भाषाक
दिव्योतपति सिद्धांत क मतानुसार जेना मनुखक स्वास-प्रवासक क क्रिया जन्महि सँ
सहजात अछि, ओहि प्रकारे बिना कोनो चेष्टाक ओ एहि
सम्पन्न दैवी वाकक प्रयोग सेहो करय लगैत अछि । दैवी वाक अर्थात देवता लोकनि द्वारा
रचित वाणी । शास्त्र में लिखल अछि - देवी वाचभजयन्त देवाः । एहि मत कए मननिहार क
मत छनि जे भाषा मानव कए ईश्वर प्रदत्त वस्तु थीक । ताहि लेल एहि मतक लोग धार्मिक
भावना कए लए कए चलैत छथि । आ यैह कारण अछि जे प्रत्येक धर्मावलंबी अपन आदि ग्रन्थ
कए ईश्वरक कृति आ ओकर भाषा कए आदि भाषा मानैत छथि ।
ऋग्वेद
में सेहो कहल गेल अछि जे देवता वाग्देवी कए उत्पन्न केलनि आ ओकरे सभ प्राणी बजैत
अछि, एहि लेल हिन्दू लोकनि संस्कृत कए
देवभाषा कहैत अछि । एहिना बौद्ध पाली कए, ईसाई हिब्रू कए आ मुसलमान अरबी कए सब भाषाक जड़ि
मनैत छथि ।
एतबा
हेबाक बादो भाषाक उतपत्तिक ई सिद्धांत धार्मिक रूप से मान्य अछि मुदा वैज्ञानिक
रुपे नहि । एहि मतक विरोध मे रास मत देल गेल अछि, जेना -
१)
भाषा जों ईश्वर से उत्त्पन्न भेल होएतइ त ओहि मे बेसी पूर्णता आ बुद्धिसंगतता
होएतइ ।
२)
पशु-पक्षी आ मानव क भाषा मे अंतर नहि होएतइ ।
३)
भाषा मे परिवर्तन नै होएतइ ई शाश्वत रहतइ ।
४)
मिश्रक राजा सेमेटिकुस आ अकबर शिशु परीक्षण सेहो ई साबित करैत छथि जे शिशु जन्म से
भाषा नै सीखी कए अबैत अछि, बल्कि
समाज हुनका भाषाक ज्ञान दैत छनि ।
५)
नास्तिक सब बौक होएतइ किएक हुनका ईश्वर पर श्रद्धा नहि छनि आ बिना श्रद्धा हुनका
भाषा कोना आबितथि।
एहि
प्रकार ई स्पस्ट अछि जे वैज्ञानिक रूपे ई मत स्वीकृत नहि होएत अछि, ई सिद्धांत स्वयं निर्जीव अछि ।
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