Wednesday, April 13, 2022

तिरहुता लिपिक विशेषता






तिरहुता लिपि वा मिथिलाक्षर प्रतीकात्मक रूपमे मैथिली भाषाक प्रतिष्ठाक परिचायक थिक । नव भारतीय आर्य भाषाक बीच अपन अलग स्थान बनयबामे निश्चित रूपें एहि लिपिक विशेष योदान रहल । एतबे नहि दीर्घ काल धरि मिथिला क्षेत्र में संस्कृत साहित्यक रचनो एहि लिपिमे भेल जकर प्रमाण थिक 1415 ई. मे एहि लिपिमे विद्यापति द्वारा लिपिबद्ध भागवतक प्रतिलिपि । तत्कालीन परिवेशमे एकर मिथिला आ नेपाल मे राजकाजक लिपिक रूपमे प्रयोग होयबाक अनेक प्रमाण शिलालेख या ताम्रपत्र सभमे मेटैत अछि । 2003 ई. मे जखन मैथिलीक आठम अनुसूची में शामिल कयल गेल तखन यैह लिपि मैथिलीक लेल तारणहार बनल ।

जतऽ धरि एकर विशेषताक प्रश्न अछि एकरा निम्नांकित रूपमे राखल जा सकैत अछि ।

(क) अपन चित्राकार रूप एक दिश एकर प्राचीनताकेँ प्रमाणित करैत अछि तऽ दोसर दिस लिपिके आन अनेक लिपिक सरल, सुबोध आ सुन्दर बनाबैत अछि ।

(ख) ई त्रिकोण वा चतुष्कोण आकारक होयबाक कारणे नागरी आदि वृत्ताकार लिपिक अपेक्षा लिखबाम बेसी सरल होएत अछि कारण एकटा त्रिभुजक अपेक्षा वृत्त बनायब बेसी कठिन होइत अछि ।

(ग) तिरहुता लिपिक वर्ण विन्यासक नियम कामधेनुतंत्र आ वणोद्धातंत्रमे प्रकाशित अछि । एकर प्रचार बंगाल आ आसम धरि भेटेछ ।

(घ) एहि लिपिमे जतऽ स्वर आ व्यंजन ध्वनित स्वतंत्र सैद्धांतिक संकेत विद्यमान अछि । ओतहि उच्चारणाक आधार पर स्वर या व्यंजनक वर्गीकरण होइत अछि तेँ स्वर आ व्यंजनक वर्णमाला अलग अलग होएत अछि । एतबे नहि उच्चारण अवयव बाह्य आ आतंरिक प्रयत्न आदिक आधार पर सेहो स्वर आ व्यंजनक निर्धारण होएत अछि जेना अ, ई, ओ उच्चारणक लेल जेहन मुखाकृति बनैत अछि ओहिस मिलैत जुलैत सेहो बनैत अहि ।

जेना'अ'क उच्चारणमे आधा मुंह खुजैत अछि आ जीभ मध्यमे रहैत अछि तहिना एकरा लिखल सेहो जाएत अछि- अ

'उ' क उच्चारण मुंहके गोल फरि उच्चारित होएत अछि त ओकर अक्षर रचना सेहो ओहने होएत अछि - उ ।

(ड.) मिथिलाक्षरमे 49 गोट मूल लिपि चिह्न होएत अछि । मात्राक चेन्ह आ अंकक चेन्ह अलग होएत अछि । ई वर्णमाला अक्षरप्रधान होएत अछि ध्वनि प्रधान नहि ।

(च) तिरहुता लिपिमे शिरो रेखाबला लिपि चापाकार होएत अछि । जेना- उ, भ आदि (छ) उकारक (ु) मात्रा तिरहुतामे नागरी अंक 3 (तीन) जकाँ बनाय बिनु हाथ उठओने ऊध्यरेखा बनाओल जाएत अछि । जेना (कु)

(ज) अनुस्वार आ चंद्रबिंदु तिरहुता मे नागरी जकाँ शिरोरेखाक उपर राखल जाइत अछि । जेना- (अ)

(झ) मात्राक दृष्टिस मिथिलाक्षर पूर्ण अछि । मिथिलाक्षर मे हस्‍व आ दीर्घ मात्रामे स्पष्ट भेद अछि । मैथिलीम मात्राक प्रयोग स्थान अवश्य धेरैत अछि मुदा एहिस उच्चारणमे कानो प्रकारक भ्रम वा आशंका नहि होइछ ।

(अ) उच्चारण स्थानक अनुरूप व्यंजनकेँ पांच वर्ग में बाँटल जा सकैत अछि । कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दन्तव्य ओष्ट्य ।

(ट) अन्तस्थ आ उष्म ध्वनि सेहो अजग अछि अनुनासिक (नाक के प्रयोग कम मात्राक) ध्वनिक विशेष विवरण भेटैछ जकर अलग अलग अक्षरसंग अयला पर ध्वनि उच्चारण अन्तर भऽ जाइछ । ते प्रत्येक वर्णनक संग अपन-अपन अनुनासिक होएत अछि ।

(ठ) एकराम जे अक्षर लिखत जाइत अछि तकर वैह उच्चारण होएत अछि अंग्रेजी जका Put (पुट) But (बट) जका नहि ।

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