रूठना शायद महिलाओं के चारित्रिक विकास की एक कड़ी हैं। इतनी मज़बूत कड़ी की ये ना हो तो महिलाओं का शारीरिक और मानसिक विकास ही रुक जाए।
एक सम्पूर्ण औरत अपने जीवन काल में कितने बार रूठती हैं ये शायद उनको भी पता नहीं होगा। ना ही अभी तक किसी वैज्ञानिक ने इस बारे में कोई अटकले, कयास या कोई सार्थक प्रयास किया हैं। मुझे तो लगता हैं की रूठने को नापने का पैमाना ना तो अभी तक बना हैं ना ही कभी आगे बन सकता हैं।
लेकिन एक बात तो साफ़ हैं की यह जितनी तेजी से फ़ैल रहा हैं और छूत की तरह एक से होते हुए दुसरे तक पहुँच रहा हैं से इस आंकलन को टाला नहीं जा सकेगा की आने वाले समय में महिलायें इस बिमारी से पेट से ही ग्रसित होकर आएगी।
वैसे अगर देखा जाय तो यह अनुमान भी काफी हद तक सत्य हैं बच्चे जन्म के साथ ही रूठने लगते हैं, कभी दूध के लिए तो कभी टाफी के लिए और ये बिमारी युवावस्था की अग्रसर होते होते और भी भयानक और छूत की तरह लगती हैं। मेरा तो यहाँ तक मानना हैं की आर्थिक मंदी और डांवाडोल अर्थव्यवस्था के लिए कही हद तक ये रूठना फैक्टर भी जिम्मेदार हैं। रूठे हुए को मानने के लिए ये दुखियारी माँ बाप या बेचारा पती या बोयफ्रैंड उनकी जरुरतो को पूरा करने में लगा रहता हैं वो भी बिना फायदे नुक्सान की चिंता किये।
वैसे मेरे हिसाब से बिना फायदे नुक्सान के हमेशा इनकी हरेक बात मानना और इनकी जरुरतो को पूरा करना ही आपको इस भयानक बिमारी से बचा सकता हैं। वैसे चिकित्सा विज्ञान में इस समय तक इस बीमारी के लिए कोई भी इलाज़ नहीं आ पाया हैं। नहीं इस पर कोई शोध चल रहा हैं। इलाज़ सिर्फ एक हैं, इनकी जायज़ नाजायज़ मांग को आप आँख बंद करके पूरा करते रहे।
आशिक मिजाज़ मजनुओ और पतियों के संग उन दुखियारी माँ-बाप से भी विनम्र निवेदन हैं की अगर आपके आस-पास या नाते रिश्तेदार में इस प्रकार के रोग के चिन्ह मिलते हैं तो अभी से सावधान हो जाए, आपकी जरा सी चुक आपको हिटलर से जानी लीवर बना सकती हैं और आपकी जरा सी लापरवाही आपको पालतू कुत्ता बनाकर जीवन भर इनके कदमो को चाटने और इनके पीछे दुम हिलाकर चलने को मजबूर कर सकती हैं। सावधान!
एक सम्पूर्ण औरत अपने जीवन काल में कितने बार रूठती हैं ये शायद उनको भी पता नहीं होगा। ना ही अभी तक किसी वैज्ञानिक ने इस बारे में कोई अटकले, कयास या कोई सार्थक प्रयास किया हैं। मुझे तो लगता हैं की रूठने को नापने का पैमाना ना तो अभी तक बना हैं ना ही कभी आगे बन सकता हैं।
लेकिन एक बात तो साफ़ हैं की यह जितनी तेजी से फ़ैल रहा हैं और छूत की तरह एक से होते हुए दुसरे तक पहुँच रहा हैं से इस आंकलन को टाला नहीं जा सकेगा की आने वाले समय में महिलायें इस बिमारी से पेट से ही ग्रसित होकर आएगी।
वैसे अगर देखा जाय तो यह अनुमान भी काफी हद तक सत्य हैं बच्चे जन्म के साथ ही रूठने लगते हैं, कभी दूध के लिए तो कभी टाफी के लिए और ये बिमारी युवावस्था की अग्रसर होते होते और भी भयानक और छूत की तरह लगती हैं। मेरा तो यहाँ तक मानना हैं की आर्थिक मंदी और डांवाडोल अर्थव्यवस्था के लिए कही हद तक ये रूठना फैक्टर भी जिम्मेदार हैं। रूठे हुए को मानने के लिए ये दुखियारी माँ बाप या बेचारा पती या बोयफ्रैंड उनकी जरुरतो को पूरा करने में लगा रहता हैं वो भी बिना फायदे नुक्सान की चिंता किये।
वैसे मेरे हिसाब से बिना फायदे नुक्सान के हमेशा इनकी हरेक बात मानना और इनकी जरुरतो को पूरा करना ही आपको इस भयानक बिमारी से बचा सकता हैं। वैसे चिकित्सा विज्ञान में इस समय तक इस बीमारी के लिए कोई भी इलाज़ नहीं आ पाया हैं। नहीं इस पर कोई शोध चल रहा हैं। इलाज़ सिर्फ एक हैं, इनकी जायज़ नाजायज़ मांग को आप आँख बंद करके पूरा करते रहे।
आशिक मिजाज़ मजनुओ और पतियों के संग उन दुखियारी माँ-बाप से भी विनम्र निवेदन हैं की अगर आपके आस-पास या नाते रिश्तेदार में इस प्रकार के रोग के चिन्ह मिलते हैं तो अभी से सावधान हो जाए, आपकी जरा सी चुक आपको हिटलर से जानी लीवर बना सकती हैं और आपकी जरा सी लापरवाही आपको पालतू कुत्ता बनाकर जीवन भर इनके कदमो को चाटने और इनके पीछे दुम हिलाकर चलने को मजबूर कर सकती हैं। सावधान!
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