामे नवीनता आ युगीनता भेटैत अछि । अधिकांश कथा त्रिभुजीय प्रेम पर अछि जाहिमे प्रमुख रूपसँ 'सुकेशी' ओ 'वीरभोग्या'के देखल जा सकैत अछि । 'सुकेशी मे सुकेशीक विवाहोपरान्त रमेशक आगमन होइत अछि तऽ 'वीरभोग्या मे चण्डीक पहिल प्रेम सुधाकरबाबूक वीरगति प्राप्त कएलाक उपरान्त चन्द्रकान्तबाबूक । गल्पकार सब कथामे नायक ओ नायिकाकै दृढ़तासँ अमर्यादित बनवासँ रोकने रखने छथि । मर्यादाक हनन कतहु नहि भेल अछि । 'वीरभोग्या' कथा एहि बातकें लक्षित करैत अछि जे मैथिल लोकनि अपन देशक प्रति समर्पित रहैत छथि । आ मैथिलानी लोकनि अपन सर्वस्व त्यागकए हुनका लोकनिक संग दैत छथि । - 'ताजक निर्माण' कथामे लेखक सम्राट शाहजहाँके ललकारलन्हि अछि । हुनक बुद्धि विवेकपर कटाक्ष कएलन्हि अछि । एक दिश भारतक करोड़ो लोक भूखसँ छटपटाइत अछि आ दोसर दिश करोड़ो टाकासँ ताजमहलक निर्माण भेल अछि । यदि ओहि टाकासँ कोनो कल-कारखाना खोलल जइतैक तऽ कतेको लोककें रोजगार भेटि जइतैक

आ ओ सभ सुखसँ भोजन कऽ सकितथि । लेखकक कथा नव कहथु वा पुरान, अपन तकनीकमे ओ सभसँ धनिक छथि । सभ कथामे एकटा संदेश छोड़ि जाइत छथि । ।

मनमोहन झाक कथा यात्रा निरन्तर समतलीय आ सम्हरल रहल । कथाक शरीर बदलत गेलनि, आत्मा ओएह र हलनि । पूर्वहि कथा जकाँ हिनक 'एक पत्र : एक प्रेरणा' कथामे मातृभूमि-प्रेमके देखाओल गेल अछि । कथाक नायक उर्मिलाक प्रेममे उपेक्षित भए गंगामे कूदि मरबाक निश्चय करैत छथि मुदा बीचहिमे एकटा एहन घटना होइत अछि जे, निश्चय बदलि लैत छथि आ कहैत छथि, मरब हम अवश्य लेकिन गंगामे कुदिके नहि अपन मातृभूमिक सेवा करैत-करैत ।

नारी मनोदशाक एतेक सूक्ष्म विश्लेषण कोनो साहित्यकारे कए सकैत अछि, से गुणमे निष्णात छथि मनमोहन झा । 'चॉपकली मे लेखक नायिकाक पहिल प्रेमके तिरस्कृताक रूपमे देखौने छथि तऽ 'रीवर्समीट'मे नायकक पहिल प्रेमक पुनः मिलान कए पत्नीत्त्वक रूपमे सीताक छाया उपस्थित कएने छथि । 'सप्तपदीमे सेहो लेखक नायिका द्वारा अपन पतिकै मिथिलाक प्रेमक पाठ पढ़ौने छथि ।।

मनमोहन झाक कथा भाव ओ भाषामे, रंग ओ ढंगमे, शिल्प ओ रसमे, अभिधारणा ओ अभिव्यक्तिमे उत्कर्ष लगभग एके बिन्दु पर ठाढ़ अछि । एही कारणे ई एक भिन्न कोटिक कथाकारक रूपमे स्थापित भेल छथि । विशुद्ध मैथिली शब्दक प्रयोग कए शब्दक जादूगर भए गेल छथि । हिनक कथामे गाम-घर, नगर-उपनगर सभ समाहित अछि । वास्तवमे बुझना जाइत अछि जे ई सभ पृष्ठभूमि पर कथा लिखबामे सिद्धहस्त छथि । हिनक कथामे गामक कथा हो वा नगरक कथामे स्त्रीक प्रधानता अवश्य रहैत अछि । लेखकक कल्पनाक उड़ान अद्भुत अछि, जेना लगैत अछि सभटा अपने भोगने होथि । बुझा नहि पडैत अछि जे मिथिलाक एकटा खाँटी गाममे एक जमीन-जथावला मध्यवर्गीय कुलमे जनमल होथि ।

वास्तव में मनमोहन झा विशिष्ट पंक्तिक विशिष्ट लेखक छलाह । एक विशिष्ट धाराक कथाकार छलाह । अपन धारामे ई सामाजिक सत्यक नहि, मिथिलाक सत्यक नहि अपितु व्यक्तिक सत्यक कथा कहल । ई मनुष्यक संवेदनाक कथा कहल आओर कथा कहैत ई ओकर परिवेशक सांस्कृतिक स्थितिके ओकर मनोदशाकें सर्वथा कुशलतासँ रखैत रहलाह । तें हिनक कथामे नाटकीयता यथार्थमे लगैत अछि । अपन विलक्षण क्षमतासँ वास्तविकता झाँपि देने छथि । नारी-चरित्रक बहुलता ओ उद्दाम वासनाक रहितहुँ हिनक कथामे कतहु मर्यादाक हनन नहि भेल अछि । ते एकटा बात ध्यान राखब आवश्यक जे ई कतौ यथार्थवादी होइतो आदर्शके नहि छोड़ने छथि । लोकप्रियताक एकटा चिरंतन सत्यक उद्घाटन करब मनमोहन झाक कथाक उल्लेखनीय विशेषता थिक । अतः उपर्युक्त विषयक अवलोकन कएलाक उपरान्त एहि निष्कर्ष पर पहुँचैत छी जे हिनका नारी हृदयक अन्तस्थलमे प्रवेश करबाक अपूर्व कौशल अछि । हिनक कथामे कल्पना, करुणा एवं रोमांटिक संवेदनशीलताक प्रधान गुण रहैत अछि आओर सभ कथामे आद्यन्त भावुकता भरल अछि ।

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