उत्तर
– महाकवि विद्यापति युग चेतनाक महान कवि तथा मिथिला संस्कारक महान भक्त छलाह ।
हुनक जतेक श्रृंगारिक तथा अन्य मांगलिक गीत सभक प्रचार- प्रसार भेल ताहिसँ कम
लोकप्रिय हुनक भक्ति गीत नहि भेल । अपितु लोकजीवनमे भक्तक रूपमे ओ बेस मान्य
भेलाह । ‘विद्यापति गीतावली’क भक्ति विषयक गीतक अध्ययन कयलासँ ज्ञात होइत अछि
जे कवि मैथिल परम्पराक अनुरूप विभिन्न देवी-देवताक स्तुतिमे गीतक रचना कयने छथि
। एक दिसजँ ई गीतावली कविक श्रृंगारिक भावनाक निदर्शन करैत प्रमोपासक, सौंदर्यक –पारखी,
माधुर्यक स्रष्टा आ सिद्धहस्त कलाकारक रूप प्रस्तुत करैत अछि तँ आन दिस एक भक्त
कविक रूपमे शास्त्रीय आ लौकिक दुनू मार्गमे सामंजस्य स्थापित करबैत धर्म आ ईश्वरक
प्रति समन्वयक भावनाक निदर्शन करबैत अछि ।
वैदिक परम्पराक अनुकूल मिथिला
बहुदेवोपासक क्षेत्र थिक । ऋृगवेदमे विभिन्न देवक स्तुति गायन समानतन्मयताक संग
भेल अछि मुदा भक्ति भावनाक मूल उत्स वरूणसूक्तकेँ मानल जाइत अछि जकर कालांतरमे
एकान्तिक भक्तिक रूपमे विकास भेला सहज स्वाभाविक अछि जकर सूत्रधार भेलाह
महाकवि विद्यापति । हुनक भक्तिभावनाक व्यापक प्रभाव ब्रजभाषा अवधी आदि मध्यकालक
भक्तियुगीनमे देखबामे अबैत अछि ।
विद्यापति भक्ति गीत तीन
कोटिमे विभाजित कयल जा सकैत अछि । पहिल
कोटिक गीत मे शिव विषयक नचारी ओ महेशवानी अबैत अछि । दोसर कोटिक गीतमे अबैत अछि
शक्ति गंगा आ विष्णुक स्तुति तथा तेसर कोटिमे शान्तिपदकेँ राखल जा सकैत अछि
।
यद्यपि विद्यापतिक गंगा स्तुति
ओ भगवती सम्बन्धी अनेक गीतक रचना कयलनि जाहिमे हुनक हार्दिक निष्ठा व्यक्त
भेल अछि मुदा परिमाण ओ परिणामक दृष्टिमे हुनक शैव विषयक गीत विशिष्ट महत्वक
अछि । हुनक ‘जय-जय भैरवी असुर भयाउनी’अथवा ‘कनक भूधर-शिखर वासिनी’ नामक गीत सबमे
भगवतीक लीला-गायन तथा महिमा वर्णन अति विशिष्टताक संग भेल अछि मुदा हुनक
हार्दिकता शैव गीतहिमे व्यक्त भेल अछि ।
विद्यापति शिव सम्बन्धी अनेक महेशवाणी ओ
नचारीक रचना कयलनि जे हुनक उत्तारार्ध रचना थिक । विद्यापतिक शिवगीत मैथिली
साहित्यक विशिष्ट अंग थिक । भारतीय साहित्यमे एकरा विद्यापतिक मौलिक देन कहल
जाइत अछि । विषयक दृष्टिमे ई सभटा महेशवाणी थिक आ जाहि भास वा लयमे एकर गायन
प्रचलित अछि से नचारी कहबैत अछि । नचारीक सम्बन्ध नृत्यसँ अछि आ देखल जाइत अछि
शिवभक्त महेशवाणीकेँ नाचि-नाचिकेँ गबैत छथि । महेशवाणीक गायनमे ई नचारी ततेक
लोक प्रिय भेल जे एकरा शिवगीतके बामान्तर बूझल जाय लागल । एकर प्रचार प्रसार
दूर-दूर धरि भेल अछि आ एक गोट नचारीकाराक रूप मे विद्यापतिक निर्देश 15म शताब्दीमे
जौनपुरवासी लखनसेनि आ 16म शताब्दीमे अबुल फजल द्वारा कयल गेल अछि । बंगाल ओ
आसाममे नचारी एक प्रकारक छान्दिक प्रयोगक रूपमे प्रचलित भेल ।
महेशवाणीमे शिवक पारिवारिक जीवन जे मिथिलाक जीवनकेँ सवर्था अनुकूल अछि तथा हुनक अन्य लीला सभक गायन भेल अछि एवं नचारीमे शिवक महिमा-वर्णन ओ अपन आत्मसमर्पणक निवेदन अछि । एकटा भक्तक हृदयक निष्ठा ओ आस्था, विव्हलता ओ तन्मयता तथा दीनता ओ आत्मसमर्पणक भावना जे भक्तिगीतक विशिष्टता थिक से विद्यापतिक महेशवाणी ओ नचारी में व्यक्त भेल अछि ।
कविक काव्यमे विष्णु ओ शक्ति
गीतक प्रचुरता रहितहुँ शिव विषयक गीतक अपन पृथक अस्तित्व अछि । हिनक शिव
विषयक गीत वा नचारी मिथिलामे पदावलियोसँ बेसी ख्यातिकेँ प्राप्त कयने अछि ।
पदावली तँ विशेषत: स्त्रीगण समाजमे गाओल जाइत अछि मुदा पुरूष समाजमे तँ नचारिये
प्रसिद्ध अछि । भक्तिभावक दृष्टियेँ शिव-विषयक गीतक जे महत्व अछि से
राधा-कृष्ण सम्बन्धी गीतक नहि । तेँ विद्यापति अपन उत्तरार्धमे शिव सम्बन्धी
महेश्वाणी ओ नचारी गीतक प्रचुर मात्रामे रचना कयलनिक।
शिव सम्बन्धी भक्तिगीतमे
विद्यपतिक हार्दिकता अपन चरम स्थितिमे अछि । आइयो मिथिलाक अनेको शिवमंदिरमे
विद्यापति रचित शिव भक्ति गीत महेशवाणी ओ नचारी अनेकानेक कंठसँ सुनबामे अबैत अछि
जाहि गीतकेँ गबैत-गबैत शिव भक्त भाव-विव्हल भs
जाइत छथि आ ओहि बाटे जे केओ जाइत सुनैत छथि ओ सेहो कुछु कालक लेल रूकिकेँ
अकानिकेँ सुनैत भावविव्हल भs
जाइत छथि ।
शिवजीक जीवन मिथिला ओ मैथिलक
जीवनसँ बहुत कुछ साम्य रखैत अछि । मिथिलान्तर्गत डेग-डेग पर शिव-मन्दिर भेटैत
अछि । कोनो न कोनो शुभ अवसर पर महादेवक नचारीसँ गीतक अन्त कयल जाइत अछि ।
मिथिलावासीक तं एहि प्रकारक धारणा रहैक जे गीतक अन्तमे जं शिवक नचारी नहि भेलतँ ओ
अपूर्णे रहि गेला । एखनो बहुतो स्थलपर भक्त लोकनि शिवलिंगक समक्ष बैसि
विद्यापतिक ई गीत बड्ड टानसँ गबैत अछि – कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ । वा शिव हो
उतरब पर कओन विधि ... आदि ।
कविकोकिल
एकगोट नटक रूपमे शिवक केहन विलक्षण वर्णन कयलनि अछि । पार्वति महादेवसँ नचबाक
हेतु दुराग्रह करैत छथि आ महादेव अनेक ब्याजसँ अपनाकेँ नचबासँ मुक्त करय चाहैत
छथि । द्रष्टव्य थिक –
आजु नाथ एक बार तं महासुख लाबह हे,
तोहेँ शिव धरू नट बेस कि डमरू बजाबह हे ।
तोहेँ गौरा कहै छह नाचए, हमे कोना नाचब हे,
चारि सोच मोहि होए कओन विधि बांचब हे ।
कविकोकिलक
शिवभक्तिक वर्णन किछु विशेष महत्व रखैत अछि । जकर एक गोट महत्वपूर्ण कारण अछि
हुनक सामिप्य प्राप्ति । देखल वस्तुक वर्णन जेहन विलक्षण होइत छैक तेहन सुनल
वस्तुक नहि । तुलसीदासकेँ रामक दर्शन भs
गेलनितेँ रामचरित मानसक एतेक महत्व । किवदन्ती अछि जे शिव उगनाक रूपमे
विद्यापतिक अनुचर छलाह । जखन विद्यापति एहि गप कs
गुप्त नहि राखि सकलाह तखन शिव अन्तर्धान भs
गेलाह । आ कविक कण्ठ सँ बहरायल – उगना रे मोर कतय गेलाह ।
विद्यापति रचित उपर्युक्त गीत
सभमे भक्ति भावना जाहि प्रकारें व्यक्त भेल अछि ताहिसँ लगैत अछि जे कविक आत्म
समर्पण ओ आसक्ति शिवक प्रति सर्वाधिक अछि । हिनक शिव सम्बन्धी गीतक भाषा
सहज, सरल, आ स्वाभाविक अछि तथा ओहिमे भावुकताक अतिरेक अछि । हिनक महेशवाणी मे शिवक
जे लीला आ नचारी मे जे शिक जे भक्तवत्सलता देखाओल गेल अछि ओ अन्यत्र भेटब
दुर्लभ अछि ।
विद्यापतिक
स्तुति परक गीतक स्वतंत्र कोटि अछि । एहिमे कवि विद्यापति ने कोनो देवी-देवताक
प्रार्थना करैत छथि । फलत: एहिमे आराध्यक महिमा ओ भक्तिक असहायताक रूढ़ि
अभिव्यक्तिक पाओल जाइत अछि । भगवतीक वन्दना, कुलदेवीक रूपमे शक्तिक अराधनाक
परिपाटी अछि एहि सन्दर्भमे प्रस्तुत गीत बड़ प्रशस्त अछि । देखल जाय – जय-जय
भैरवी असुर भयाउनी पशुपति भामिनी माया...
गंगाक
प्रति जे कविक आत्मीयता छलनि, गंगाक तरवाससँ जे सुखक उपलब्धि छलनि पुन: पुन:
गंगाक दर्शन-
लाभक
जे लालसा छलनि ताहि सभकेँ लेल कविक एकटा पांति द्रष्टव्य थिक –
बड़
सुख सार पाओल तुअ तीरे-छोड़इत निकट नयन बह नीरे
कर
जोडि़ बिनमओ विमल तरंगे, पुन: दर्शन होय पुनमति गंगे।
कृष्णवंदनाक
एकटा गीतमे महाकवि कृष्णक गुण-कीर्तन करैत हुनक अपूर्व रूप ओ लावण्यकेँ देखि
विस्मित-विमुग्ध भs
कहैत छथि -
माधव कत तोर करब बड़ाई,
उपमा तोहर कहब ककरा सँ
कहितहुँ अधिक लजाई ।
एहिमे
कृष्णक गुण-गरिमाक निरूपण श्रीखण्ड, चन्द्रमा, मणि कदली आदि समस्त प्रसिद्ध
उपमा द्वारा कैल गेल अछि । वेदान्त परिभाषामे परब्रह्मक जे आत्मपरिचय होइत अछि
‘एकोsहं द्वितीयो
नास्ति’ताहिसँ स्वर मिलबैत अन्तत: कवि कहैत छथि - तोहर सरिस एक तोहेँ माधव मन
होइछ अनुमाने ।
विद्यापतिक
भक्तिगीतक एक विशेष प्रभेद थिक शान्तिपद । सम्भवत: जीवनक उत्तरार्धमे
महाकवि विद्यापतिकेँ सांसारिक जीवनक प्रति निस्सारताक भानसँ वैराग्य भावनाक जन्म
भेल । आ तेँओ एक दिस वैराग्य जन्य निर्वेदक शान्ति गीत लिखलनि जाहि मे प्रमुख
अछि – तातल सैकत वारि बिन्दुसम सुत मित रमनि समाजे । तोहे विसरिमन नहि समापल अब
मझुहम कोन काजे । माधव हम परिणाम-निरासा ।
उपर्युक्त विवेच्य विषयक आधार
पर निष्कर्षत: कहि सकैत छी जे विद्यापतिक भक्ति वर्णनक गीतमे भक्तिभावनाक
तरलता ओ हार्दिकता, उद्गगार ओ तल्लीनता, आंतरिकता ओ निष्ठा संग वर्णित भेल अछि
जे सिद्ध्स कs दैत अछि
जे विद्यापति भक्ति वर्णनक जे गीत लिखने छथि से भक्तिभावनाक चर्मोत्कर्षपर
पहुँचि गेल अछि । तेँ एक शब्दमे यैह कहल जा सकैत अछि जे विद्यापतिक भक्ति वर्णन
बड़ उत्कृष्ट कोटिक अछि ।