Monday, April 18, 2022

मनमोहन झाक कथा संग्रह वीरभोग्या


मनमोहन झाक कथा मे आधुनिक तकनीक, शैली, पृष्ठभूमि तथा मनोवैज्ञानिक विश्लेषणात्मक चित्रण एवं चरम विन्दु रहैत अछि । लगभग सभ कथा करुण-रस प्रधान होइत अछि, मुदा से कथाक अन्तमे बुझबाक योग्य होइत अछि, जखन कि अनायास अश्रुपूर्ण भऽ उठैछ । कथा प्रेम, शृंगार, संयोगसँ प्रारम्भ होइछ आ अन्त दुखान्त भऽ उठैत अछि । वियोग एवं असफल प्रणयक वेदनासँ कथाक चरित्रक संगहि पाठक सेहो दुखी भऽ उठैत छथि । मुदा मनमोहन झाजीक सभ कथा दुखान्ते नहि छनि, किछु सुखान्तो छनि । कथानक रोमान्स आ नायक-नायिकाक बीच सहज आकर्षण-प्रत्याकर्षणसँ भरल रहैछ ।

हिनक कथा-संग्रह 'वीरभोग्या'क प्रकाशन 1991 ई.मे भेलनि । एहि संकलनमे सेहो सात गाट कथा- सुकेशी, ताजक निर्माण, एकपत्र : एकप्रेरणा, चाँपकली, रीवर्स मीट, सप्तपदी तथा वीरभोग्या संकलित अछि। मैथिली-साहित्यक विद्वान् समीक्षक प्रो० रमानाथ झा एहि संकलनक 'चॉपकली' शीर्षक कथाकै मनमोहन झाक सर्वोत्कृष्ट कथा मानैत छथि । एहि सातो गोट कथाक अंत दुःखान्त अछि तथा करुण-रस प्रधान अछि । कथाकार मनमोहन झा रससिद्ध साहित्यकार छथि । साहित्य-शास्त्री लोकनि करुण रसके प्रधान मानैत छथि ।

एहि संग्रहक प्रथम कथा 'सुकेशी' पत्रात्मक शैलीमे लिखल गेल अछि । सुकेशी अपन कथा अपन प्रिय सखी प्रभाकै लिखैत 'छिन्नकेशी' कोना भऽ जाइछ तथा संयोगक सभ स्थिति प्राप्त रहितहुँ कोना एकाएक वियोग उपस्थित भऽ जाइत छैक से पढ़ि कोन पाठकक हृदय एकबेर द्रवित नहि भऽ उठतैक तथा आँखिसँ दू ठोप नोर नहि खसि पड़तैक !

परञ्च दुखान्त होइतहुँ ई कथा एक गोट नीक संदेश दऽ जाइत अछि जे विवाहिता युवतीकै दोसर प्रेमी पुरुषसे शारीरिक सम्बन्ध नहि बनेबाक चाही । सुकेशीक जाहि सुन्दर केशपर ओकर प्रेमी रमेशक लोलुप हाथ स्पर्श कयने छलैक, तकरा ओ कैंचीसँ खप दऽ काटि दैत अछि । आ क्षण भरिमे सुकेशीसँ छिन्नकेशी बनि जाइत अछि । सम्पूर्ण वातावरणमे कचोटक संग-संग एक नव चेतनाक द्वारिपर पवित्र नारीत्वक सृष्टि भऽ जाइत छैक । करुण रसक सम्बन्यमे ई स्मरणीय थिक जे ओकर रसानुभूति दुखद हेबाक संग-संग कखनहुँ-कखनहुँ सुखद सेहो भऽ जाइत छैक । एहिं प्रकारक कथानकक कल्पना करवामे मनमोहन झा माहिर छथि ।

दोसर कथा 'ताजक निर्माण' दू प्रकारक दृश्यक निर्माण करैत अछि,-एक आगराक यमुनाक एकदिस वैभव एवं विलासिताक तँ दोसर दिस एक गोट गरीब किसानक अकिंचन हेबाक स्थितिक । ताजमहल प्रथम स्थितिक सृष्टि करैत अछि तँ दोसर दिस किसानक पत्नीक दुखद निधनक । कथा एक गोट क्रांतिक संदेश दऽ जाइछ । किसानक पत्नी मरबाकाल अपन पतिकें कहि जाइत छैक जे ओकर स्मरण करबाक लेल ताजमहल तँ नहि बनाओल जा सकैत छैक मुदा ओ अपन छोट खेतमे डाहल जाय एवं ओकर छाउर खेतमे छिडिआओल जाइक । किसान अपन पत्नीक चितापर एकटा सिनुरिया आमक गाछ रोपि दैत छैक आ ओहि गाछपर जखन वसंतमे कोइली-मधुमय ध्वनि भरैत अछि तँ ओहिस मुगल सम्राट द्वारा अपन प्रियतमा मुमताजक चितापर बनाओल गेल ताजमहल गुंजित भऽ उठैत अछि । ओहि कोइलीक ध्वनिक संग एक गोट नवीन, कर्मठ, क्रियाशील, भारतक नव पीढ़ीक जन्म होइत छैक ।

'एकपत्र : एक प्रेरणामे' एक प्रेमी अपन प्रेयसीक उपेक्षासँ प्राणोत्सर्ग करबाक लेल गंगाक जलमे कूदय चाहैत अछि । मुदा ओही क्षणमे ओ आंध्रप्रदेशक स्थापनाक लेल अनशन करैत प्राण देनिहार रामुलुक समाचार अखबारमे पद्वैत अछि आ ओकर संकल्प बदलि जाइत छैक । आब ओ युवक अपन मातृभूमि मिथिलाक माटि, संस्कृति, भाषाक उत्थानक लेल कोनो कारागारक कोठलीमे किंवा राजभक्त पुलिसक गोलीसँ अपन उत्सर्ग करय चाहैत अछि । एक गोट प्रेयसीक क्षुद्र शरीरक प्राप्तिक बदला एकटा महान ओ उदात्त उद्देश्यक सफलताक लेल अपन प्राण निछावर करब कतेक पैघ उपलब्धि थिक, तकर ज्ञान ओकरा भऽ जाइत छैक ! एहू कथाक अन्त दुख ओ सुख दुनूक मिश्रणसँ होइत अछि ।

'चॉपकली' एक गोट असाधारण कथा अछि । एहि कथाक जे कथानक अछि ताहिसँ हमरा में ट नहि भेल छल । एतय छथि उमा आ मंजुकेशी । विवाहक किछुए दिनक बाद उमाक पति समीरनाथ बम्बई जाकय चार्टर्ड एकाउंट्स पढ़य जयबाकाल उमाक अपन मायक द्वारा देल गेल एकेटा सोनक गहना 'चॉपकली' अपन नवोढ़ास लए बेचय चाहैत छथि । उमा तैयार नहि भेलथिन । समीर चल गेलाह दोसर दिन उमा देखैत छथि जे गहनाक कंतोरमे 'चॉपकली' नहि आछि । ओ विश्वास का लेलनिजे हुनक पति ओ गहना चोराकलऽ गेलाह । मुदा तथ्य किछु दोसर रहैक । 'चॉपकली' उमाक पिता श्याम सुन्दर बाबू अपन एक प्रेयसी वारांगनाकें चुपचाप चोराकऽ दऽ अयलथिन । ई भेद तखन खूजल जखन उमा पटनामे रहैत मंजुकेशीक गरदनिमे 'चॉपकली के देखलनि ।

एहि क्षण उमा एवं हुनक माय, मात्र माय आ बेटी नहि छलीह-ओ दू गोट नारी छलीह । दुनूक हृदयक ताप, झोभ ओ दुःख एके रंगक भऽ गेल छलनि । माय बजलीह-एखन दुनूगोटे दू टा नारी छी, मर्मक वेदना एके तरहक अछि । दुनू गोटेक ऑखिर्स नोर बहय लगलनि ।

'रीवर्समीट' सेहो एक गोट प्रणयक सम्बन्धमे कथा कहैत अछि । टाटानगरक "रीवर्समीट" ओहि स्थानकें कहल जाइत छलैक, जतय स्वर्णरेखा ओ खरकाइ नदीक संगम छैक । रमेश आ सुषमा युगल प्रेमी 'रीवर्समीट' पर तँ जाइत छथि, मुदा ओतय आनन्दक बदलामे क्षोभ आ दुख हाथ लगैत छनि । कारण ओतय सुषमार्के अपन सौतिन लीली-दाइक विषयमे जानकारी प्राप्त भऽ जाइत छनि ।

मुदा कथाक अन्त सुखान्त अछि । बहुत दिनक बाद प्रेमी लीली-दाइके छोड़ि अपन पत्नी जिनकास वैदिक रीतिसँ विवाह भेल छलनि, ओहि सुषमा मानगोक स्वर्णरेखाक पुलपर लऽ जाय चाहैत छलाह आ बजलाह-"हमरा विश्वास अछि अहाँक पवित्र प्रतिच्छाया ग्रहण करबाक लेल किछु काल स्वर्णरेखाक जल अवश्य स्थिर भऽ जाइत ।"

गल्पकार झाजी कथाक अन्तमे एक गोट पवित्र एवं उदात्त भावनाक सरिता बहबैत कहैत छथि-"एहि जीवनक पंचवटीमे कतेक ने लीली-दाइ औतीह, आ कते बेर पथभ्रान्त व्यक्ति हुनक शृंगारजाल दिस आकृष्ट होइत, किन्तु जतय पवित्र-पत्नीत्वक रूपमे सीताक छाया उपस्थित रहतैक ओतय मानव मानवे रहत ।"

एहि संग्रहक 'सप्तपदी' बहुत आकर्षक कथा अछि । ई एक गोट ऐतिहासिक कथा थिक तथा बंगालक आदिसूर एवं मिथिलाक संप्रभुता-सम्पन्नक कर्णाट वंशीय नान्यदेवक समयक कथा कहैछ । देवव्रत नामक एक व्यक्ति बंगालक राजाक द्वारा षड्यंत्र करबाक लेल मिथिला पठाओल गेल छथि । ओ मैथिल छलाह ओ तत्कालीन मैथिल विद्वान गंगेश उपाध्यापक पाठशालामे पढ़बाक उपक्रम करैत रहय लगलाह । संयोग एहेन छलैक जे ओही विद्यापीठमे हुनक विवाहिता पत्नी भेटि गेलथिन, जिनका ओ वेदीपरसँ विना सप्तपदी पूरा केनहि छोड़ि भागि आयल छलाह । कारण हुनक पत्नी-विवाहे कालमे बेहोश भऽ गेलथिन आ हुनका भेलनि जे कनियाँ मिर्गीक रोगसँ ग्रस्त छथि, देवव्रत मात्र चारि फेरा लगौने छलाह आ विवाहके पूर्ण हेबामे तीन पद आओरो चलब आवश्यक छलैक । पत्नी महाश्वेता आ देवव्रत, पति ओ पत्नीक भेंट भऽ जाइत अछि तथा महाश्वेताक प्रेरणासँ पति बंगालक पक्षमे षड्यन्त्रकै छोड़ि मिथिला अपन मातृभूमिक भक्त बनि जाइत छथि । तीन पद चलि गुरुकें प्रणाम करबाक लेल पहुँचि जाइत छथि ।

'वीरभोग्या' एहि संकलनक अन्तिम कथा थिक । इहो कथा पत्रात्मक शैलीमे लिखित अछि । चण्डी अपन सखी मीराकें पत्र लिखैत छथि । चण्डी आजुक जाग्रत महिला जेकाँ घरक दुआरि एवं कतिपय पुरान एवं रूढ़िवादी विचारस ग्रस्त समाजक सीमाकै लाघि व्यापक एवं पसरल बाहरक दुनिया देखय चाहैत छथि, चण्डी ओकरे कथा कहैत छथि। हुनका अपन भाउजक भाइ सुघाकरसँ प्रेम भऽ गेल छनि । सुधाकर यदा-कदा अपन बहिनीक ओतय अबैत रहैत छथि। एहि खेप सुधाकर अपन मसियौत भाइ चन्द्रकान्तक संगे अयलाह । चन्द्रकान्त सेहो चण्डीसँ आकर्षित छथि । एहिठाम एक पुष्प आ दूगोट भँवरक स्थिति उत्पन्न भऽ गेल अछि । दुनूमे एक गोट इहो समान बात छनि जे दूनू गोटे फौजी जवान छथि। . सुधाकर बंगाल राइफल्सक जवान रहथि । एहि बेर दुनू गोटे जखन चण्डीक ओतय जाय लागल रहथि तँ खूजल खिड़कीसँ भोरक पहर चण्डीक अस्तव्यस्त शरीरके देखैत रहथि । सुधाकर पठानकोट इंडो-पाक युद्धक फ्रन्टपर विदा भेल छलाह । ओ जयबाकाल चण्डीक हाथ जोरसँ दबैत बाजि उठल रहथि जे एक दिन ओ हुनका अपना रहताह ।

चण्डी अपन सखीक लिखैत छथिन-सखि ! ओ राति कोना बीतल से सखीके कोना कहू ? जीवनक "एहेन "क्षण जे स्नेहदान संग अमूल्य वस्तु देलक, सएह आब-विरहक परिताप सेहो संगहि अनलक" चिर मिलनक आशा आ तत्कालीन विरहक स्थितिक संयुक्त वातावारणक निर्माण करबामे मनमोहन झा बहुत दक्ष छथि ।

मुदा नियति किछु आओर सोचैत छल । पठानकोट गेलाक एक सप्ताहक अभ्यन्तर लाहौरक इच्छोगिल नहरिक पाकिस्तानी मोर्चापर सुधाकर शहीद भऽ गेलाह । छह वर्षक बाद चन्द्रकान्त सेहो बंगलादेशक मुक्तिवाहिनीक संग पाकिस्तानी आततायीसँ लड़बाक लेल विदा भेलाह ओ एहि युद्धमे आहत भेलाह, दहिना हाथ बारूदक विषसँ बेकार । भऽ गेलनि आ सैनिक अस्पतालमे हुनक ओ हाथ काटि देल गेलनि ।

बंगलादेशक मेघनाक तटपर सैनिक अस्पतालमे चन्द्रकान्त जीवन ओ मृत्युक बीच घूमि रहल छथि । चण्डी अपन सखीसँ लिखलनि जे सदासँ चन्द्रकान्तसँ घृणा करैत रहलहुँ, मुदा आइ ओ ओतय जाय हुनक हाथ अपन हाथमे लऽ वीरभोग्या बनतीह ।

एहू कथामे करुणा अछि, मुदा एक गोट उच्चकोटिक आदर्शके सेहो ई कथा स्थापित करैछ । सत्साहित्यक उद्देश्य इएह छैक जे ओ जीवनक एक गोट उदात्त एवं नैसर्गिक भावना, कर्तव्य परायणता एवं नव युगक स्वर्णिम विहान कथामे शाश्वत करुणाक उदयक संकेत करय । झाजीक प्रत्येक कथामे शाश्वत करुणा एवं सहज रूपसँ आयल व्यथाक चित्रणक संग-संग सुखानुभूतिक नव किरणक प्रकाश भेटैत अछि ।

एहि कथा संग्रहक कथा सबहक विषयमे हम अपन मित्र प्रो० सदन मिश्रक एहि कथनसँ जे-"वीरभोग्याक सभ कथा थाकल, हारल, व्यक्ति मनके आह्लादित करबाक अद्भुत क्षमता रखैत अछि" से अक्षरशः सहमति प्रकट करैत छी।

कोनो कथाक परीक्षण ओकर कथावस्तु, चरित्रचित्रण, क्लाइमेक्स, अंत करबाक स्थिति, हृदयके स्पर्श करबाक कोनो एक स्थितिक निर्माण आ अंतमे भाषापर अधिकार राखब पर कयल जाइत अछि । झाजीक कथा एहि सभ विन्दुपर अपन आभाक स्पष्ट झलक देखबैत अछि । हिनक कथाक विषयमे आरसीबाबू ठीके लिखैत छथिजे- "कथावस्तुक मध्य किञ्चितो अवकाश भेटलापर कथाकारक भाव-प्रवण हृदय कविताक मन्दाकिनीमे विहार करय लगैछ ।" मनमोहन झाक प्रायः प्रत्येक कथाक केन्द्रमे नारीक चित्रण भेल अछि । हम जखन आधुनिक नारीक सशक्तीकरण तथा पुरुषक संग समानताक आधारपर सभ क्षेत्रमे कार्य करबापर सोचैत छी, तँ मनमे होइत अछि जे स्थितिमे इंजन चलेनिहारि, वायुसेना आ स्थल सेनामे कार्य केनिहार एवं अन्यान्य सभक्षेत्रमे कठोरसँ-कठोर कार्यमे निरत नारीक सौन्दर्य, लावण्य, भ्रू-भंगिमा, आकर्षण, कोमल अंग, प्रेमाख्यान आ समर्पण भवनाक की स्थिति होयत ? मुदा मनमोहन झाक कथाक नारी एहि सभ गुणसँ सम्पन्न रहितो कर्त्तव्य-पथपर कोना आजुक समाजमे आगाँ बढतीह तकर समुचित आदर्श उपस्थित करबाक प्रयास करैत रहलाह ।

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