Wednesday, April 13, 2022

तिरहुता लिपिक महत्व




सभ्य मानव आ लिपिक बहुत पुरान संबंध रहल अछि । लोकक समझ, इच्छा, भाव आदिक अभिव्यक्ति करैत अछि । एहि अभिव्यक्तिक सभक सुरक्षित रखबाक लेल मानव शुरूए सँ एकगोट स्मृति, चेन्ह, साधन आ माध्यमक रूपमे प्रयोग करैत रहल अछि । जे पहिने चित्राक्षर, पुनः मानव समाजक प्रगतिक संगे प्रतीकाक्षरक रूपमे विकसित भेल जे वस्तुतः मानव सभ्यताक विकासक परिचायक थिका तेँ लिपिक अपन विशिष्ट महत्व अछि।

तिरहुता वा मिथिलाक्षरक एकटा दीर्घ इतिहास आ पंरपरा रहल अछि । एहि लिपिक उद्भवक आधार जं ब्राह्मी लिपि आदि तऽ एकर निर्माण आ विकास मनुष्यक विविध अंगक, आकार, वैदिक कर्मकाण्डमे व्यवहार कवल गेल मंडप, त्रिकोण, चतुष्कोण आ तांत्रिक प्रयोगक वस्तुसभक आधारपर भेला जे एक तरहें मिथिला संस्कृतिक प्रतिनिधित्व सेहो करैत अछि ।

तिरहुताक किछु विलक्षणता एकरा महत्‍वपूर्ण बनाबैत अछि जेना- एकर चित्राकार रूप एकरा अनेको लिपिस सरल, सुबोध आ सुन्दर बनाबैत अछि । एकर चित्रात्मकता एकर प्राचीनताके सेहो प्रमाणित करैत अछि ।

मिथिलाक्षर त्रिकोण वा चतुष्कोण आकार होयबाक कारणे लिखबामे विशेष सुलभ अछि । नागरादिक लिपिक वर्ण वृत्ताकारक होइत अछि तथा एकटा त्रिभुज बनयबाक अपेक्षा एकटा वृत्र बनायब अवश्य कठिन होइत अछि ।

जेना

देवनागरी : द, ध, प, ब, य, र ष, तिरहुता : मैथिलीक मात्रक हेतु अपन एहन सुलभ एवं सुन्दर लिपिक उपयोग करैत रहब नितान्त आवश्यक अछि । अपन संस्कृतिक संवर्द्धनक हेतु, अपन पूर्वजक द्वारा मिथिलाक्षरमे लिखित पोथीक अध्ययन हेतु ओकरा रोज पढ़बाक चाही, एहि लिपिसँ मिलैत जुलैत अन्य लिपि, यथा, बंगला, असामी, उड़ियाक सिखबाक हेतु तथा अपन प्रतिष्ठाक रक्षा हेतु प्रत्येक मैथिलक ई परम कर्त्तव्य अछि जे ओ अपन लिपिक संबंधमे पर्याप्त ज्ञान अर्जित कय ओकर निरंतर व्यवहार करथि । विशेषस विशेष व्यक्ति द्वारा एकर उपयोग भेने लिपिमे चिकनाहटि अऔतैक, ओकर क्लिष्टता हटतेक । मैथिली भाषाक चिरध्यायी एवं स्वतंत्र अस्तित्व बनओने रखवाक हेतु आत्मनिर्भर रहब आवश्यक अछि आ ताहि हेतु प्रयोजन अछि अपन लिपिक निरंतर व्यवहार ते मैथिल लोकनिक अपन लिपिक अपन अन्तर्दृष्टिस ओझन नहि करबाक चाही । ई गप कखनो नहि विसरबाक चाही जे भोजपुरी, अवधी, ब्रज, मगही भाषाक बीच जखन मैथिलीके आठम अनुसूची मे शामिल कयल गेल तखन सबसँ प्रमुख कारण बनल एकर अपन स्वतंत्र लिपि होयब, जे तिरहुता अछि ।

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