Sunday, February 7, 2021

मैथिली भाषाक दिव्योतप्ति सिद्धांत

 



भाषाक दिव्योतपति सिद्धांत क मतानुसार जेना मनुखक स्वास-प्रवासक क क्रिया जन्महि सँ सहजात अछि, ओहि प्रकारे बिना कोनो चेष्टाक ओ एहि सम्पन्न दैवी वाकक प्रयोग सेहो करय लगैत अछि । दैवी वाक अर्थात देवता लोकनि द्वारा रचित वाणी । शास्त्र में लिखल अछि - देवी वाचभजयन्त देवाः । एहि मत कए मननिहार क मत छनि जे भाषा मानव कए ईश्वर प्रदत्त वस्तु थीक । ताहि लेल एहि मतक लोग धार्मिक भावना कए लए कए चलैत छथि । आ यैह कारण अछि जे प्रत्येक धर्मावलंबी अपन आदि ग्रन्थ कए ईश्वरक कृति आ ओकर भाषा कए आदि भाषा मानैत छथि ।

 

ऋग्वेद में सेहो कहल गेल अछि जे देवता वाग्देवी कए उत्पन्न केलनि आ ओकरे सभ प्राणी बजैत अछि, एहि लेल हिन्दू लोकनि संस्कृत कए देवभाषा कहैत अछि । एहिना बौद्ध पाली कए, ईसाई हिब्रू कए आ मुसलमान अरबी कए सब भाषाक जड़ि मनैत छथि ।

 

एतबा हेबाक बादो भाषाक उतपत्तिक ई सिद्धांत धार्मिक रूप से मान्य अछि मुदा वैज्ञानिक रुपे नहि । एहि मतक विरोध मे रास मत देल गेल अछि, जेना -

 

१) भाषा जों ईश्वर से उत्त्पन्न भेल होएतइ त ओहि मे बेसी पूर्णता आ बुद्धिसंगतता होएतइ ।

२) पशु-पक्षी आ मानव क भाषा मे अंतर नहि होएतइ ।

३) भाषा मे परिवर्तन नै होएतइ ई शाश्वत रहतइ ।

४) मिश्रक राजा सेमेटिकुस आ अकबर शिशु परीक्षण सेहो ई साबित करैत छथि जे शिशु जन्म से भाषा नै सीखी कए अबैत अछि, बल्कि समाज हुनका भाषाक ज्ञान दैत छनि ।

५) नास्तिक सब बौक होएतइ किएक हुनका ईश्वर पर श्रद्धा नहि छनि आ बिना श्रद्धा हुनका भाषा कोना आबितथि।

 

एहि प्रकार ई स्पस्ट अछि जे वैज्ञानिक रूपे ई मत स्वीकृत नहि होएत अछि, ई सिद्धांत स्वयं निर्जीव अछि ।

 


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