Monday, February 8, 2021

मैथिली भाषाक भाषोत्पत्ति सिद्धांतक विवेचन

 


मानव, पशु, पक्षी, पेड पौधा सभ सजीव पदार्थ प्रकृति प्रदत्त अछि । जेना जेना मनुष्य क विकास भेल,  ओहि संगहि भाषाक उत्पति ओ विकास होमय लागल।

भाषाक उत्पत्ति सं दू पक्ष अभिप्रेत होएत अछि –

1. भाषण अर्थात ध्वनि किम्बा बजबाक शक्ति क उत्पत्ति।

2. उच्चारित ध्वनि, संकेत तथा अर्थ मे परस्पर संसर्ग- स्थापन क्षमताक आरम्भ।

 

जतए धरि ध्वनि क प्रश्न अछि,  ओ अनगिनत पशु पक्षी क संगहि आब गाछ - बृक्ष मे सेहो ध्वनि पाओल जाएत अछि - जेना, कुकुर झाॅउ झांउ करैत अछि,  बिलाय म्याऊँ म्याऊँ बजैत अछि, महिष डिकरैत अछि, और गाछ - बृक्ष सांय सांय बहैत अछि । ( एहि सांय सांय मे बृक्ष वैज्ञानिक ओकर ध्वनि मानैत छथि । मुदा एहि ध्वनि मे अर्थ क सार्थकता क अभाव अछि । एहि कारणें  ई स्वरूप मानवीय  भाषाक अध्ययन के क्षेत्र मे नहि अबैत अछि । प्रारंभिक काल मे मनुष्य क ध्वनन कें यैह स्थिति रहल हैत, मुदा मनुष्य क्रमशः अपन भाव विचार के विनिमय हेतु अर्थ सापेक्ष ध्वनि के विकास केने हैत । ध्वनि ओ अर्थ क संसर्ग -- स्थापने मानव भाषक चरम उपलब्धि अछि । का - का सं काक पुनः कौआ क वाचक मानव द्वारा मानल गेल, कू-कू सं कोयली, झर - झर ध्वनि सं झरना सं सम्बद्ध कए मनुष्य एहन सूक्ष्म ओ महत्वपूर्ण अभिव्यंजना पद्धति केर विकास कए, ओ अन्य जीव प्राणी सं भिन्न कोटिक जीव प्राणी भ गेल।


एतय ई प्रश्न उठैत अछि जे. ध्वनि संग अर्थ क संयोग करब मनुष्य कहिया सिखल अर्थात शब्द अर्थ क वाचक मानव कहिया भेल?

 

भाषाक उत्पति क सम्बन्ध मे कतेको भाषा वैज्ञानिक, मानव वैज्ञानिक, इतिहासकार एवं दार्शनिक लोकनि अनेक प्रकार क मतक प्रतिपादन कएलनि अछि । किन्तु ओ सब सिद्धांत अनुमान - प्रसूत अछि । आधुनिक भाषा वैज्ञानिक लोकनि तं आब एहि पर विचारे करब छोडि देने छथि । मुदा एहि प्रसंग मे प्रारम्भिक ज्ञान राखब आवश्यक अछि ।

 

दिव्योत्पत्ति सिद्धांत

संसार मे समस्त वस्तु यथा जड चेतन अथवा स्थावर जंगम सभ वस्तु प्रकृति प्रदत्त अछि । एहि कोटि क सिद्धांत कार क मत छनि जे, ईश्वर निर्मित योनि मे मनुष्य सर्व श्रेष्ठ मानल जाएत अछि।जखन चेतना सम्पन्न मनुष्य क निर्माण कएलनि तं भाषा सेहो संगहि ईश्वर प्रदत्त भेल हैत ।

 

मह यैह हेतु बिभिन्न धर्म क अनुयायी लोकनि अपन अपन धर्म ग्रंथ सं भाषाक उत्पति सिद्ध करबाक प्रयास कएलनि अछि ।

 

हिन्दू धर्म क अनुयायी संस्कृत भाषा कें देववाणी भाषाक संज्ञा दैत सब भाषाक जननी मानैत छथि ।

त्रृग्वेदक एक गोट मंत्र अछि -

"देवी वाचमजनयन्त देवा

तां विश्वरूपाः पशवो वसन्त।"

                 त्र्रृग्वेद, 8-- 100 -11

अर्थात बाग्देवी (वाणी) कें देवता सभ उत्पन्न कएलनि,  और वैह सभ प्राणी बजैत अछि ।

एतय मंत्र मे वाणी कें असंदिग्ध शब्द मे दिव्योत्पत्ति मानल गेल अछि । महर्षि पाणिनी द्वारा प्रस्तुत चौदह प्रत्याहार सूत्र शिवजी क डमरू क निनाद सं उत्पन्न मानैत छथि । एहि मंत्र कें दिव्योत्पत्ति केर रूपान्तरण मानल गेल अछि ।

 

अनीश्वरबादी बुद्ध और महावीर जैन क अनुयायी लोकनि अपन अपन त्रिविष्टक क पालि ओ अर्द्ध मागधी भाषाकें आदि भाषा मानैत छथि । किएक तं बुद्ध और महावीर तीर्थंकर यैह भाषा मे उपदेश दैत छलाह ।

 

ईसाई ओल्डटेस्टामेन्टक हिब्रू भाषाकें अपन ईश्वर प्रदत्त आदि भाषा मानैत छथि । ईसाई लोकनिक मान्यता छनि जे ईश्वर आदम और हौआ कें हिब्रानी भाषा द कए पृथ्वी पर पठौने छलाह । जौं मनुष्य अपन महत्वाकांक्षाक कारणें स्वर्ग धरि जएबाक प्रयास केने रहितथि तं बाबुलक मीनार बला घटना नहि होएत, और आइ जे विश्व मे भाषा भेद दृष्टि गोचर होइत अछि ओ नहि होएत । सर्वत्र एकहि गोट हिब्रानी भाषा रहितैक।

 

मुसलमान लोकनि अपन अरबी भाषा मे लिखल कुरानक भाषाकें आदि भाषा मानैत छथि ।

 

एकटा पद अछि - - - बिनु हरि कृपा  तृनहु नहि डोलय

एहि तरहें अधिकांश मत एहि आधार पर मानल गेल अछि ।

 

 

दिव्योत्पत्ति सिद्धांत क समीक्षा।

जॅ मनुष्य क भाषा ईश्वर प्रदत्त अछि - तखन एतेक भेद प्रभेद कोना छैक ?अन्य पशु सभक भाषा तं सम्पूर्ण विश्व मे एकहि रंग क अछि । सम्पूर्ण विश्व मे कुकुर एकहि समान भूकैत अछि, घोडा एके समान हिनहिनबैत अछि । पशु पक्षी क भाषा मे एकरूपता बुझि पडैत अछि, तखन मानव सभक भाषा मे किएक नहि?

 

एहि शंकाक समाधान करबा मे दिव्योत्पत्ति सिद्धांत असक्षम देखल जाइछ । आस्तिकता क संग आस्था काज करैत छैक और वैज्ञानिकता संग तर्क। दूनू दृष्टि भिन्न अछि । एहि हेतु श्रद्धा स्पूत दिव्योत्पत्ति सिद्धांत मे तर्क केर स्थान नगण्य अछि । मुदा एतबा बुझल जा सकैत अछि जे, आखिर मनुष्ये मे एहन चेतना, मानसिक समृद्धि और ध्वन्यातमक अवयव किएक भेटलैक।

 

एहि दृष्टि कोण सं वैज्ञानिकता केर अभाव रहितहु मुदा विश्वास क भाव सं किछु अंश मे एहि सिद्धांत कें स्वीकार कएल जा सकैछ ।

 

संकेत सिद्धांत

 किछु विद्वान क मत छनि जे, प्रारम्भ मे मनुष्य पशु पक्षी जंका माथ, ऑखि, हाथ , पैर क संचालन द्वारा अपन विचार अथवा भावके अभिव्यक्त करैत हैत । एहि असुविधा कें दूर करबाक लेल और अपन  वक्तव्य क पूर्णता और स्पष्टता सं व्यक्त करबाक भावना सं प्रेरित भ कए मनुष्य परस्पर विचार विनिमय द्वारा ध्वन्यात्मक भाषाक उत्पति ओ विकास कएलक ।

 

संकेत सिद्धांत क समीक्षा

एहि सिद्धांत मे अनेको प्रकार क विसंगति देखल जाइछ ।

1. एहि सिद्धांत द्वारा मानल जाएत अछि जे.  एक समय एहन छल जे मनुष्य कें भाषा नहि भेटल हेतैक, मुदा जौं भाषा नहि छलैक तखन ओकर अनुभव मनुष्य कें कोना भेल हेतैक ? आइयो बानर अथवा  बरदकें एहन अनुभव कहां भ रहल छैक ?

2. भाषाक अभाव मे ओहि मानव महासभा मे विचार विमर्श कोन माध्यम सं भेल हेतैक? जखन लाखो  लोक वाणी विहीन मनुष्य एकत्रित भेल हैत तं तर्क वितर्क क माध्यम की रहल हेतैक?

3. उक्त लोक महासभा मे विभिन्न अर्थ क वाचक विभिन्न शब्द क संकेत कोन आधार पर तय कैल गेल हैत  ? सभ्यता क आदिम काल मे एहन एकता कोना संभव भेल हेतैक?

4. जौं बिनु भाषाक एतेक महत्वपूर्ण विचार विमर्श और निर्णय संभव छलैक तखन भाषाक आवश्यकता क अनुभव किएक भेलैक ।

एहि प्रसंग मे आचार्य भामह लिखलनि अछि जे

            इयन्त  ईदृशा वर्णा ईदृगर्थाभिधायिनः

            व्यवहाराय लोकस्य प्रागित्थं समयः कृत।।

अर्थात सृष्टि क आरम्भे मे लोक व्यवहार क लेल एहन वर्ण , अर्थ और बोध करएबाक संकेत कैल गेल हैत । प्रश्न उठैत अछि जे सृष्टि क प्रारम्भ मे एहि प्रकारक संकेत के सुनिश्चित केने छलाह, जखन संकेत स्थिर नहि भेल छल तखन लोक व्यवहार मे कोना आबि गेल ?

 

 

उत्तर भाषोत्पत्ति केर रणन सिद्धांत

एहि सिद्धांत क प्रथम व्याख्या प्लेटो केने छलाह। और मैक्समूलर एकर विस्तृत व्याख्या केने छलाह । एहि सिद्धांत क अनुसार शब्द ओ अर्थ मे एक प्रकार क नैसर्गिक सम्बन्ध अछि संसार मे प्रत्येक वस्तु मे एक प्रकार क विशिष्ट ध्वनि अन्तरनिहित रहैत छैक जे कोनो दोसर वस्तु क सम्पर्क मे अएला पर ध्वनित होइत अछि । यथा - हथौरा सं कोनो धातु, लोहा, लकरी, पत्थर किम्बा शीशा आदि पर चोट  केला सं, ओहि संगहि विभिन्न प्रकार क ध्वनि उत्पन्न होएत छैक,  और ओ ध्वनि सुनि कए बुझबा मे आबि जाएत अछि जे ई कोन वस्तु ककिस ध्वनि थिक। अन्हारो मे शीशा अथवा स्टील के गिलास नीचा खसला पर स्वतः बुझबा मे आबि जाएत अछि जे शीशा क गिलास खसलइ अथवा स्टील क ।

 

सृष्टि क आरम्भ मे मनुष्य बाणी विहीन छल, किन्तु जखन ओ विभिन्न वस्तु क सम्पर्क म आएल तखन ओहि वस्तु सभक प्रभाव ओकर मानस पटल पर अंकित भेल गेल जाहि सं अनायासे वस्तु क वोधक शब्द मनुष्य क मुख सं निसृत भए गेल।जेना  तेजगामी पशुकें देखि अश्व बाहर भ गेल हैत, तेज जल प्रवाह कें देखि एकाएक नदी शब्द निकलि गेल हैत ।

 

एहि तरहें संसार क सब वस्तु क लेल शब्द बनि गेल।भाषाक निर्माण भ गेलाक पश्चात मनुष्य क एहन सहज शक्ति समाप्त भ गेल।जेना एक वस्तु सं दोसर वस्तु क आवाज भिन्न होएत अछि, ओहि तरहें एक वस्तु क वाचक शब्द सं दोसर वस्तु क वाचक शब्द स्वभाविक रूप सं भिन्न भ गेल।नदी वाचक शब्द पर्वत वाचक शब्द सं भिन्न ताहि तरहें गज वाचक शब्द अश्व वाचक शब्द सं भिन्न भ गेल।

 

 

रणन सिद्धांत क समीक्षा

एहि सिद्धांत मे शब्द ओ अर्थ मे नैसर्गिक सम्बन्ध क मान्यता अछि, जे तर्क संगत सं बेशी रहस्यात्मक बुझि पडैत अछि ।एतय एहिना बुझि पडैत अछि जे , जेना कोनो जादूगर जादूक छडी देखा करिश्मा दर्शक कें देखा दैत छैक ओहि तरहें मनुष्य वाह्य वस्तु क सम्पर्क मे आबि के शब्द बनबैत चलि गेल और जाहि सॅ सब शब्द निष्पन्न भेल, ओहि संगहि ओकर शक्ति सेहो समाप्त भ गेल । स्पष्ट दृष्टि गोचर होइत अछि जे एहि मे वैज्ञानिकता क अभाव देखना जाइछ । वाह्य वस्तु मे एहन प्रतिक्रया नहि होएत अछि । ई पूर्णरूपेण काल्पनिक ओ यादृच्छिक अछि । एकर कोनो सुसंगत आधार नहि अछि ।

 

जे मैक्समूलर महोदय प्रारंभ मे एहि सिद्धांत क व्याख्याता छलाह, ओ स्वयं एहि मे दोषक अनुभव कए एहि सिद्धांत कें छोडि देलनि ।

 

अंग्रेजी मे डिड्ग डाॅगं घंटी क ध्वनि कें कहल जाएत छैक । एहि हेतु घंटी क ध्वनि क सदृश्य मनुष्य क मुख सं उच्चरित ध्वनि क लेल एहन शब्द क प्रयोग कएल गेल । मैथिली मे एखनहु छोट घंटी की ध्वनि कें टन टन अथवा रूण रूण बाजल जाएत छैक ।

 

 

आवेग सिद्धांत (पुह पुह वाद )

 

एहि सिद्धांत कें मनोरागव्यंजकशब्दमूलकतावाद अथवा मनोभावाभिव्यंजकतावाद सन कठिन नामसं भाषा विज्ञान मे सेहो अभिहित कएल जाइछ ।

 

एहि सिद्धांत क अनुसार हर्ष, शोक, विस्मय, क्षोभ, क्रोध घृणा आदि मनोभाव क सहज अभिव्यक्ति सं जे ध्वनि उत्पन्न होएत अछि,  ओहि सं भाषाक उत्पति भेल अछि । संवेदना किम्बा मनोभाव क उत्तेजना भेलाह सं स्वभाविक रूपें अथवा स्वतः ध्वनि उच्चारित भ जाएत अछि यथा  शोकाकुल वातावरण मे स्वतः आह, विस्मय क स्थिति मे छी- छी, तिरस्कार क भाव मे दुत्त् , हर्षक समय बाह बाह आदि।

 

जखन भाषाक विकास नहि भेल छल तखन मनुष्य एहि प्रकारक ध्वनि सं अपन मनोभाव कें व्यक्त करैत  हैत । क्रमशः भाषा शक्ति क विकास भेल और भाषाक निर्माण भेल।

 

 

आवेग सिद्धांत क समीक्षा

एहि सिद्धांत मे अनेको विसंगति देखल जाइछ । आवेगक अतिरेक सं बहरहाल शब्द क सम्बन्ध स्वभाविक अभिव्यंजना सं नहि होएत अछि । अतः ओ शब्द संप्रेषण प टीए प्रधान भाषाक अंग नहि भ सकैत अछि ।

 

एहि शब्द सभक सम्बन्ध मानसिक संतुलन  सं बेशी शारीरिक प्रतिक्रया सं अछि । एहन शब्दावली सोचि विचारि कए नहि बाजल जाइछ । आवेगक अतिरेकक स्थिति मे स्वतः उच्चारित भ जाएत अछि ।

 

कखनहु काल आवेगात्मक ध्वनि उच्छ्वास द्वारा उच्चारित भ जाएत अछि । आवेगक तीव्रता काल मे मुख विवर खुजल रहैत अछि तखन आ, ओ अथवा ऐं ध्वनि निसृत भ जाइछ । भाषा क चिन्तन सं घनिष्ठ संबंध होएत अछि, और एहन आवेग व्यंजक शब्द मे चिन्तन क सर्वथा अभाव रहैत अछि ।

 

आवेग बोधक शब्द क संख्या अत्यल्प अछि । संगहि एहन शब्द भाषाक अंग नहि भ सकैत अछि । वाक्य मे एहन शब्द का प्रयोग नहिए जंका रहैत अछि ।

 

विभिन्न भाषा मे एहि वर्ग क शब्द में एकरूपता सेहो नहि अछि ।यथा - - हर्षक लेल अंग्रेजी मे हुर्रा (Hurrah), शोक हेतु एलास (Alus), तिरस्कार क लेल फाई (Fie), पीडाक लेल जर्मनी भाषा में आउ (Au), फ्रेंच भाषा मे आहि (Ahi).

 

एहि सं स्पष्ट होइत अछि जे आवेगात्मक प्रतिक्रया मे विभिन्न भाषा भाषी क प्रतिक्रया एकसमान नहि अछि । प्रत्येक भाषा मे देखल जाइछ जे मूल शब्द सं अनेक शब्द निष्पन्न होइत अछि । आवेग बोधक शब्द एहि दृष्टि सं अनुपयोगी अछि ।

आवेग बोधक शब्द कें यथा स्वरूप लिपि बद्ध नहि कएल जा सकैछ ।

 

श्रम ध्वनि सिद्धांत

श्रम करबाकाल स्वभाविक तया श्वास प्रश्वास क क्रिया अधिक तीव्र भ जाएत अछि । जाहि परिणाम स्वरूप शरीरक मांसपेशी क संगहि स्वर तंत्र क संकुचन और प्रसारण होमय लगैत अछि , और कम्पन बढि जाएत छैक । अतः अनायासे किछु ध्वनि निकलि जाएत अछि।यथा - - - - कपडा साफ करबाकाल धोबी हियो --हियो किम्बा छियो छियो बजैत रहैत अछि । एहि तरहें नाव खेबैत काल मलाह , पालकी ल कए चलबा काल कहार आदि श्रमिक लगे जोर हइया आदि क उच्चारण करैत रहैत अछि ।

 

प्रारंभिक काल मे मनुष्य सामुहिक रूप सं काज करैत छल।प्रसिद्ध मानव वैज्ञानिक मेलीनोव्यस्की किछु वन्य प्राणी क आचार व्यवहार क अध्ययन कए प्रमाणित कएलनि जे मनुष्य प्रारंभिक काल मे एसगरे काम करब पसिन्न नहि करैत छल,  एहि अपेक्षा कृत समूह मे काज करबाक सहज प्रवृत्ति रहल अछि । सभ्यता क विकास क संग संग एहन प्रवृत्ति मे क्रमशः ह्रास होएत गेलैक और मनुष्य आत्म केन्द्रित होएत गेल। एक प्रकारे वौद्धिक कार्यक विकासक अनिवार्य परिणाम छल।शारीरिक काज समूह मे कएल जा सकैछ मुदा वौद्धिक काज नहि। एहन मान्यता एखनहु देखल जाएत अछि जे मजदूर मे एसगरक अपेक्षा कृत समूह मे काज करबाक प्रवृत्ति अधिक अछि जेना    पंजाब जएबाक समय मजदूर कतबो भीड रहैत छैक मुदा एकहि डिब्बा मे घुसबाक प्रयास करैत अछि,  ओहि ठाम तथाकथित पढल लिखल लोक स्लीपर अथवा  एसी डिब्बा मे एसगरे रहए चाहैत छथि।

 

कोनो प्रकारक उच्चारित कए एक संग काज करबा मे अधिक शक्ति  क अनुभव करैत अछि । जेना कोनो भारी समान उठएबा काल  लगे जोर भैया कहला सं सुविधा होएत छैक, तैं श्रमक संग उत्पन्न श्रम ध्वनि सिद्धांत कहल जाएत अछि । एहि सिद्धांत कें श्रम परिहरण मूलकतावाद सिद्धांत सेहो कहल जाएत अछि । प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक न्वारे   (Noire ) श्रम ध्वनि सिद्धांते सं भाषाक उत्पत्ति मानैत छथि ।

 

श्रम ध्वनि सिद्धांत क समीक्षा

आवेग बोधक ध्वनि केर  समाने एहि प्रकारक ध्वनि मे सार्थकता अभाव दृष्टि गोचर होइत अछि।हियो हियो अथवा हूँ हूँ सं कोनो अर्थ नहि निकलैत अछि ।

 

आवेग बोधक ध्वनि क सम्बन्ध भावक तीव्रता सं अछि, और श्रमध्वनि क शारीरिक क्रिया सं अन्यथा तात्विक दृष्टि कोण सं दूनू एकहि अछि । निरर्थक ध्वनि सं सार्थक भाषाक उत्पति कल्पना युक्तिसंगत नहि।

 

 

अनुकरण सिद्धांत (Bow  Bow Theorey)

कुकुरक भौं भौं केर अंग्रेजी रूपान्तर अछि अंग्रेजी क बोउ बोउ ।एहि सिद्धांत क नाम मैक्समूलर महोदय बिनोद पूर्वक  रखलनि अछि। एहि सिद्धांत क वास्तविक नाम ओनोमेटिक पीक थ्योरी अछि । किछु विद्वान एहि सिद्धांत कें एकोइक थ्योरी रखने छथि । भारतीय भाषा मे एहि सिद्धांत कें शब्दानुकरणमूलकतावाद कहल जाएत अछि ।

 

एहि सिद्धांत क अनुसार वस्तु क नामकरण ओहि सं उत्पन्न होमय बला प्राकृतिक ध्वनि क आधार पर भेल अछि अर्थात जाहि वस्तु सं जेहन ध्वनि उत्पन्न भेल और ओ सुनल गेल ओकर ओहि ध्वनि क अनुकरण पर नाम राखि देल गेल।यथा - - - - - का   का सं कौआ, कू   कू सं कोयली, झर - - झर सुनि कए झरना आदि।

 

एहि तरहें मिमिआएव गुनगुनाएव, झन झन, चटपट , कलकल ,झमा झम, गिरगिराएव,गरगराएव, बडबडाएव, हरबराएव, सुडकब, हिनहिनाएव  खटखटाएव, खडखडाएव, तरतराएव आदि शब्द ध्वनि साम्यक आधार पर प्रयोग मे आएल।

ध्वनि क समान चाक्षुष साम्यक आधार पर अनेक समान शब्द बनल अछि जेना चकमक चकाचक , झकाझक, जगमग आदि।  विद्यापतिक पंक्ति छनि - - - - - - " घन घन घनन घुंघरू कत बाजय,

                                              हन हन कर तुअ काता।"

 

अनुकरण सिद्धांत क समीक्षा

एहि सिद्धांत क द्वारा मनुष्य वाणी विहीन बुझि पडैत अछि । एहि सिद्धांत क द्वारा भाषाक आरम्भ पशु पक्षी किम्बा प्राकृतिक संसाधन क ध्वनि क अनुकरण सं मानल गेल अछि । परिणामतः भाषाक दृष्टि सं मनुष्य पशु पक्षियो सं हीन कोटि क जीव सिद्ध होयत अछि । कल्पना क दृष्टि सं अग्राह्य बुझि पडैत अछि । पहिल मनुष्य सं पहिने पशु पक्षी कें भाषा प्राप्त भेलैक और तखन ओहि सं मनुष्य अनुकरण कएल।

 

दोसर जखन मनुष्य मे बजबाक शक्ति नहि छलैक तखन मनुष्य मे ध्वन्यात्मक अनुकरण करबाक सामर्थ्य कोना प्राप्त भेलैक ।

 

अनुकरणात्मक ध्वनि क शब्द का संख्या अत्यल्प छैक जाहि सं समृद्ध भाषाक विकास संभव नहि बुझि पडैत अछि । आवेग बोधक शब्द क समान अनुकरणीय मक शब्द क रूप विभिन्न भाषा मे भिन्न भिन्न अछि-

संस्कृत       मैथिली       अंग्रेजी             जर्मन         रूसी

निर्झर      झरना          स्ट्रीम                 स्ट्रोम         रूचेइ

 

अनुकरण मूलक अथवा ध्वन्यार्थव्यंजक शब्द मुख्यतः भाषाक अलंकरण पक्ष मे अबैत अछि, भाषाक आधार प्रस्तुत नहि करैत अछि।

 

एहि सिद्धांत क अनुसार कोनो भाषाक शब्दावली क सीमित अंशक विकास क व्याख्या करैत अछि सम्पूर्ण भाषाक उत्पति क नहि।

 

इंगित सिद्धांत (जेस्चर थ्योरी )

इंगित सिद्धांत क अनुसार मनुष्य अपनहि अंग द्वारा किम्बा आशिंक चेष्टाक वाणी द्वारा अनुकरण कएल और ओही सं भाषाक उत्पति भेल।जेना पानि पीबाकाल दूनू ओष्ट कें सटला सं और श्वास लेबाक समय पा -- पा ध्वनि ध्वनित भेल तं 'पा 'ध्वनि क अर्थ पीब क्रिया मानि लेल गेल। एहि तरहें अनेक ध्वनि ध्वनित भेल

 

समीक्षा

इहो सिद्धांत अन्य सिद्धांत समान कोनो अर्थ मे समीचीन नहि बुझि पडैत अछि । दोसरा सं अनुकरण कएल जएबाक विषय तं संभवो मानल जा सकैछ मुदा अपनहि सं अपन अनुकरण विनोदपूर्ण बुझना जाइछ । अपन अनुकरण के करैत अछि ? वस्तुतः अनुकरण शब्दे अन्य सापेक्ष अछि ।

 

अपन हाथक, पैरक अनुकरण क की अर्थ हेतैक ? पशु पक्षियो सेहो एना नहि करैत अछि , तखन मनुष्य एहन वौद्धिक प्राणी एहि तरहें कोना कएल ?

 

 

समन्वय सिद्धांत

किछु भाषा वैज्ञानिक लोकनि सभ सिद्धांत क समीक्षा करैत सभक समन्वय कें भाषोत्पत्ति क आधार मानलनि अछि । तात्पर्य जे कोनो एक सिद्धांत सं भाषाक उत्पति क आरम्भक मानब उचित नहि।जेना हम विचार कएल अछि जे किछु शब्द अनुकरण सं उत्पन्न भेल अछि, किछु आवेग क तीव्रता सं और किछु शब्द श्रमक साहचर्य सं।

 

एहि तरहें एक एक सिद्धांत कें अलग अलग नहि मानि, अपितु सभक समन्वय सं भाषाक उत्पति क कारण मानब अधिक उचित और व्यापक अछि ।

 

समन्वय सिद्धांत क समीक्षा

सब सिद्धांत कें समन्वित कए देलो पर  भाषाक अत्यंत अल्प अंशक समाधान भेटैछ। उदाहरण स्वरूप देखल जाइछ ' भाषा और विचार क उत्पत्ति क प्रश्न मानव समाज क विकास क संगहि अनिवार्य रूप सं संयुक्त अछि । एहि छोट सन वाक्य मे एहन एकोटा शब्द नहि अछि जे उपर्युक्त सिद्धांत सं सम्बन्धित रूप सं निष्पन्न मानल जा सकैछ।भाषाक व्यापकता और गंभीरता कें देखैत सभ सिद्धांत कल्पना विलास बुझि पडैत अछि ।

 

उपर्युक्त सिद्धांत सं स्पष्ट होइत अछि जे प्रारंभ मे मनुष्य मूक छल,  एहन विषय शारीरिक और मानसिक रूपे उचित नहि बुझि पडैत अछि । चिडै चुरमुन्नी कें बाणी भेटि गेल छलैक और चेतना सम्पन्न मनुष्य बाणी विहीन छल, अनसोहात लगैत अछि । पशु पक्षी बाणी संग ओहि ठाम रहि गेल और मनुष्य समृद्ध समर्थ अभिव्यक्ति क प्रणेता भ गेल।

 

सूक्ष्म अमूर्त भाषाक व्यंजक शब्द क उत्पत्ति क ब्याख्या उपर्युक्त सिद्धांत मे नहि भेटैछ । मात्र स्थूल शब्द ओ अर्थ सं भाषाक उत्पति कथमपि नहि मानल जा सकैछ ।

 

एहि सिद्धांत क समीक्षा सं स्पष्ट होइत अछि जे तथ्य सं बेसी कल्पना कें आधार मानल अछि जे उचित नहि बुझना जाइछ ।

 

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