Thursday, April 14, 2022

विद्यापतिक पदावली मे भक्ति भावना





विद्यापतिक पदावली में एहन अनेक पद अछि जे भक्ति भावना से ओत-प्रोत अछि । प्रायः विद्यापतिक प्रत्येक पदावलीक प्रारम्भ भगवतीक गीत सँ कएल गेल अछि:

जय जय भैरवि असुर भयाओनि पसुपति भामिनि माया ।
सहज सुमति वर दिअ हे गोसाओनि अनुगति गति तुअ पाया ।
घन घन घनन घुघुरू कत बाजए हन हन कर तुअ काता,
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक पुत्र विसरि जनु माता ।

विद्यापतिक कथन छनि जे ब्रह्मा आ सावित्रीक जन्म सेहो शक्तिएं सं भेलनि इएह दुनू मिलि कय वेद (ज्ञान) क प्रचार-प्रसार कएलनि । एहि हेतु चारू वेदक रूपमे शक्तिए प्रकट भेल छथि:

जय जय भगवति भीमा भयानी ।
चारि वेदे अवतरू ब्रह्मवादिनी ।
हरिहर ब्रह्मा पुछइते भने ।
एकओ ने जान तुअ आदि मरमे ।

कवि अपन अनेक पदमे राधा-कृष्णक नख-शिख वर्णन कयने छथि । ओ सभ पदके ग्रियर्सन वैष्‍णव पद कहैत छथि :

It now remains to consider the matter of vidyapati's poems. They are nearly all vaishnava hymns or Bhajans ........

वास्तव में विद्यापति राधा-कृष्णक भक्त छलाह:

विद्यापति एहो भाने, गुजरि भजु भगवाने ।

पुनश्च-

भनहि विद्यापति सुनु वर जोवति हरिक चरण करू सेवा ।

पुनश्च

धन्य धन्य तोर भाग गोआलिनि हरि भजु रुपय हुलसिया । ।

एतबय नहि विद्यापति का दृढ़ विश्वास छलनि व ज कपट छोड़ि कय कृष्णक भजन कयल जायत तँ अन्तमे मुक्ति अवश्यम्भावी अछि:

भनहि विद्यापति सुनहे सुचेतनि हरि सओ कइसन मान है ।
कपट तेज कए भजह जे हरि सजे अन्तकाल होए ठाम है ।

एहि प्रमाणक अतिरिक्त एकटा आरो स्पष्ट प्रमाण पदावलीमे अछि जे विद्यापति कृष्णक भक्त अवश्य छलाह । ओ अपन जीवनक अन्तिम समय मे पश्चाताप भरल विनयमे कष्णकेँ सम्‍बोधन कयलनि अछि । हाथमे तुलसी आ तिल लय ओ हुनके चरण पर राखैत छथि । किएक तँ भव सागर सँ उद्धार वएह कय सकैत छथिः

संसारक नश्वरता विद्यापतिक हृदयकेँ निर्वेद सँ भरि देछ । ओ पश्चाताप आ आत्मग्लानि व्यक्त करैत भगवान कृष्ण सँ अपन उद्धारक प्रार्थना करैत छथि । हम अहाँक शरण मे छी । अहाँक अतिरिक्त हमरा हेतु कतहु गति नहि अछि । अहीं अनाथक नाथ कहबैत छी । अतएव हमरो उद्धारक भार अहीं पर अछि । कवि-कृष्णक सौन्दर्य के अनुपमेय कहैत छथि:

माधव कत तोर करब बड़ाइ ।
उपमा तोहर कहव ककरा हम, कहितहुँ अधिक लजाई ।
जौ श्रीखंड सौरभ अति दुरलभ, तौँ पुनि काठ कठोरे ।

ई कृष्ण कीर्तनक श्रेष्ठ गीत थिक । कवि ठीक ओहिना राधाक अपार आ अनन्त सौन्दर्य-राशिक वर्णन कय हुनक वन्दना कयलनि अछि:

देख देख राधा रूप अपार ।
अपरूप के बिहि आनि मिलाओल,
खिति-तल लावनि-सार । ।
अंगहि अंग-अनंग मुरझाएत,
हेरए पड़ाए अधीर ।

भक्तकवि विद्यापति कहैत छथि जे जहिना राधाक रूप के देखि नहि जानि कतेक अपार सौन्दर्यमयी लक्ष्मी सेहो आत्मविभोर भय हुनक चरण-तल पर अपना का समर्पित कय देत छथि‍ तहिना हमर मोन हुनका चरण कमल पर राति-दिन लागल रहैत अछि । कविक जानकी वन्दना देखूः

रे नरनाह सतत भजु ताहि, जाहि नहि जननि जनक नहि जाही । ।
वसु नइहरवा ससुरा के नाम, जननिक सिर चढ़ि गेलि ओहि गाम । ।

एहि पदमे विद्यापति सीताजीकेँ पृथ्वी सँ जन्म, सासुर आ पुनः पृथ्वी मे समा जयबाक वर्णन करैत छथि । एहि पदमे सीताजी सँ संबंधित पौराणिक कथाक समावेश कयल गेल अछि ।

विद्यापतिक सब सँ बेसी पद शिव विषयक छनि । शिवक प्रति लिखल पद प्रार्थना आ नचारीमे ओ शिव आ पार्वतीक स्तुति भाव-विभोर भय करैत छथि:

जय-जय संकर जय त्रिपुरारि
जय अध पुरूष जयति अध नारि । ।

विद्यापतिक शिव आ विष्णु एक छथि:

भल हरि भल हर भरल तुअ कला ।
खन पीत वसन खनहि बघशला ।
खन पंचानन खन भुज चारि ।
खने संकर खन देव मुरारि ।

शिवजीक प्रति लिखल गेल पदमे तँ कविक भाव-तन्मयता एवं देन्य भावनाविशेष मुखरित भेल अछि । किएक ते ओ शिवक भक्त छलाह:

हरि नहि बिसरब मो ममिता
हम नर अधम परम पतिता ।
जम के द्वार जवाब कओन देव ।
जखन बुझत निज गुन कर बतिया ।

कवि विद्यापति एक पद में गंगाक पौराणिक उत्पत्तिक वर्णन करैत छथि:

ब्रह्म कमंडल यास सुवासिनि, सागर नागर गृह वाले ।
पातक महिष विदारण कारण, धृत करवाल बीचि माले ।

क्रमशः देखू कविक गंगा स्तुति:

बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे ।
छोड़इत निकट नवन वह नीरे ।

एतय कविक गंगाक प्रति हार्दिक भक्ति-भावना प्रदर्शित अछि । विद्यापति अपन अंतिम समय जानि कय गंगाक दर्शन हेतु चलि देल । शारीरिक विवशताक कारण तट धरि नहि पहुँच सकलाह । हनका तखन गंगा क दर्शन सँ पहिनहि रूकय पड़लनि । कहल जाइछ जे ओतहि प्रस्तुत पदक सृजन कयल । ओ कहैत छथि जे हे ज्ञानमयी मातेश्वरी! हम अहाँक जगक स्पर्श पैर सँ कयने छी । अंहाँ हमर एहि अपराध के क्षमा कय देव । हमरा तँ बुझाइत अछि जे जप तप ध्यान आदि सभ व्यर्थ थिक । एहिसँ कोनो लाभ नहि भेल । किएक त अहाँक जल मे एक बेरि स्नान कएला-सँ जीवन कृतार्थ भय जाइत छैक । तँ हम अहाँक बारम्बार प्रार्थना करैत छी जे अन्तिमकाल हमरा बिसरि नहि जायय ।

कहल जाइत अछि, जे गंगा महाकवि विद्यापतिक भक्ति भावना सँ प्रसन्न भय स्वयं पहुचि गेलथिन । ओतहि हुनक-कल कल करैत जलधारामे विद्यापति प्राण त्याग कयलनि । बादमे ओतय स्वयं शिवलिंग उदित भेल छल । वर्तमान मे ओतय शिवमंदिर विराजमान अछि । ओहि स्थानक नाम विद्यापति नगर पड़ल अछि । विद्यापतिक भक्‍ति‍ पद सभक अवलोकन सँ ज्ञात होइत अछि जे ओ हिन्‍दू देवी-देवताक यथार्थ रूपसँ परिचित छलाह । हुनक रचनामे कोनो देवी-देवताक लेल भेद-भावना नहि छल । ओ अपन देवी देवताक समग्र रूपें वर्णन केने छथि ।


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