Friday, April 27, 2012

मेघ पानी अभियान से होगा बाढ़ का मुकाबला

बिहार के पाँच बाढ़ से तबाह शहरो के पच्चीस पंचायतो के ऊपर एक नया शोध जारी हैं, जो लोगो को उनके ज्ञान व उपलब्ध श्रोतो की मदद से एक नए जीवन शैली अपनाने  में मदद करेगी,  ये साल दर साल होने वाले वर्षा में कमी के कारन होने वाले नुक्सान में भी राहत पहुंचाएगी
मेघ पानी अभियान नाम की एक योजना चलाई जा रही हैं, जिसके अंतर्गत उत्तरी बिहार के पाँच शहरो सुपौल, सहरसा, खगड़िया, मधुबनी व् पश्चिमी चंपारण में आने वाले पच्चीस ग्रामीण इलाको में जल से सम्बंधित मुद्दों को गहराई से समझने का प्रयास हो रहा हैं।
इस परियोजना का मूल उदेश्य हैं सालो भर सुरक्षित पेय जल उपलब्ध करवाना खास कर बाढ़ के समय में, स्वास्थ संबंधी सुविधा उपलब्ध करना तथा कृषि के तरीको में बदलाव लाना, ताकि यहाँ के लोग भोजन व स्वस्थ जीवन शैली के लिए आत्मनिर्भर हो सके।
MPA (मेघ पानी अभियान) कार्यकर्ता एकलव्य प्रसाद ने इन मूलभूत बातो पर बल दिया हैं, सभी पंचयातो में लगभग बीस जगहों पर, वर्षा के जल से सिचाई के महत्वो का प्रदर्शन किया गया तथा इसके अलावे जल से सम्बंधित स्वास्थ, आर्थिक, व सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण किया गया। चुकी यहाँ के लोगो ने जल को कभी इन समस्याओं का आधार नहीं माना हैं इसलिए MPA ने जल की जांच कराकर विभिन्न प्रकार के दूषित जलो व उनके दुष्प्रभावो से लोगो को अवगत कराया।
MPA ने जल संचय के अन्य विकल्पों की व्यवस्था की जिन्हें 'जल कोठी' नाम दिया गया, पाँचो शहरो ने अपनी आवश्यकता और क्षमता के मुताबिक़ जल कोठी का विकाश किया, प्रसाद जी ने कहा की इन पाँच शहरो में अब तक दू सो पचास अर्ध स्थायी तथा लगभग आठ सो अस्थायी वर्षा जल संचय सयंत्र स्थापित किये जा चुके हैं, जो बाढ़ के पानी से सुरक्षित होगा। प्रत्येक जल कोठी के निर्माण में करीब आठ सो सडसठ रूपये लगे हैं। जल में उपस्थित आयरन की अत्यधिकता को कम करने के लिए सुपौल में उपयोग किये जाने वाले दो 'मटकों वाले फ़िल्टर' के प्रारूप का इस्तेमाल किया हैं साथ ही साथ मटके को जल में उपस्थित अन्य गंदगी को छानने के लिए विकशित किया गया, अब तक ऐसे दो सो पच्चीस मटका फ़िल्टर लागए जा चुके हैं, जिनसे करीब ३५ हज़ार लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

बाढ़ के कारण होने वाले नुक्सान को देखते हुए MPA ने ग्रीष्मकालीन धान की खेती का विकास किया इसके लिए सुरुवात में ३६ किसानो के समूह के द्वारा, जहाँ औसतन ७०-९० किग्रा प्रति कट्ठा उपज होती थी वहीँ MPA ने १२०-२०० किग्रा प्रति कट्ठे की पैदावार की, MPA के अभियान ने लोगो में बाढ़ के कारण होने वाले भोजन की कमी व गरीबी से निजात दिलाने में मदद की हैं।

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