जब रंग-गुलाल के ठुमके से,
मस्ती खुमार की आती है ।
जब बच्चों के पिचकारी में,
रगीन गुलाली छाती हैं ।।
रंग भरा कुछ भांग भरा,
ये प्यारा मौसम आता हैं ।
कुछ जीजा का कुछ साली का
जब रंग जवां हो जाता है ।।
देवर भाभी के रिश्ते पर,
तो रंग और चढ़ जाता हैं ।
उनकी ठिठोलियाँ देख-देख,
साजन मन में कुढ़ जाता है ।।
सजनी की भींग गयी चोली,
साजन की मस्त निगाहों से ।.
रंग फीका सा पड़ जाता है,
सजनी के मस्त अदाओं से ।।
बाबा बच्चे से लगते है,
त्यौहार ये ऐसा होता है ।
बुढिया के गालों पर भी तो,
नटखट सी लाली छाती है ।।
जीजा-साली, भाभी-देवर,
सजनी-सजना में मस्त है आज ।
दादी दादा रंग में भींगे,
ढोलक पर जमा रहे हैं थाप ।।
गुझियों की थाली हाथ लिए,
जब प्यार से भाभी आती हैं ।
गुझिया मीठी हो जाती है,
जब प्यार से हमे खिलाती है ।।
जब सब के मिल मुस्काते है,
मिल के हुडदंग मचाते हैं ।
जब मस्ती सर पे छाती है,
समझो तब होली आती है ।।
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