Monday, December 24, 2012

दामिनी तुम्हे उठना होगा

प्रिय दामिनी,

एक सवाल कौंध रहा हैं मेरे मन में, पिछले कुछ दिनों से जब से घटी हैं वो मर्मान्तक घटना तुम्हारे साथ। लुट लिया था कुछ दरिंदो ने तुम्हारी अस्मत, घायल कर दिया था तुम्हारी अस्मिता को, और फेक दिया था सड़क के किनारे पूस की उस रात में नील आसमान के निचे। दमिनी तब से सोच रहा हूँ मैं, एक नासूर बन कर पनप रहा हैं वो सवाल मेरे भीतर .... की क्यों नहीं आई तुम्हे याद की तुम्ही हो चंडी जिसने वध किया था चंड और मुंड जैसे दैत्यों का, तुम्ही हो काली जिसने चूस लिया था रक्त-बीज का लहू, और तुम्ही हो दुर्गा जिसने किया था उस दुरात्मा महिष का वध। क्या भूल गयी थी तुम झाँसी की रानी को जिसने अंग्रेजो के छक्के छुडा दिए थे। क्या किरण बेदी का आत्मविश्वास भी तुम्हे याद नहीं आया था या तुम भूल गयी थी मलाल के जिगर को। दामिनी ; क्या तुम्हे किसी जामवंत की याद आन पड़ी थी उस समय जो याद दिलाता तुम्हे तुम्हारी शक्तियों का तुम्ही हो बुद्धि, बल और विद्या की देवी। जब वो भूखे भेड़िये टूट पड़े थे तुम पर जैसे कुत्ते टूटते हैं हड्डियों पर तो तुमने क्यों नहीं दिखाया था अपना रोद्र रूप जिसे देखकर देवता भी काँप जाते हैं। या तुम इन्तेजार में थी उस कृष्ण की जिसने द्वापर में बचाया था द्रोपदी की लाश। दामिनी तुम भूल गयी की वो द्वापर थे इसलिए कुछ पुण्य बचा था। ये कलयुग हैं जहाँ पाप ही पाप हैं। जहाँ देवता भी कतराते हैं अवतार लेने से। आने की बात तो दूर उन्होंने सुनी भी नहीं होगी पुकार क्योंकि दब गई होगी तुम्हारी चीख, उन टायरो के शोर में, बस की घड्घडाहट में और पापियों की अनंत शोर के बीच। प्रिय दिल्ली के इस प्रदुषन के बीच कृष्ण का श्याम स्वरूप कही काला ना पड़ जाए इस डर से नहीं आये थे तुम्हारे कृष्ण कन्हैया। लेकिन तुम्हे तो होना चाहिए न अपने बाज़ुओ पर भरोसा। जब वो दरिन्दे नोच रहे थे तुम्हारी अस्मत तब कहा गुम गयी थी तुम। बोलो जवाब दो। बताओ दुनिया को। क्योंकि तुम्हारी चुप्पी रोज एक दमिनी को जन्म देगी। और रोज एक लड़की होती रहेगी इन भूखे भेडियो के हवस का शिकार। रौंदी जाएगी लडकियाँ सिर्फ तुम्हारे चुप रहने से। तुम्हे उठाना ही होगा। तुम्हे देना ही होगा आवाम को ठोस जवाब। तुम्हे फिर से उठाना होगा एक शेरनी की माफिक और देना होगा जवाब उस दुरात्मा को। तुम्हे जागना होगा क्योंकि तुम नहीं चाहोगी की लाखो लड़की ऐसे ही रोज दामिनी बनती रहे। सरे राह, बीच बाज़ार, और बसों की अगली सीट पर। तुम्हे उठना होगा ताकि नहीं हो लग सके फिर किसी लड़की की बोली। तुम्हे उठाना होगा क्योंकि नहीं सह सकती तुम इंडिया गेट पर कड़ी उन लडकियों की पीड़ा जो सरकार के कोप का शिकार हो रहे हैं तुम्हारे हक़ के लिए। तुम्हे उठाना होगा अपने लिए नहीं अपितु उस आवाम के लिए जो पलक पावडे बिछाए हैं अपने प्यारी "दामिनी" के लिए।

तुम्हारा
एक अज्ञात लेकिन अन्दर ही अन्दर झुलसता लेखक

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