नालंदा विश्व विद्यालय को दिल्ली ले जाने की आशंका पर अंतरजाल और ब्लॉग जगत पर कई सारे आलेख आये हैं, के के सिंह के और इसमाद ने भी इस खबर को प्रमुखता से स्थान दिया की क्या अब मोतिहारी के बाद नालंदा का नंबर तो नहीं, इसमाद के इस खबर के साथ ही अंतरजाल और इसमाद पर संदेशो की बाढ़ आ गयी, अंतरजाल पर आये कुछ प्रमुख संदेशो को हम यहाँ सीधे-सीधे चस्पा कर रहे हैं ( मोडरेटर).
सम्बंधित खबर - त कि मोतिहारी क बाद नालंदानालंदा कए दिल्ली ल जेबाक मामला स अंतरजाल आओर ब्लॉग जगत मे उबाल
ज्ञानेश्वर वात्स्यायन ने लिखा - नीतीश को भी 'तवज्जो' नहीं देती गोपा सब्बरवाल, ईश्वर ही जानता है नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का भविष्य । वैसे बिहार के वरिष्ठ पत्रकार के के सिंह साहब ने अगले वर्ष से शैक्षिक सत्र के शुरु होने की आस जगाई है । लेकिन कहां और कैसे शुरु होगा यह सत्र,कह पाना नामुमकिन है । विवादों में रहीं यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर गोपा सब्बरवाल को बिहार आने की फुर्सत ही नहीं मिलती । शायद राजगीर में 'फाइव स्टार' की सुविधाओं का इंतजार हो । मैंने दो दिनों पहले इस यूनिवर्सिटी की वेबसाइट www.nalandauniv.edu.in देखी थी । महीनों पहले बनी होगी,यह आप भी देखेंगे,तो पता चलेगा । यहां एपीजे कलाम के बिहार विधान सभा में दिये गये भाषण से लेकर अमर्त्य सेन और गोपा सब्बरवाल के विचार को भी देख-पढ़ सकते हैं । नीतीश कुमार का भी पेज बना है,लेकिन आप इसे जैसे ही क्लिक करेंगे,संदेश मिलेगा- we are in the process of updating the site....। इसके दो ही अर्थ निकलते हैं, यूनिवर्सिटी को 450 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने वाले नीतीश कुमार ने या तो अपना संदेश नहीं दिया अथवा उनके संदेश को अपलोड करने लायक अब तक नहीं समझा गया । सच ज्यादा बेहतर मैडम सब्बरवाल ही जानती होंगी । आपकी जानकारी के लिए मैडम सब्बरवाल का पगार मासिक पांच लाख रुपये से अधिक है । यह पगार देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित जेएनयू के वाइस चांसलर से भी अधिक व दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर से दोगुणी है । अक्तूबर,2010 से ही मैडम यह पगार पा रहीं हैं । पगार को 'टैक्स फ्री' कराने की कवायद भी हुई । इतने बड़े पगार के बदले मैडम ने अब तक क्या उपलब्धि हासिल की,यह भी बहस का मुद्दा है । और तो और मैडम ने करीबी डा. अंजना शर्मा को पिछले वर्ष 3.30 लाख के वेतन पर ओएसडी नियुक्त कराया । यूनिवर्सिटी की गवर्निंग बोर्ड की बैठकों पर अब तक देश-विदेश में करीब तीन करोड़ रुपये फूंके जा चुके हैं । वैसे इन बैठकों की अहमियत पर एतराज नहीं है,लेकिन स्थान पर तो सवाल उठेंगे । मैडम सब्बरवाल भले जो कुछ कहें,सच तो यही है कि वेबसाइट पर भी उनके दिल्ली के आरके पुरम स्थित किराये के दफ्तर का ही महत्व दिखता है,राजगीर का नहीं । मैंने शुक्रवार को उनके राजगीर कार्यालय में कुछ जानकारियों के लिए फोन किया था,लेकिन वह रिसीव ही नहीं हुआ । नंबर था-2255330 . मैडम अब तक राजगीर कितने दफे आईं,यह भी जानने की इच्छा थी । बहरहाल,कुछ प्रश्न हैं,जिनका जवाब आरटीआई के माध्यम से यूनिवर्सिटी के मुख्य लोक सूचना अधिकारी एस के शर्मा से जानने की कोशिश कर रहा हूं । आज के लिए बस इतना ही...
कुमुद सिंह - मूर्तियां कहीं भी कितनी भी विशाल स्थापित कर दिया जाए, वो समाधि का स्थान नहीं ले सकती। नालंदा नालंदा ही रहेगा पालम इस जन्म में नालंदा नहीं बन सकता। वैसे दिल्ली का भूगोल पहले ही विदेशियों को भ्रमित कर रही है। जनकपुरी से वैशाली तक सफर एक घंटे का हो चुका है। अब मनमोहन नालंदा भी दिल्ली में ही चाहती हैं। लेकिन वो ये नहीं जानते हैं हथेली काट लेने से भाग्य की रेखाएं नहीं बदलती।
अतुलेश्वर झा - हमारे हिसाब से मुख्यमंत्री नितीश कुमार गप्प जयादा हांकते हैं, कारन जितना वो बोलते हैं उसका एक अंश भी नहीं करते हैं। देखिये नए बिहार का निर्माण करते करते वो पुराने बिहार की अस्मिता भी नहीं बचा पा रहे हैं। इसमें गलती हम जनता जनार्दन की ही हैं, हम किसी को भी तुरंत ही भगवान् मान लेते हैं, ये उसी का प्रतिफल हैं।
इश्वर चन्द्र - जनाब, अब बिहार में बहार हैं, काम की किसे परवाह हैं.
आशीष झा - भैया जिसके सिर पर प्रधानमंत्री का हाथ हो, वो नीतीश को क्या भाव देगी। जहां तक केके सर का सवाल है तो इस मसले पर उन्हें लगातार पढ रहा हूं। हमें तो लगता है कि इस विश्वविद्यालय का पहला स्कूल कागज पर तो बिहार मे लेकिन व्यावहारिक रूप से दिल्ली के पालम में ही खुलेगा।
कृष्ण कुमार सिंह - जिस दिन से , पूर्व राष्ट्रपति डॉ A PJ , जिन्होंने ऐतिहासिक नालंदा विश्विद्यालय के विनाश पर नालंदा विश्विद्यालय के पुनर्निर्माण का विचार रखा, उस दिन उन्हें विश्वविद्यालय से अलग कर दिया गया जिससे इसकी पुनर्निर्माण की अनिश्चितता उजागर हुई। जी बी युनिवर्सिटी के चेयरमेन प्रो अमर्त्य सेन के मनमानी व अड़ियल रवैये से असहमत होने के कारन डॉ कलाम को युनिवर्सिटी से अलग कर दिया गया, प्रोफेसर सेन की ज्यादा रूचि युनिवर्सिटी के ज्ञान व सिक्षा के दलाली में हैं, जिसके कारण दिल्ली युनिवर्सिटी के एक जूनियर रीडर रैंक के शिक्षक को युनिवर्सिटी में अत्यधिक वेतन पर वीसी के रूप में मनोनीत किया गया, जिससे देश के शिक्षा जगत में हाय तौबा मची हैं, जिसके लिए अमर्त्य सेन में बिहार व बिहारियों को तथा साथ ही साथ देश के तमाम शिक्षाविदो को जमकर भला बुरा कहा केवल उनके अहंकार और केंद्र सरकार के हाथ पर हाथ धरे बैठे होने के कारण इस महत्वकांक्षी विश्वविद्यालय के स्थापना के राह में बाधा आ रही हैं. इस विवादस्पद चयन का मामला यूनियन एक्सटर्नल अफेयर मंत्री इ अहमद ने राज्यसभा में उजागर किया की प्रोफेसर ने किस प्रकार वीसी पद के लिए गोपा का चयन किया. युनियन एक्सटर्नल अफेयर जो की नालंदा युनिवर्सिटी के ग्रन्थ सम्बन्धी मामलो से भी जुड़े हैं, के द्वारा अभी तक इस मामले पर कोई स्पष्टिकरण नहीं दिया गया हैं।