Sunday, May 1, 2022

मैथिली कथा साहित्य मे शिल्पक स्वरुप विधान




साहित्य समाजक दर्पण आ कथा समाजक प्रतिबिम्ब होइत अछि । ई चरितार्थ तखनहि भए सकैत अछि जखन कथामे शिल्पक अभिव्‍यक्ति नीक जेंका होए । कोनो युग विशेषक प्रतिनिधि कथाकार वैह होइत अछि जे एकर सीमित परिधि‍मे नियंत्रित आकारमे सुन्दर चित्र प्रस्तुत करैत छथि । कथा रचनाक प्रवृति मे शिल्पकक विधान अत्यन्त महत्वपूर्ण अछि । मैथिली कथा साहित्यक प्रारम्भिके अवस्था सँ एकर महत्ता देखल जा सकैत अछि । एहि प्रमुख विधानक माध्यमहि सँ कोनो रचनाकार, जनिकामे प्रतिभाक प्रचूरता रहैत अछि समाज मे होइत परिवेश ओ वातावरण मे परिवर्तनशीलताकेँ स्पष्ट रूप सँ पाठकक समक्ष रखैत छथि ।

शिल्पक विभिन्न स्वरूप -

मैथिली कथा साहित्यक प्रारंभ सँ लए कए आइ धरि कथाकारक कतेको पीढि़ सक्रि‍य भए मैथिली कथा साहित्य केँ समृद्ध कए रहल अछि । विभिन्न स्तर पर होमयबला बदलाल रचनाकारक रचना मे परिवर्तन आनैत छैक । संचार माध्यमक सापेक्षता मे साहित्यक अभिविद्धि‍ सामाजिक सांस्कतिक एवं राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन कथाक शिल्पकेँ विकसित करैत अछि । आरम्भिक अवस्थामे पंचतंत्र ओ आख्यानक शिल्प मैथिली कथा साहित्यके प्रभावित कयलक अछि । डॉं रमानंद झा रमणक अनुसार मैथिली कथा साहित्यमे सात प्रकार शिल्पक विकास भेल अछि ।

1) प्रलापीय शिल्प – कोनो कथाक मुख्यक पात्र नायक अथवा नायिका द्वारा बाजल गेल एक-एक शब्द कथाक दिशा निर्धारित करैत अछि । ओ आन कोनो पात्र जेका अपशब्द अथवा अनैतिक शब्दक प्रयोग प्राय: नहि करैत छथि एकरे प्रलापीय शिल्प कहल जाइत अछि ।

2) आर्वतक शिल्पी – एहिमे कथाक प्रारम्भ अंत सँ होइत अछि । एकर दू प्रकार होइत अछि –

क) भावक आवर्तक ख) भाषिक आवर्तक


जाहि कथामे विचारकेँ भावक माध्यम सँ प्रकट कएल जाए ओ भेल भावक आवर्तक तथा जाहिमे भाषाक प्रगाढ़ता द्वारा कथाक आरम्भ ओ अंत होए ओ भेल भाषिक आवर्तक ।

3) एकहि संग अनेक कथाक समावेश – मैथिलीमे अधिकांश कथा एक घटना विशेष पर आधारित रहैत अछि तथापि कतेको एहन कथा अछि जाहिमे एक संग अनेक कथा चलैत अछि । जेना – राजमोहन झाक युद्ध... युद्ध...युद्ध... । एहि मे भाई-बहिन, भारत-पाकिस्तान आ पति-पत्नीक बीच एक संग युद्ध चलैत रहैत अछि ।

4) सांकेतिक शिल्प – सामान्यतया कथाकार मोनक अन्तर्द्वन्द केँ सांकेतिक भाषा द्वारा स्‍पष्‍ट करैत अछि । गरीबीक मारिसँ ठमकल मोन, सामाजिक विषमता अथवा कोनो कार्यकेँ पूर्णरुपेण करबाक क्षमता होयतहुँ कथा पात्रमे अक्षमताक बोध प्राय: एहि शिल्पक माध्यम सँ स्पष्ट भए जाइत अछि । एहिमे लीली रेक ‘चन्द्र्मुखी’, सोमदेवक ‘भात’ आ गंगेश गुंजनक ‘जीवनक रस’ एकर सर्वोत्तरम उदाहरण मानल जा सकैत अछि ।

5) प्रतीकात्मक शिल्प – कखनो-कखनो कथामे भावक उद्बोधन वा वास्तविक स्थितिकेँ स्पष्ट करबाक हेतु प्रतीकात्मक रूप मे भाषाक प्रयोग कएल जाइत अछि । प्रतीकात्मक कथाक माध्यम सँ पाठकक बौद्धि‍क क्षमता मे विकास होइत अछि – ‘गाड़ी पर नाँव’, ‘धुँआ’ आदि कथा एहि शिल्प विधानक उदाहरण रूपमे कहल जा सकैत अछि ।

6) कथानायकक दू व्यक्तित्‍वक नीरुपण – कतेको कथामे नायकक दू प्रकारक व्यक्ति‍त्वकेँ उजागर कएल जाइत अछि । एक तँ ओकर वास्त्विक व्यक्तित्‍व भेल आ दोसर परिस्थितिजन्य व्यक्ति‍त्व । वास्तविक व्यक्तित्व भेल ओकर मूल स्वभाव आ परिस्थितिजन्य व्यक्ति‍त्व भेल समयानुकूल परिवर्तित स्थि‍ति पर बदलल मनोभाव । राजमोहन झाक ‘अपन लोक’ कथा क नायकक व्यक्ति‍त्व एहि प्रकारक अछि ।

7) बिम्बात्मक शिल्प – मैथिली कथा साहित्यतमे अनेको कथा बिम्बात्मक शिल्प मे लिखल गेल अछि । ओहि सभ कथामे स्थि‍ति ओ मनोभावक वर्णन अत्यन्त भावुकता संग कएल जाइत अछि – ‘साँझक गाछ’ कथा एकर उत्कृष्ट प्रमाण अछि । 

एहि प्रकारें आइ मैथिली कथा साहित्यक जे विकसित परम्परा हम देखि रहल छी ओकर विकास मे शिल्पक महत्वपूर्ण भूमिका अछि । कथाक ई प्रमुख प्रभेद रोचकता आनैत अछि, मार्मिकताक संग भावक उद्बोधन करैत अछि आ संस्कारगत व्यवहारिकताक ठोस आधारशिला रखैत अछि ।

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