एक सपना जो आज पुरा हो गया । मेरे आइकॉन पियूष मिश्रा जी से मुलाकात हुई । मौका था पटना लिटरेसी फेस्टिवल की । अंतिम दिन मौका मिला था और चाहत भी थी, क्योंकी मुझे पता था कि इसी दिन मुझे पियूष मिश्रा जी से मुलाकात हो सकती है । सो पहूंच गए । करीब 11:30 बजे गुलजार साहब ‘’मुझको भी तरक़ीब सीखा दे’’ पर यतिन्द्र मिश्रा जी से गुफ्तगु कर रहे थे । उसके बाद आखिरकार जिसका इंतजार था वो समय आ ही गया।
मंच पर पहुंचे पियूष मिश्रा, क्रार्यक्रम का नाम था ‘’ जो संवाद नहीं कह पाए : गीतों की जुबानी’’ इसमे इनके साथ थे यतीन्द्र मिश्रा और प्रोग्राम को मॉडरेट कर रहे थे डा विभावरी । एकदम जानदार और मज़ेदार शेशन रहा । पियूष जी ने बहुत से अनसुने गीतो को सुनाया । कुछ पुराने भी थे और कुछ ऐसे जो बकौल पियूष जी फिल्मों से रिजेक्ट हो गये थे । उन्होनें कहा की जो गाने फिल्मों में रिजेक्ट हो जाती है उसे मैं क्लासिक समझकर पॉकेट में रख लेता हूं । एकदम सादगी और साधारण शब्दों में । पीयूश जी का यही व्यक्तित्व मुझे उनका फैन बना दिया । फोटो खिचावाने के अनुरोध पर एकदम आत्मीयता से फोटो खिचवाए । इस मौके उनके कुछ अनछुए गीतो को शब्द देने की कोशीश की है...
जमाना क्या से क्या हुआ
कहीं पे लड़की जाए लुढ़की
कहीं पे बच्चा फांके सुरती।
कहीं पे अम्मा वो भी ठरकी
जमाना क्या से क्या हुआ ।।
कहीं पे नींद, कहीं पे शोर
कहीं पे रात, कहीं पे भोर – 2
कहीं पे हाय, कहीं पे बाय
कहीं पे फिस्स, कहीं पे ठाय – 2
कहीं नींद कहीं शोर, कहीं रात कभी भोर
कहीं ठाय ठाय ठाय, कहीं फिस्स
उंह आह आउच
कहीं पे गाड़ी चम्मकवाली
कहीं पे लगड़े पैर की लाली
कहीं पे कुबड़े हाथ की ताली
जमाना क्या से क्या हुआ – 2
कहीं पे लड़की जाए लुढ़की
कहीं पे बच्चा फांके सुरती
कहीं पे अम्मा वो भी ठरकी
जमाना क्या से क्या हुआ
काम तो नहीं फिर भी काम किए जा
सड़को की धूल को सलाम किए जा ।
साले
काम तो नहीं फिर भी काम किए जा
सड़को की धूल को सलाम किए जा ।
जीसस को बोल तू सतसिरियाकाल जी ।
अल्ला मिया को राम-राम किये जा ।
दिल हो खुजली तो आंखो को मीच
पौव्वा निकाल के मोटा वाला खीच ।
झूठा तव्वसुर है तो क्या हुआ ।
सच्चे की खोज में तु आज ना जला ।
कहीं आंशुओं की नाव, कहीं अंतरी की घॉव
कहीं ठाय ठाय ठाय कहीं फिस्स ।
उंह आह आउच
कहीं पे होटल रंग बिरंगा
कहीं पे इंशा नंग धड़ंगा ।
कहीं पे चमके दूर तिरंगा
जमाना क्या से क्या हुआ ।
कहीं पे लड़की जाए लुढ़की
कहीं पे बच्चा फांके सुरती
कहीं पे अम्मा वो भी ठरकी
जमाना क्या से क्या हुआ
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