Monday, February 8, 2021

भाषा आओर भाषा विज्ञान क परिभाषा

 


भाषा भाष् धातु सं निष्पन्न भेल अछि । जकर अर्थ होएत अछि ब्यक्त बाणी। एहि तरहें एहि धातु क अर्थे मे भाषा  क लक्षण विद्यमान दृष्टि गोचर होइत अछि । ब्यक्त बाणी क अर्थ अछि, स्पष्ट और पूर्ण अभिव्यंजना और ओ उच्चारित किम्बा वाचिक जे भषेसं संभव अछि ।

 

भाषा विज्ञान, भाषा और विज्ञान क योग सं बना अछि। अतएव भाषा बिषय क विशिष्ट ज्ञान भाषा विज्ञान कहबैत अछि । अतः भाषा बिषय क समग्र अध्ययन जाहि शास्त्र सं कैल जाएत ओ भाषा- शास्त्र कहबैत अछि ।

डॉ भोला नाथ तिवारी भाषा क परिभाषा दैत लिखलनि अछि --- ' उच्चारित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीक क संकेत कें भाषा कहल जाएत अछि, जाहि सं एक समाज अथवा परस्पर विचार विनिमय भ सकैत अछि, किम्बा विचार ध्वनि केर माध्यमे अभिव्यक्त होय।

 

आचार्य प्रवर देवेन्द्र नाथ शर्मा एहि प्रसंग मे लिखैत छथि - उच्चारित ध्वनि संकेत क सहयोग सं भाव किम्बा विचार क पूर्ण अभिव्यक्ति भाषा थिक ।

 

विश्व भाषाकोश मे भाषा क परिभाषा क्रम मे लिखल गेल अछि - मनुष्य परस्पर अपन विचार क आदान प्रदान करबाक लेल ब्यक्त ध्वनि-संकेत जे ब्यबहार करैत अछि,  ओकरा भाषा कहल जाएत अछि ।

 

पं मंगल देव शास्त्री अपन भाषा शास्त्र पोथी मे भाषा क परिभाषा दैत लिखलनि अछि - "भाषा निश्चित प्रयास क फलस्वरूप मनुष्य क मुख सं निसृत ओ सार्थक ध्वनि समष्टि थिक जाहि सॅ अर्थ ओ भाव प्रतीति भए सकए।"

 

पाश्चात्य वैज्ञानिक द्वारा भाषा क परिभाषा

महान चिन्तक प्लेटो अपन सोफिस्ट मे लिखने छथि - विचार मनुष्य क आत्मा क अध्वन्यात्मक मूक रूप थिक, जखन ओ विचार ध्वन्यात्मक रूप मे ओष्ट क माध्यमे निसृत होएत अछि तखन ओ भाषा कहबैत अछि ।

 

स्वीटक मान्यता - ध्वन्यातमक शब्द द्वारा विचार क अभिव्यक्ति भाषा थिक ।

 

भाषाक परिभाषा दैत ब्लॉक ओ ट्रेगर लिखलनि अछि, "भाषा ऐच्छिक वाक् प्रतीकक ओ ब्यबस्था थिक जकरा द्वारा मानव समुदाय परस्पर सहयोग करैत छथि । "

 

प्रसिद्ध पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक जे.स्परसन भाषा परिभाषा क्रम मे लिखैत छथि - "मनुष्य ध्वन्यातमक शब्द द्वारा अपन विचार प्रकट करैत अछि । मानव मस्तिष्क बस्तुतःविचार प्रकट करबाक लेल एहन शब्द क निरन्तर प्रयोग करैत अछि, एहि प्रकारक विधि कें भाषाक संज्ञा लेल जाइछ।"

 

प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक वेन्ड्रीज भाषाक परिभाषा क्रम मे कहैत छथि ---- " भाषा एक प्रकार क चिन्ह थिक । चिन्ह सं तात्पर्य ओहि प्रतीक सं अछि, जाहि मे मनुष्य अपन विचार दोसरा पर प्रकट करैत अछि । ई प्रतीक सेहो अनेकों प्रकार क होइत अछि यथा चाक्षुष, स्पर्श और श्रवण। वस्तुतः श्रवण पक्ष भाषाक दृष्टएं अधिक ग्राह्य अछि ।"  

 

A.A.cardiners अपन पोथी Speech and language में कहने छथि - "The common definition of speech as the use of articulate sounds symbols for the expression of thought. " अर्थात विचार अभिव्यक्ति क लेल ब्यक्त ध्वनि समूह क ब्यबहार कें भाषा कहल जाएत अछि ।"

 

पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक अपन पुस्तक Life and growth of language मे भाषा ओ भाषा विज्ञान क परिभाषा दैत लिखलनि अछि - "Philology strives to comprehend language, both in its unity, as a means of human expression and as distinguished from breets communication, and its internal variety of material and structure. It seeks to discover the cause of the resemblances and differences of language, and to effect a classification of them, by tracing out the lines of resemblance and drawing the limits of difference. "

 

अर्थात भाषा विज्ञान क कोनहु स्वरूप मे कोनहु देश मे उपलब्ध मानवीय भाषाक अध्ययन कयल जाइछ । आधुनिक जीवित भाषाक संग प्राचीन मृत अथवा रूपान्तरे जीवित भाषाक तुलना जकरा पत्र वा शिलालेख आदि द्वारा सुरक्षित राखल गेल अछि से एकर अध्ययन क क्षेत्र मे अबैत अछि । परस्पर सम्बद्ध आधुनिक ओ प्राचीन भाषा सभक दोष शून्य तुलना द्वारा एहि मे कल्पना कएल जाइछ ओकर मूलभाषा पर सेहो विचार कयल जा सकैछ ।

 

एहि तरहें व्हिटनी महोदय जे परिभाषा देल नि अछि ,जाहि अन्तर्गत भाषा ओ विज्ञान दूनू पर संगहि विचार कएलनि अछि । एहि परिभाषा पर अपन मंतव्य यैह देल जा सकैछ जे, उपर्युक्त परिभाषा मे अति ब्याप्ति दोष अछि ।

 

पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक बेन्ड्रीज कहैत छथि " भाषा एक प्रकार क चिन्ह थिक । चिन्ह सं तात्पर्य ओहि प्रतीक सं अछि, जाहि मे मनुष्य अपन विचार दोसरा पर प्रकट करैत अछि । ई प्रतीक सेहो अनेकों प्रकार क होइत अछि ।

 

एहि तरहें प्राच्य ओ पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक लोकनिक मान्यता कें जखन हम तुलनात्मक अध्ययन करैत छी तं श्री भोला नाथ तिवारी के मत किम्बा विचार सर्वथा समीचीन बुझि पडैत अछि जे भाषा बिषय क विशिष्ट ज्ञान क अध्ययन भाषा विज्ञान कहबैत अछि ।

 

जेना जेना समाज मे वैचारिक चिन्तन क संस्कार क विकास, मनुष्य क परस्पर आवश्यकता बढैत गेलैक ओना ओना भाषा क स्वरूप बदलैत गेलैक और बढैत गेलैक।

 

आंगिक भाषा

प्रारंभ मे मनुष्य अपन भाव क विनिमय किम्बा आदान प्रदान अंग क माध्यमे करैत छल,  एहन क्रिया एखनहु विद्यमान अछि । अंग संचालन क माध्यमे सकारात्मक ओ नकारात्मक बोध दूनू होएत अछि । यथा - अहां कें भूख लागल अछि ? आंगुर अथवा हाथक अलग अलग तरह सं संचालन कए दोसरा कें बुझा दैत छिएनि और ओ बुझि जाएत छथि।

 

मूक किम्बा बधिर हेतु भाषाक यैह स्वरूप काज करैत अछि ।

एहि स्वरूप  क एतेक विकास भए गेल अछि जे दूरदर्शन पर मूक बधिर हेतु समाचार क प्रसारण हाथ, आंगुर ओ आंखिक संयोग सं कएल जाइछ । एहन भाषा विज्ञाने द्वारा संभव भेल छैक ।

वाचिक स्वरूप सं तात्पर्य अछि भाषाक ध्वन्यात्मक रूप।भाषाक परिभाषा क्रम मे हम सब विस्तार सं एहि पर विचार केने छी।यह भेद क अन्तर्गत ध्वनि विज्ञान, स्वनिम विज्ञान, वर्ण विचार, वाक्य विज्ञान, पद विज्ञान एवं अर्थ विज्ञान आदि समग्र विचार करैत छी ।

 

भाषा विज्ञान ओ भौतिकी विज्ञान क माध्यमे आइ अनेको प्रकार क यंत्र क विकास भए गेल छैक । यथा उच्चारण अव्यव क दोषक कारणें नेना भुटका अथवा नमहर लोक सेहो हकलबैत वा तोतराबैत छथि यंत्र विज्ञान क माध्यमे आइ ओकर इलाज संभव भ गेल छैक ।

 

भाषाक तेसर स्वरूप अछि - - - लिखित भाषा।

लिखित स्वरूप क अन्तर्गत वर्तनी, ब्याकरण आदि क अध्ययन हैब आवश्यक अछि । एहि कारणें भाषा विज्ञान कें व्याकरण क संज्ञा किम्बा तुलनात्मक व्याकरण सेहो कहल गेल अछि । भाषा विज्ञान कें Philology सेहो कहल गेल छैक ।Phil +logos अर्थात Phil क अर्थ होइत अछि शब्द और Logosक अर्थ अछि विज्ञान।

 

अतः भाषा बिषय क विशिष्ट ज्ञान भाषा विज्ञान कहबैत अछि । एहि प्रसंग मे पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक क मतक उल्लेख करब समीचीन बुझना जाइछ - "The sum told of such signs of our thoughts and feelings as are capable of external perception and as could be produced and repeated at will, is language. "

 

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