Sunday, March 23, 2014

बिजली का बुरा हाल सोनवर्षा राज बेहाल

सियासी पारे के साथ सूरज भी गरमा रहा है । और गरमा रही है राजनीति । लेकिन इस राज‍नीति के चक्कर में नेताजी ये भूल गए है कि इस पारे का आम-जन पर क्या असर पड़ने वाला है । लोग गर्मी से हलकान हुए जा रहे है और बिजली है की आने का नाम ही नहीं ले रही । पहले जो लाईट 8 से 10 घंटे तक रह जाती थी अब 2 से 4 घंटे में ही मुंह-दिखाई कर वापसी की राह पकड़ लेती है । इस बार होली की मस्ती को भी अंधेरे ने लील लिया । लोग इन्वर्टर और जेनरेटर के सहारे अपने आप को राहत पहुंचाने की जुगत में लगे रहे । सबसे ज्यादा परेशानी तो युवाओं को हुआ । उनकी ‘’डीजे’’ की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई । डीजे के घुन पर थि‍रकने को तैयार युवा मोबाइल से ही काम चलाकर रह गए । लेकिन आखि‍रकार कब तक ? मोबाइल को भी तो कभी ना कभी चार्ज करना ही पड़ता, सो कइयों को निराशा हाथ लगी ।

गाँव-गाँव में पावर सब स्टेशन तो खुल गए हैं, लेकिन बिजली नदारद है । कभी अगर बिजली आ भी जाती है तो वोल्टेज इतना कम होता है कि‍ कुछ भी करना मुश्कि‍ल हो जाता है । नाम मात्र की बिजली डिबीया से भी कम रोशनी करती है । कभी-कभी तो बल्ब देखकर ये भी भ्रम हो जाता है कि डिबीया जल रही है । एसी और फ्रिज की तो बात ही छोड़ दीजि‍ए, घर का छोटा टुल्लू पम्प भी नही चल पाता । ऐसे में पानी की मारामारी है सो अलग । सरकार ने हरेक प्रखंड में पानी की टंकी तो लगा रखी है, लेकिन बिजली के अभाव में उसका भी मोटर सिर्फ दिखावे का बनकर रह गया है । हरेक मुहल्ले में नल तो लग गया, लेकिन पानी कहीं नहीं ।

कुछ बड़े घरों ने हाई पॉवर के स्टेबलाइजर लगा रखे है जो सारे इलाके की बिजली अकेले ही चट कर जाते हैं । आम जन परेशान है, लेकिन नेता अपने चुनाव प्रचार में लगे हैं । जनता की सुधि‍ लेने की बजाय एसी गाड़ी में घूम-घूम कर चुनाव प्रचार कर रहे हैं । नीतीश बाबु दिन-प्रतिदिन बिजली की नई-नई योजनाओं का शि‍लान्यास और उद्घाटन तो कर रहें हैं, लेकिन हकीकत महज कागजों तक ही सिमटी दिखाई दे रही है । बिहार को बिजली के क्षेत्र में सक्षम बनाने का दावा कर नीतीश जी ने अपनी पीठ जरूर थपथपा ली हो लेकिन हकीकत आज भी कोसों दूर है । हाथ में झुलता पंखा और डिबीया की रोशनी सच्चाई बयां करने के लिए काफी है ।

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