डायरी
मसि कागद छुयो नहीं कलम गही नहिं हाथ...
Sunday, March 23, 2014
छी छी छी
मेरी एक गर्लफ्रेंड थी
छी छी छी
मै उसकी हर बात मानता था
जी जी जी
मैं रोता था वो हसती थी
खी खी खी
उसने मुझे उल्लू बनाया
भी भी भी
मै डरता था वो डराती थी
ही ही ही
मैं पागल था जो ऐसा करता था
जी जी जी
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