Sunday, May 1, 2022

मिथिला भाषा रामायणक वैशि‍षट्य




रामायण हिन्दू धर्मग्रन्य थिक। एकर पाठो सँ धर्म होइत छैक एह धारणा लोकक अछि। मिथिला भाषा रामायण कवीश्वर चन्दा झाक प्रमुख कृति थिकनि। मिथिला में जनसाधारण पर हिनक ख्याति मुख्यतः एहि‍ पर आधारित छनि। एकर प्रकाशन 1892 ई० मे भेल। किन्तु ई लिखल गोल छओ वर्ष पूर्वहि ।

ई पुराण नहि, पौराणिक महाकाव्य थिक । एकर अद्यावधि सात गोट संस्करण प्रकाशित भेल अछि। एकर पहिल संस्करण कवीश्वरक जीवन काल में प्रकाशित भेल छल। पहिल म०म० चित्रधर मिश्रक तत्वावधान मे छपल छल जकर परिशिष्ट मे मिथिलाक कतिपय ख्यात, अल्पख्यात आ अज्ञात विद्वानक सूची एवं वश-परिचय अछि। प्रथम संस्करण अप्राप्य अछि। दोसर संस्करण कवीश्वरक मृत्युक पश्चात म० म० चित्रधर मिश्रक सम्पादकत्व मे प्रकाशित भेल जकर भूमिका मे एहि विषयक उल्लेख अछि, मुदा मुद्रण-तिथि नहि देल गेल अछि। अनुमानतः 1908 ई० सँ 1910 ई० क मध्य प्रकाशित भेल होएत । तेसर राजपण्डित बलदेव मिश्रक सम्पादकत्‍व मे 1927-28 ई० में प्रकाशित भेला । चारिम गुटका संस्करण पं० शशिनाथ झाक सम्पादन में 1948 ई० में प्रकाशित भेल। पाँचम बलदेव मिश्र आ रमानाथ झाक सम्पादन मे 1955 ई० में छपल ई सर्वाधिक शुद्ध संस्करण अछि। छठम मैथिली अकादमी 1977 ई० में पांचव संस्करण के आदर्श मानि प्रकाशित कएलक। एहि में चन्दा झाक चित्र आ हस्तलिपिक फोटो स्टेट कापी सेहो अछि।

मिथिला भाषा रामायणक सातम आकर्षक संस्करण साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा 1999 ई० में प्रकाशित कएल गेल अछि। श्रेष्‍ठ साहित्यक पुनः प्रकाशन योजनाक अन्तर्गत अकादमी द्वारा प्रकाशित एहि नवीन संस्करण में डॉ० रामदेव झा लिखित गवेषणात्मक भूमिका मे कवीश्वर ओ हुनक साहित्यिक सम्बन्ध में अनेकशः नवीन तथ्य आ सूचना देल गेल अछि। एहू संस्करणक आधार राजपण्डित बलदेव मिश्र ओ रमानाथ झाक सम्पादन में 1955 ई० में प्रकाशित संस्करण अछि।

विवेच्य रामायण सात काण्ड में विभक्त अछि। प्रत्येक काण्ड में अनेक अध्याय छैक आरंभ में संस्कृत श्लोकमे वन्दना अछि। सम्पूर्ण ग्रन्थमे चौपाइ एवं दोहा छन्दक प्रधानता अछि किन्तु बीच बीच अनेकानेक छन्दक प्रयोग सेहो कएल गेल अछि । एकर भाषा सहज वर्णन शैली मोहक किन्तु कथा प्रवाह तीव्र अछि। एहि ग्रन्थक सफलताक पाछा कोन कोन तत्व अछि, ताहि प्रसंग डॉ० जयकान्त मिश्र कहैत छथि -

Wonderful mastery over the language, interspersed with appropriate proverbs, idioms and figures of speech, traditional Mithila enchanting rhythm and March of the lives and waters living characterization love of details, spiritual conviction of the ultimate victory of good over evil all these contributed of this success.

डॉ० जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सनक उक्ति छनि-Pandit chandranath Alice Chanda Jha whom I now to be one of the most learned men in part of India.

कवीश्वर चन्दा झा विरचित 'मिथिला भाषा रामायण के मैथिली भाषाक गौरव-ग्रन्थ सिद्ध करैत डॉ० रामदेव झाक कहब छनि - मिथिला भाषा रामायण कवीश्वर चन्दा झाक एहन महान एवं गम्भीर प्रबस्थ-रचना थिकनि जे हुनका पूर्ण यशस्वी ओ चिरस्मरणीय बनाए देलकनि। मैथिली साहित्यक ई गौरव-ग्रन्थ भारतीय वाड़मयक रामायणीय परम्परा मे सेहो एकटा स्थान बनाए लेलक अछि। मिथिला भाषा रामायण में गम्भीर दार्शनिक चिन्तक संगति काव्य तत्व ओ लोक तत्वक अद्भुत समन्वय भेल अछि। विभिन्न प्रसंग मे कविक कतोक मौलिक उद्भावना अतिशय चमत्कारपूर्ण अछि। प्रबन्धोपयोगी चौपाई, दोहा ओ सोरठाक अतिरिक्त पारम्परिक वार्णिक, मात्रिक मिथिला देशीय रागाधृत, विभिन्न भास ओ गीति-रीतिक शतधिक प्रकारक छन्दक प्रयोग ने केवल चन्दा झाक कवि कर्मक सिद्धहस्तताक घोतक अछि, अपितु ई मिथिला भाषा रामायणकेँ भारतीय भाषाक अन्य रामायण सँ भिन्ने ओ विशिष्ट बनाए देने अछि। पाठ्यधर्मी छन्दक संगहि राग-भास-बद्ध गेय गीतक समावेश, लोकप्रचलित सहज भाषा, लोकोक्ति-उपलक्षण इत्यादिक विशद प्रयोग एवं विविध धार्मिक प्रसंग ओ सम्वाद सभक कारण ई काव्यकृति अपन रचना-कालहि मे लोकप्रिय भए जनजीवन मे बसि गोल।

रामायणक रचनाकेँ ओकरा प्रकाशमे आनि कवीश्वर से प्रतिष्ठाक प्राप्त कयलनि जे विद्यापतिक पश्चात मैथिलीक आन कोनो कविके नहि भेटलनि । कवीश्वरक रामायणमे कल्पना-तत्व ततेक प्रबल नहि अछि जतेक बुद्धि‍-तत्व अथवा विचार तत्व । रामायणक कथावस्तु अधिकांशत: अध्यात्मक रामायणक शब्द नहि तँ छाया रूपेँ अनुवाद थिक, जे ठाम-ठाम किंचिंत आयासपूर्ण लगैत अछि । कवित्वक दृष्टि सँ ई एक गोट महत्वपूर्ण रचना छनि । रामक चरित लए एतेक गोट महाकाव्यक जाहि मे भक्ति भावना एतेक प्रबल अछि, योग दर्शन एहन सुन्दर प्रतिपादित अछि, लोकोक्ति ओ स्वाभावोक्ति एहन विलक्षण विन्यास जे कवीश्वर रचलनि ई सवर्था अभिनव वस्तु छलनि ।

कवीश्वर चन्दा झाक व्यक्ति‍त्व ओ कृतित्व




कवीश्वर चन्दा झा आधुनिक कालक सिंहद्वार पर अपन बहुमुखी प्रतिभा ओ बहुआयामी व्यक्ति‍त्वसँ सम्पन्न युगप्रर्वतक रचनाकार भेलाह, जे मैथि‍ली मे रामायणक रचना कs साहित्य जगतमे क्रांति आनि देलनि ।

डा0 अमरनाथ झाक कथन छनि ‘’विद्यापतिक समयसँ जे काव्य परम्परा मैथि‍लीमे चल आबि रहल छल से उन्नैसम शताब्दी‍ धरि अबैत-अबैत शक्तिवहीन भs गेल छल । तात्कलिक समाज ओ सामाजिक परिवेशक वास्तविक प्रतिनिधित्व ओ आब नहि कs रहल छल, तथा ओहिमे आब कृत्रि‍मता आबि गेल छल । चन्दा झा पहिल कवि भेलाह जे मैथि‍ली साहित्यक एहि गत्यावरोधकेँ चीन्हल तथा ओहिमे नवीन गति प्रदान कs ओकरा देश ओ समाजक अनुकूल बनाओल एवं नवीन खाढ़ीक कवि लोकनिक हेतु एकटा नव पथ प्रशस्त कयल ।

जन्म-मृत्यु ओ जन्मस्थान

चन्दा झाक जन्म शाके 1753 माघ शुक्ल सप्तमी बृहस्पतिकें, तदनुसार 20 जनवरी 1839 ई0 मे काश्यपगोत्रीय मड़रय रजौरा मूलक मैथि‍ल ब्राहम्ण वंशमे भेल । हिनक पैतृक निवासस्थान छल पिण्डारूछ । हिनक पिता महामहोपाध्याय पण्डि‍त भोला झा अपन समयक एक नैष्ठि‍क एवं सुप्रतिष्ठि‍त विद्वान छल । हिनक पैत्रि‍क वंश जेंका हिनक मातृवंश सेहो बड़ गौरवपूर्ण रहनि । हिनक मतामह बड़गामनिवासी पण्डित गिरिवरनारायण झा सरिसबे छाजन मूलक प्रसिद्ध विद्वान रहथि‍ । ओहि समय बड़गाम मिथि‍लाक एकटा विख्यात विद्याकेन्द्र रहय । कवीश्वरक जन्म अपन मातृकेमे भेल छल ।

डा0 अमरनाथ झा हिनक मृत्युक प्रसगेँ लिखने छथि जे – ‘’चन्दा झाक मृत्यु सतहत्‍तरि वर्षक अवस्था मे मार्ग शुक्ल नवमी शुक्र तदनुसार 14 दिसम्बर 1907 ई केँ रात्रि‍ शेषमे भेलनि ।

व्यक्तित्व –

कवीश्वर चन्दा झाक व्यक्तित्व बहुआयामी छल । ई कवीश्वर नामे बेस विख्यात भेलाह । ई मैथि‍लीक महाकवितँ रहबे करथि‍, संगहि संस्कृ‍त आ संगीत शास्‍त्रक प्रकाण्ड विद्वान सेहो रहथि‍ । रामायणमे तथा आनो ठाम हिनक कतेको संस्कृत श्लोक उपलब्ध अछि । ओहि श्लोक सभक आधारपर सहजेँ ई अनुमान लगाओल जा सकैछ जे जँ मातृभाषाक प्रति हिनक प्रगाढ़ अनुरक्ति नहि रहैततँ संस्कृ्त मे उत्कृष्ट कोटिक ग्रंथ लिखि‍ अमरता प्राप्त कs सकैत छलाह।

ई बड़ पैघ अनुसन्धानकर्ता छलाह । महाकवि विद्यापतिक विषयमे तथा अपन पूर्ववर्ती कतेको मैथि‍ल कवि ओ पंडितक विषयमे जाहि-जाहि तथ्यक अन्वेषण कयलनि से हिनक विशि‍ष्ट अनुसन्धान-क्षमताक ज्वलन्त प्रमाण थि‍क । यैह सर्वप्रथम व्यक्ति छलाह जे विद्यापतिकेँ मैथि‍ल प्रमाणि‍त करबाक दिशा मे आकृष्ट भेलाह । ई संगीत शास्त्रक गंभीर ज्ञाता छलाह । तेँ अपन रामायणमे मिथि‍लाक संगीतक अनुसार अनेकानेक रागक उल्लेख कयने छथि‍ । चन्दा झा सफल अनुवादक सेहो छलाह । विद्यापतिक संस्कृत ग्रंथ ‘पुरूष-परीक्षा’क गद्य-पद्यमय अनुवाद हिनक विलक्षण अनुवाद सामर्थ्यक परिचायक थि‍क । संपादन कार्यमे सेहो निष्णात छलाह । ततबे उच्च कोटिक विद्वान छलाह । हिनक गीत पर श्रोता झुमि उठैत छल । हिनक भक्ति‍ विषयक पद सेहो बड़ सुन्दर होइत छल -

‍हम पशुमति तोँह पशुपति देब के नहि त्रि‍जगत तुअ पद सेव

कवीश्वर सेहो जखन भगवती श्यामाक स्तुति करय लगैत छथि‍ तँ कहैत छथि‍ जे –

रे मन रटह श्यामा श्यामा
यावत जीवन कुशल रहब बसब जाहि ठामा ।
विधि‍ रमेश्वर ईश्वर वास किड़कर कोटिमे नामा ।।

कृतित्व

कवीश्वर चन्दा झा आधुनिक मैथि‍ली साहित्यक युग प्रवर्तक तँ छलाहे, तकर अतिरिक्त संस्कृत ओ हिन्दी‍ भाषामे सेहो बहुत रचना कयने छथि‍ । हिन्दी साहित्यिक इतिहास मे जे गौरव भारतेन्दु हरिश्चन्द्र केँ प्रदान कयल जाइत छनि तकर वास्तविक अधि‍कारी चन्द्रे नाथे झा थि‍काह ।

कवीश्वरक मुख्य साहित्यि‍क रचना निम्नलिखि‍त अछि –

1) वाताह्वान – एकर प्रकाशन 1883 ई0 मे भेल रहय । वाताह्न ओहि प्रकारक पद्य थिक जाहि प्रसंग लोक मे ई विश्वास छैक जे एकरा स्फुट रूपेँ पढ़लासँ हाबा जोरसँ बहय लगैत छैक आ गर्मी शान्त भs जाइत छैक ।

2) मिथि‍लाभाषा रामायण – कवीश्वरक ई सर्वाधि‍क महत्वपूर्ण ग्रंथ थि‍काह । यैह ग्रन्थ हिनका कालातीत बना देलक तथा हिनक कीर्तिध्वज सदा फहरबैत रहला । ई पुराण नहि पौराणि‍क महाकाव्य थि‍क ।

3) गीतिसुधा – एहि मे विविध भावपूर्ण छतीस गोट गीत संकलित अछि ।

4) महेशवाणीसंग्रह – डां0 गंगानाथ झा द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशि‍त

5) अहल्याचरितनाटक – खण्ड रूप मे, मिथि‍लामिहिर 18 फरवरी 1912 ई0 में प्रकाशि‍त ।

6) चन्द्रपद्यावली – एहिमे संस्कृत, मैथि‍ली एवं हिन्दी भाषाक विविध भावपूर्ण 650 गोट पद्यक संग्रह अछि । ई हिनक स्फूट पद्यक सर्वप्रमुख प्रकाशि‍त ग्रन्थ थि‍क ।

7) लक्ष्मीश्वर विलास – ई महाराज लक्ष्मीश्वर सिंहक आज्ञासँ रचित संस्कृ्त ओ मैथि‍ली भाषाबद्ध विविध भावपूर्ण 36 गोट पद्यक संग्रह थि‍क ।

8) विद्यापति रचित पुरूषपरीक्षाक मैथि‍ली अनुवाद –

9) गीतसप्तशती – एकर प्रकाशन 1902 ई0 मे महाराजाधि‍राज महेश्वर सिंहक धर्मपत्नी महेश्वरलता देवीक द्रव्य सहाय्यसँ भेल रहय ।

एकर अतिरिक्त‍ हिनक रचित निम्न लिखि‍त ग्रन्थ सभ सेहो उल्लेख भेटैत अछि । किन्तु ई सभ अप्राप्त ओ अप्रकाशि‍त अछि ।

1) मूलग्रामविचार – एहिमे प्राय: पंजीकालीन मूल ग्रामसभक पता लगाओल गेल छल । चन्द्रपपद्यावलीक भूमिका मे राजपंडित बलदेव मिश्र एकर उल्लेख कयने छथि‍ ।

2) छन्दो्ग्रन्थक – राजपंडित बलदेवमिश्र चनद्रपद्यावलीक भूमिका मे तथा पंडित शशि‍नाथ झा मैथि‍ली रामायण (गुटका संस्करण) क भूमिका मे एहि ग्रंथक उल्ले‍ख कयने छथि‍ ।

3) रसकौमुदी – ई ब्रजभाषा मे लिखि‍त नायिकाभेदसम्बन्धी काव्यग्रन्थं थि‍क । डा0 ललितेश्वर झा एकर उल्लेख कयने छथि‍ ।

उपर्युक्त विवेचना सँ ई स्पष्ट भs जाइत अछि जे विद्यापतिक पश्चा‍त कवीश्वर चन्दा झा प्रथम कवि भेलाह जे समसामयिक समस्या‍केँ नीक-जकाँ चीन्हि ओकर प्रतीकारक हेतु जनसाधारणमे अपन रचनाद्वारा मिथि‍ला, मैथि‍ली ओ मैथि‍लीक प्रति अनुराग उत्पन्न करबाक प्रयास कयल, कविताक रूढ़िग्रस्त परंपराकेँ संशोधि‍त कs साहित्यिक गत्यावरोधकेँ हटाओल, काव्यकेँ तात्कालिक समस्याक प्रति चिन्तनशील बनाओल तथा गद्य लिखबाक मार्ग प्रशस्त कयल । कवि ओ कलाकार कs अपन युगक प्रति जे दायित्व रहैत छैक तकर निर्वाह कवीश्वर कयलनि ।

निष्कर्षत: हिनक व्यक्तित्व बहुआयामी छल व्यक्ति‍त्व ओ कृतित्व विवेचनाक पश्चात कहि सकैत छी जे ई अपन बहुमुखी प्रतिभाक विलक्षण लोक छलाह जे अपन अमूल्य कृतिक कारणे आधुनिक कालमे मैथि‍ली साहित्यमे वैह स्थान प्राप्त कयने छथि‍ जाहि स्थानके मैथि‍ली लेल आदिकाल मे महाकवि विद्यापति प्राप्त कयने छथि‍ ।

मैथिली कथा साहित्यक विकास

 
कथा साहित्यक, आधुनिक विद्या थिक । यद्यपि भारतीय वाड़मय मे कथा-साहित्य जन्म ऐतरेय ब्राह्मणक शुन: शेपक कथा सँ भए जाइत अछि जेकर विधिवत अगिला विकास थिक पंचतंत्र-कथा जकर प्रभाव आ प्रेरणा विश्व भरिक प्राचीन कथा साहित्य पर पड़ल अछि । किन्तु आधुनिक भारतीय कथाक प्रेरणा-भूमि यूरोप विशेषत: अंग्रेजी कथा-साहित्य रहल अछि सेहो निर्विवाद अछि ।

आधुनिक मैथिली कथा साहित्यक आरम्भ बीसम शताब्दीक प्रथम चरणमे मुख्यत: संस्कृ्त ओ बंग्ला तथा अंग्रेजीक विभिन्न कथा कृतिक छाया भावनुवाद सँ मानल जाइत अछि जाहिमे क्रमश: कालान्तर मे मौलिक कथाक बीजारोपनक प्रस्थान-बिन्दु परिलक्षित होमय लगैत अछि । डाँ जयकान्त मिश्र तथा डाँ दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’ सँ भिन्न परवर्ती शोधक आधार पर डॉ. रामदेव झा मैथिलीक पहिल मौलिक कथा जनसीदन जीक 1917 मे लिखित ‘ताराक वैधव्य’केँ मानैत छथि । एहि प्रकारेँ ओ आधुनिक मैथिलीक मौलिक कथा-विकासक प्रस्थान-बिन्दुकेँ किछु पाछु लए जयबाक पक्षमे छथि जे सर्वथा समीचीन अछि । एहि तरहे आधुनिक मैथिली कथा-विकासक यात्रा बीसम शताब्दीक दोसर दशकक उत्तरार्द्ध सँ प्रारम्भ भए जाइत अछि जाहिमे 1930 ई क पश्चात तीव्रता सेहो अबैत अछि । पत्र-पत्रि‍काक प्रकाशनमे वृद्धि‍क संगहि कथाक विकास मे बेस प्रगति भेल । ई प्रगति परिमाण आओर परिणाम दुनू दृष्टि‍ए भेल ।

स्वाधीनतापूर्व केर मैथिली कथा आदर्श, भावुकता, करुणा, तथा सामान्यत: अविकसित शिल्पक घटना-प्रधान कथा-रचनाक कालखंड थिक जाहिमे उदेशात्मकताक स्वरक प्रमुखता रहैत छल । प्रारम्भिक‍ अनुवाद ओ आख्यान-आख्यायिकाक शिल्प-प्राकान्तर सँ बहराक जखन मैथिली-कथाक विकास यात्रा मौलिकता केर राजपथ पर आयल तँ 1940 ई0 धरि एकाध अपवादकेँ छोड़ि‍, समान्यत: अधि‍कांश कथाक पूर्वोक्तेँ स्थिति छल । अपवाद छल कुमार गंगानंद सिंहक ‘बिहाडि़’ नामक कथा जाहिमे आधुनिक कथा-शिल्पक अधिकांश विशेषता बीज-रूपमे वर्तमान अछि । सुखद आश्चर्य-एहि बातक अछि जे ओहि युगक ‘बिहाडि’ कथामे अगिला युगक यथार्थवादी युग-चेतना तथा परिवर्तित ग्रामीण परिवेश एवं विकसित शिल्पक कलात्मकता अछि ।

स्वाधीनता पूर्व केर मैथिली कथाकार आ कथा मे काली कुमार दासक ‘भीषण अन्याय’ हरिनन्दन ठाकुर सरोजक ‘कर्णफूल’ भूवन जीक ‘रौद छाया’, भीमेश्वर सिंहक ‘विसर्जन’, लक्ष्मीपति सिंहक ‘कबुलीवाला’ तथा सुमनजीक ‘वृहस्पतिक शेष’ आदि प्रमुख मानल गेल । एहि कालखंडक अन्य प्रमुख कथाकारमे छथि रमानन्द झा, श्री कृष्ण़ ठाकुर, कालीचरण झा, जगदीश मिश्र आदि । एहि युगक अधि‍कांश कथाक विषय छल विवाह आ वैवाहिक समस्या जाहिमे करूणा भावुकता तथा उपदेशात्मकता मूल रूप सँ रहैत छल । कथा-विकासक यात्रामे 1940 ई. क पछाति एकटा महत्वपूर्ण मोड़ उपस्थि भेल जखन प्रो. हरिमोहन झा, मनमोहन झा, किरण, उमानाथ झा, उपेन्द्र नाथ झा ‘व्यास’ आदि सन-सन कथाकार मैथिली कथा जगतमे प्रवेश कएलनि । यद्यपि एहि कथाकार लोकनिक अधि‍कांश कथाक विषय वस्तु, वैवाहिक समस्या आ भावुकता रहैत छल किन्तु कथा शिल्प अपेक्षाकृत विकसिक छल तथा घटना – प्रधान कथा होइतहुँ वातावरण निर्माण एवं चरित्रांकन मे एक प्रकार सँ संतुलन रहैत छल जकर विकास क्रमश: अगिला युगमे अधिक भेल । एहि कथाकार लोकनि मे प्रो. हरिमोहन झा अपन हास्य व्यंग्यक अद्भुत क्षमताक कारणे तथा मनमोहन झा अपन करूणा-सृष्टिक कारणे प्रसिद्ध भेलाह । प्रो. हरिमोहन झा अपन हास्य व्यंग्य लेखनक लेल मिथिलाक तत्कालीन अशिक्षा, अंध विश्वास, विरुपता ओ कुसंस्कारकेँ माध्यम बनाकेँ कथा साहित्य क रचना कएलनि‍ । ओहि मनोरंजनात्मक रचनाक कारणेँ मात्र मिथिले समाजमे नहि अपितु राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूपेँ लोकप्रि‍य भेलाह । एहि दृष्टि‍एँ ई विद्यापतिक पश्चात दोसर रचनाकार भेलाह जनिका करणे मैथिलीकेँ राष्ट्रीय अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर लोकप्रि‍यता भेटल आ प्रतिष्ठा भेटल । हास्य व्यंग्य सम्राट प्रो. हरिमोहन झाक कथा ‘कन्या जीवन’ आ पाँच पत्र नामक दुई गोट एहन कथा अछि जे अपन करूणा ओ मानवीय सम्वेदनाक संगहि मनोवैज्ञानिकताक कारणेँ अभिभूते नहि चकित कए दैत अछि । जे लेखकीय क्षमताक परिचायक थिक । स्वाधीनताक आसपास जे कथाकार लोकनि मैथिली कथा जगतमे प्रवेश कयलिन ताहिमे प्रमुख छथि राधाकृष्ण झा, डॉ शैलेन्द्र मोहन झा, ब्रज किशोर झा, राम कृष्ण झा किसुन, सुधांशु शेखर चौधरी आदि जनिका कथामे वास्तविक जीवनक यर्थाथ तथा कथा शिल्पक विकसित स्वरुप परिलक्षि‍त होमय लागल । स्व तंत्रनाथ झाक बाद जहिना जहिना विभिन्न पत्र-पत्रि‍काक प्रकाशनक सुविधा बढ़ल तहिना तहिना कथा विकासमे अभूतपूर्व प्रगति भेल तथा नवीन कथाकार लोकनिक मैथिली कथा जगत मे प्रवेश भेल । स्वाधीनताक पश्चात मैथिली कथा विकासमे आमूल परिवर्तन भेल । परिवर्तनक विषय विन्यास मे कथ्य ओ कथा-भंगिमा मे तथा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण-पद्धति मे भेल । पुरान परम्पराकेँ तोड़ि‍ वैवाहिक समस्या, उपदेशात्मक स्वर तथा घटनाक चमत्कारकेँ लोप भेल आ ओकरा स्थान पर कथ्य–विषयक विस्तार भेल । आब कथा मे घटना गौण भेल तथा वातावरण-निर्माण एवं चरित्रांकनक विशेषता प्रधान भेल ।

स्वाधीनताक पश्चात समकालीन मैथिली कथा अपन कथ्य, कथन भंगिमा ओ शिल्पक-विधानक कारणेँ समकालीन भारतीय कथा-विकासक समकक्ष ठाढ़ अछि । ई समकक्षताक सामर्थ देबाक श्रेय जाइत अछि स्वाधीनताक पश्चात कथाकार लोकनिकेँ जाहिमे प्रमुख छथि ललित, राजमकल चौधरी, लिली रे, धूमकेतु, सोमदेव, धीरेन्द्र, हंसराज, रमानन्द रेणु, गोविन्द झा, रामदेव झा, प्रभास कुमार चौधरी, गंगेश गंजन, जीवकान्त, राजमोहन झा, मनमोहन झा, महाप्रकाश, सुभाष, गौरी मिश्र, साकेतानन्द, अशोक कुमार झा, प्रदीप बिहारी, विभूति आनन्द, विश्वनाथ झा, तारानान्दक वियोगी, केदार कानन आदि । कथा विकासक क्रम मे महिला कथा लेखिकाक कुल संख्या लगभग दू सय सँ बेसी होयत । जिनकर लगभग सात सय कथा अद्यवधि‍ उपलब्‍ध अछि एहि महिला कथा मे गौरी मिश्र, शेफालिका वर्मा, लिली रे, सुभद्रा सुहासिनी, श्यामा झा, चित्रलेखा देवी, नीरजा रेणु, सुभद्रा कुमारी, उषाकिरण खान, विभा रानी, शकुन्तला चौधरी, नीता झा आदि कथालेखिका कथाक रसास्वासदन मैथिली पाठककेँ करेलनि अछि । आशा अछि जे मैथिली कथाक विकास क्रम केँ समुन्नत करबाक लेल अधिकाधि‍क संख्यामे महिला कथाकार लोकनिक डेग आगाँ बढ़त आ मैथिली कथामे संवर्धन होयत ।

मैथिली कथा साहित्य मे शिल्पक स्वरुप विधान




साहित्य समाजक दर्पण आ कथा समाजक प्रतिबिम्ब होइत अछि । ई चरितार्थ तखनहि भए सकैत अछि जखन कथामे शिल्पक अभिव्‍यक्ति नीक जेंका होए । कोनो युग विशेषक प्रतिनिधि कथाकार वैह होइत अछि जे एकर सीमित परिधि‍मे नियंत्रित आकारमे सुन्दर चित्र प्रस्तुत करैत छथि । कथा रचनाक प्रवृति मे शिल्पकक विधान अत्यन्त महत्वपूर्ण अछि । मैथिली कथा साहित्यक प्रारम्भिके अवस्था सँ एकर महत्ता देखल जा सकैत अछि । एहि प्रमुख विधानक माध्यमहि सँ कोनो रचनाकार, जनिकामे प्रतिभाक प्रचूरता रहैत अछि समाज मे होइत परिवेश ओ वातावरण मे परिवर्तनशीलताकेँ स्पष्ट रूप सँ पाठकक समक्ष रखैत छथि ।

शिल्पक विभिन्न स्वरूप -

मैथिली कथा साहित्यक प्रारंभ सँ लए कए आइ धरि कथाकारक कतेको पीढि़ सक्रि‍य भए मैथिली कथा साहित्य केँ समृद्ध कए रहल अछि । विभिन्न स्तर पर होमयबला बदलाल रचनाकारक रचना मे परिवर्तन आनैत छैक । संचार माध्यमक सापेक्षता मे साहित्यक अभिविद्धि‍ सामाजिक सांस्कतिक एवं राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन कथाक शिल्पकेँ विकसित करैत अछि । आरम्भिक अवस्थामे पंचतंत्र ओ आख्यानक शिल्प मैथिली कथा साहित्यके प्रभावित कयलक अछि । डॉं रमानंद झा रमणक अनुसार मैथिली कथा साहित्यमे सात प्रकार शिल्पक विकास भेल अछि ।

1) प्रलापीय शिल्प – कोनो कथाक मुख्यक पात्र नायक अथवा नायिका द्वारा बाजल गेल एक-एक शब्द कथाक दिशा निर्धारित करैत अछि । ओ आन कोनो पात्र जेका अपशब्द अथवा अनैतिक शब्दक प्रयोग प्राय: नहि करैत छथि एकरे प्रलापीय शिल्प कहल जाइत अछि ।

2) आर्वतक शिल्पी – एहिमे कथाक प्रारम्भ अंत सँ होइत अछि । एकर दू प्रकार होइत अछि –

क) भावक आवर्तक ख) भाषिक आवर्तक


जाहि कथामे विचारकेँ भावक माध्यम सँ प्रकट कएल जाए ओ भेल भावक आवर्तक तथा जाहिमे भाषाक प्रगाढ़ता द्वारा कथाक आरम्भ ओ अंत होए ओ भेल भाषिक आवर्तक ।

3) एकहि संग अनेक कथाक समावेश – मैथिलीमे अधिकांश कथा एक घटना विशेष पर आधारित रहैत अछि तथापि कतेको एहन कथा अछि जाहिमे एक संग अनेक कथा चलैत अछि । जेना – राजमोहन झाक युद्ध... युद्ध...युद्ध... । एहि मे भाई-बहिन, भारत-पाकिस्तान आ पति-पत्नीक बीच एक संग युद्ध चलैत रहैत अछि ।

4) सांकेतिक शिल्प – सामान्यतया कथाकार मोनक अन्तर्द्वन्द केँ सांकेतिक भाषा द्वारा स्‍पष्‍ट करैत अछि । गरीबीक मारिसँ ठमकल मोन, सामाजिक विषमता अथवा कोनो कार्यकेँ पूर्णरुपेण करबाक क्षमता होयतहुँ कथा पात्रमे अक्षमताक बोध प्राय: एहि शिल्पक माध्यम सँ स्पष्ट भए जाइत अछि । एहिमे लीली रेक ‘चन्द्र्मुखी’, सोमदेवक ‘भात’ आ गंगेश गुंजनक ‘जीवनक रस’ एकर सर्वोत्तरम उदाहरण मानल जा सकैत अछि ।

5) प्रतीकात्मक शिल्प – कखनो-कखनो कथामे भावक उद्बोधन वा वास्तविक स्थितिकेँ स्पष्ट करबाक हेतु प्रतीकात्मक रूप मे भाषाक प्रयोग कएल जाइत अछि । प्रतीकात्मक कथाक माध्यम सँ पाठकक बौद्धि‍क क्षमता मे विकास होइत अछि – ‘गाड़ी पर नाँव’, ‘धुँआ’ आदि कथा एहि शिल्प विधानक उदाहरण रूपमे कहल जा सकैत अछि ।

6) कथानायकक दू व्यक्तित्‍वक नीरुपण – कतेको कथामे नायकक दू प्रकारक व्यक्ति‍त्वकेँ उजागर कएल जाइत अछि । एक तँ ओकर वास्त्विक व्यक्तित्‍व भेल आ दोसर परिस्थितिजन्य व्यक्ति‍त्व । वास्तविक व्यक्तित्व भेल ओकर मूल स्वभाव आ परिस्थितिजन्य व्यक्ति‍त्व भेल समयानुकूल परिवर्तित स्थि‍ति पर बदलल मनोभाव । राजमोहन झाक ‘अपन लोक’ कथा क नायकक व्यक्ति‍त्व एहि प्रकारक अछि ।

7) बिम्बात्मक शिल्प – मैथिली कथा साहित्यतमे अनेको कथा बिम्बात्मक शिल्प मे लिखल गेल अछि । ओहि सभ कथामे स्थि‍ति ओ मनोभावक वर्णन अत्यन्त भावुकता संग कएल जाइत अछि – ‘साँझक गाछ’ कथा एकर उत्कृष्ट प्रमाण अछि । 

एहि प्रकारें आइ मैथिली कथा साहित्यक जे विकसित परम्परा हम देखि रहल छी ओकर विकास मे शिल्पक महत्वपूर्ण भूमिका अछि । कथाक ई प्रमुख प्रभेद रोचकता आनैत अछि, मार्मिकताक संग भावक उद्बोधन करैत अछि आ संस्कारगत व्यवहारिकताक ठोस आधारशिला रखैत अछि ।