
खैर जब हमारी सारी कोशीशे बेकार गयी तो एक साहब ने मुफ्त की सलाह दी भाई साहब यहाँ कमरा ऐसे नही मिलेगा किसी प्रोप्रटी एजेंट से बात करो। वही तुम्हारी नैया पार लगा सकता है। हमने सोचा इतना हुआ तो ये भी ट्राय करके देखा जाय। निकल पड़े टू लेट वाले इस्तेहारो से ढ़ूढ कर नंबर उपर किया और फिर कॉल पर कॉल। कुछ नंबर मिला भी कुछ ने समय भी दिया। हे भगवान। ये प्रोपर्टी डीलर थे या वकील पता ही नहीं चल पा रहा था। इनसे बात करने के लिए भी फीस देनी पड़ी। अरे हाँ । इन्होने पहले तो रजीस्ट्रेशन चार्ज के नाम पर १००० रूपया लिया फिर दो ऐसे सड़े हुए घर दिखाए जिसे हम पहले ही रीजेक्ट कर चुकें थे। लो जी हो गयी थई। अब क्या करे हारकर हमने एक मित्र का सहारा लिया और उसके साथ ही सिफ्ट हो गऐ उनके साथ। अब फिलहाल वहीं है और मजे ले रहें है।
वैसे सच कहू तो दिल्ली जैसी साफ सफाई नहीं है यहाँ लेकिन जैसा की सुनता आया था कि लाइट नही रहती है वैसा कुछ भी नहीं है। बिजली 24 घंटे रहती है। और लोग हेल्पफुल है। हां कुछ अगर ज्यादा है तो वो है राजनीति, ऐसा लगता है जैसे लोगों के खुन में ही राजनीति घुसी हुई हो। लोग एकदुसरे को देखना पसंद नही करते है। हमेशा एक दुसरे को नीचा दिखाने की कोशीश में लगे रहते है। और जो सबसे बुरा लगता है वो है यहा के लोक-व्यवहार (मैनर और एटिकेट), यहाँ के लोगों में इसका घोर अभाव है। कहीं भी थूक देना। कही भी हल्का होना लेना। कुड़े की ढ़ेर की तरह कुछ भी कही भी बेतरतीब कर देना यहाँ की खासियत है। और सबसे गन्दी बात ये है कि लोगों को आप कुछ समझा नही सकते है। सीधी और बेतरतीब तरीके से ऐसे जबाव देते है कि आपको कुछ बोलते ही नही बनेगा। मसलन अगर किसी भाई साहब को कहो कि यहाँ मत थुको तो उनका जबाव होगा मैं तो यही थुकूंगा, तुझे चुल है तो तु साफ कर ले। या क्या कर लेगा बे मैं तो यही थुकूंगा आदि आदि। राजधानी होने के बावजूद भी एक भी जगह कुड़े का डब्बा नहीं मिलेगा। नालीयां भरी हुई मिलेगी। मुख्य सड़क से निचे उतरने पर गाँवों से भी बुरी जिदंगी नज़र आएगी। अभी कल की ही बात है हल्की बुंदा बांदी ही ने कैसे यहाँ की पोल खोल दी है। जगह जगह कीचड़ और गंदगी ने जीना यहाँ के लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। लोग सड़को पर पैदल चलने से घबराने लगे है, पता नहीं कब पैर स्लीप हो और शरीर नाली के अंदर पड़ा हो। लेकिन फिर भी लोग जी रहे है। एक उम्मीद और एक आश लेकर। शायद वो सोचते है कभी तो उनके सपनों का शहर बनेगा ये पटना।
अरे हाँ, कुछ मज़ेदार बात तो लिखना भुल ही गया। कुछ प्वाइंट जो हमें पटनीया संस्कृती से परिचय करवाता है।
- सबसे पहला अगर भैया आपको कमरा चाहिए तो आपका शादी शुदा होना पड़ेगा।
- आप अगर ऑटो में बैठे है तो आगे पिछे होकर बैठीये या फिर पतले होकर आइये।
- यहाँ आपको पिज्जा हट, कैफे कॉफी डे, से लेकर बिग-बजार, और विशाल मेगा मार्ट आदि के नाम भी हिंदी में लिखा मिलेगा।
- यहाँ गोलगप्पा खाने के बाद सुखा दिया जाता है, लोग गोलगप्पे का पानी नहीं मांगते ना ही मीठा पापड़ी।
- रिक्शे का किराया दस रूपये से कम नहीं होगा। चाहे बैठ कर उतर हीं क्यो ना जाओ।
- सड़को को नाम विदेशो के तर्ज पर देखने को मिलेगा मसलन एक्जीवीशन रोड, फ्रेजर रोड, आदि आदि।
- यहाँ अंग्रजी की तो बात ही मत पुछीये हम हिंदी की भी माँ बहन करके बोलते है। मसलन कैइसन आदमी है हो, किरीया खाकर कहते है, आदि आदि।
- स को श, और श को स कहना यहाँ के लोगो का जन्मसिद्ध अघिकार है। वैसे र को ड़ और ड़ को र भी बोलने में हम सबसे आगे हैं।
- लिट्टी चोखा हरेक दस कदम की दुरी पर मिल जाएगा।
- गोलगप्पा कब पटना आकर फुचका बन गया पता ही नहीं चला।
और भी बहुत कुछ है, याद आने पर कभी आराम से लिखा जाएगा। अभी तो बस इतना ही कह सकते है कुड़े के ढ़ेर पर उम्मीदों की आश लगाया एक शहर है जिसका नाम पटना है। जो अशोक और गुरू गोविन्द सिंह के नाम को अभी भी नहीं भुला सका है। लेकिन याद रखने लायक भी नहीं छोड़ा है।
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