किताबे अनमोल है इसकी कोई सानी नहीं है । कागज पर पढ़ना अपने आप में उतना ही रोमांचकारी होता है जितना किसी किसान के लिए एक एकड़ जमीन पर धान बोना, किसी पर्वतारोही के लिए काराकोरम की उँची चोटी पर चढ़ना, या किसी तैराक के लिए इंग्लिश चैनल पार करना । इन सबके बावजूद भी अगर हम पाठ्यपुस्तकों की बात करें तो पाते हैं कि एक औसत बच्चा प्रतिदिन 10 पांउड से ज्यादा किताबे सिर्फ इसलिए ढ़ोता है कि ताकि उनकी कक्षाओं में उन सब किताबों में से कुछ पन्ने उस दिन उनकी कक्षा में पढ़ाया जाएगा । इस कुछ पन्नों के एवज में उन्हें 10 पाउंड का एक भारी भरकम बस्ता ढ़ोना पड़ता है जिसमें किताबों के अलावा लंच बॉक्स, पानी का बोतल आदि होता है । इस हिसाब से नोटबुक इन भारी भरकम किताबों का एक अच्छा विकल्प हो सकता है । जो न केवल हल्का है, बल्कि इनमें वैसे कई सारी जानकारीयाँ भरी है जो कुछेकु किताबों या फिर पुरी की पुरी पुस्तकालय में नहीं मिलेगी ।
एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ भारत में 400 लाख से ज्यादा पेड़ सिर्फ पाठ्यपुस्तक बनाने के लिए काट दिए जाते हैं । क्योंकि सरकार अपने निजी फायदे के लिए और कुछ प्रकाशकों को फायदे पहुँचाने के लिए प्रत्येक वर्ष सिलेबस में भारी फेर-बदल कर देती है या पुरा का पुरा सिलेबस ही बदल डालती है । नोटबुक इस परिवर्तन के लिए हमेशा से तैयार है और रहेगा । इन्हें ऐसे किसी भी परिवर्तन के लिए अपने में परिवर्तन करने की जरूरत नही होगी । इसमें कंटेंट आसानी से और त्वरित गति से अपडेट हो जाएगा जो विद्यार्थियों को इस रोज-रोज के विषय में होने वाले बदलाव और कक्षा में ढ़ोने वाले पुस्तकों से आज़ादी दिलाएगा । साथ ही यह पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद होगा क्योंकि हम सिर्फ अपने पाठ्यपुस्तकों के कारण इतने पेड़ खो देते हैं जितनी हमे जीवन भर प्राणवायु देने के लिए काफी होता है ।
अब बात अगर स्वास्थ्य की करें तो प्रत्येक छात्र/छात्रा फिर चाहे वो नर्सरी में हो अथवा स्नातक में सिर्फ पाठ्यपुस्तक ढ़ोने के कारण पीठ दर्द और कंधे दर्द की शिकायत से परेशान रहता है । नोटबुक इन सभी परेशानियों को दुर कर सकता है । यह कही भी लाने ले जाने में आसान, पतला और अनेक प्रकार के ऑंकड़े से युक्त रहता है । एक उदाहरण के लिए एक नर्सरी का बच्चा भी अपने कक्षा में कम से हिन्दी, विज्ञान, गणित, ड्रांईग आदि की पाठ्यपुस्तक ले जाएगा, उस विषय से संबंधित कॉपी ले जाएगा, उसके बाद दो पेन, पेन्सिल, रबर और प्रैक्टिकल बॉक्स आदि ले जाएगा । इसके बाद भी लंच बॉक्स है, पानी का बोतल है और भी बहुत कुछ है जो उसकी बैग में रहता है । नोटबुक इन सबका एक मात्र विकल्प होगा । न कापी की चिंता न किताब की, माउस और कीबोर्ड की सहायता से पेन, रबर और पेन्सिल का भी कम कर लेगा । यानी आठ से दस पाउंड का विकल्प कुछेकु पाउंड से हो जाएगा ।
फिर भी किसी भी सिक्के के जिस प्रकार दो पहलू होते हैं ठीक उसी प्रकार नोटबुक के भी दो पहलू है । यह थोड़ा मंहगा और आसानी से उपलब्ध नहीं होने वाली वस्तु है । मगर हम देखे तो जिस प्रकार प्रत्येक वर्ष पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन हो रहा है और किताबों की कीमतों में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है उस हिसाब से नोटबुक काफी सस्ता है । चुकि यह कागज से नहीं बना है इसलिए इसके रखाव में भी ज्यादा परेशानी नहीं है, यह आसनी से गलने और जलने वाला भी नही है । यह आसानी से स्टोर होने वाला है और किताबों की तरह ज्यादा जगह भी नहीं लेता है ।
इन सबसे अलग बिना उर्जा के यह बिलकुल डब्बा है । भारत में इसका उपयोग अभी भी सिर्फ इस वजह से नहीं हो पा रहा है क्योंकि लाखों गावों में अभी भी बिजली नहीं पहुँच पाई है । और बिना बिजली के इसकी उपयोगिता शुन्य है । लेकिन विज्ञान के नित नए प्रयोग ने हमारे डेस्कटॉप कम्पयुटर को नोटबुक, टैबलेट में बदलकर इसे काफी सरल और आसान बना दिया है । अब डेस्क्टॉप कम्प्युटर की तरह इसमें प्रत्येक समय बिजली का पल्ग लगाने की जरूरत नही है । नोटबुक की बैटरी ने इसे सुदूर गाँव के लिए भी आसान बना दिया है । अब एक बार चार्ज कर लेने के बाद इसे 3 से 4 घंटे आसानी से चला सकते हैं । इस क्रांतिकारी बदलाव ने इसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी शुलभ बना दिया है ।
नोटबुक के इंटरनेट से जुड़ जाने के बाद यह ज्ञान का एक ऐसा स्त्रोत बन जाता है जिसकी तुलना किसी भी किताब से नहीं की जा सकती । यह न केवल प्रतिदिन अपडेट होता है अपितु हमेशा नई नई जानकारियों से अवगत भी कराता है । पुस्तकालय में बैठ कर घंटों सर खपाने के बावजूद भी जितना कंटेट नही मिल पाएगा वह सिर्फ कुछ समय नोटबुक पर गुजारकर निकाला जा सकता है । इंटरनेट के तमाम के तमाम गुणों के बावजुद भी इसकी सत्यता पूर्ण रूपेण प्रमाणिक नहीं है । किसी भी अपूर्ण जानकारी अथवा कंटेट से छात्रों को जीवनभर गलतफहमी का शिकार भी होना पड़ सकता है । इंटरनेट के दुरूपयोग से छात्रो का भविष्य भी अंधकारमय हो सकता है । लेकिन सदुपयोग जीवन की सफल राह भी बना सकता है ।
यह भी सत्य है कि किताबें पढ़ने में ज्यादा आसान है नोटबुक के बनिस्पत । किताबों को कभी भी चार्ज नहीं करना पड़ता और बिना बिजली के भी आप इसका आनंद ले सकते हैं । लेकिन जिस तरह से विज्ञान तरक्की कर रहा है, रोज नए नए अविस्कार और घटनाए हो रही है हम बिना परिवर्तन के अपने आप को इस समाज में नही ढ़ाल पाएंगे । नोटबुक एक ऐसा हथियार है जो हमारे व्यक्तिव को निखारने का काम करता है । हज़ारों डायरी के पन्नों को नोटबुक के एक छोटे से ड्राइव में रख सकते हैं । हजारों सिनेमा, किताबें, संगीत आराम से नोटबुक के एक छोटे से हिस्से में आसानी से आ सकती है जिसे आप आसानी से ढुंढ़ सकते है, और उसका पुन: पुन: उपयोग कर सकते है । बावजुद इसके यह थोड़ा सेसेंटिव भी है आपकी जरा सी लापरवाही आपको आपके डेटा से हमेशा के लिए दुर भी कर सकती है ।
अंतत: मेरा मानना है कि जिस प्रकार सरकार किताबों पर अनुदान दे रही है उसी प्रकार अगर अनुदान देकर नोटबुक का भी वितरण किया जाए तो आने वाले समय के लिए यह विद्यार्थीयों के लिए काफी हितकर होगी जो हमे अपडेट तो रखेगा ही साथ ही किताबों के भारी भरकम बोझ से भी छुटकारा दिलाएगा ।