Monday, June 10, 2013

नीतीश – बाजीगर या सौदागर

दयू ने फिलहाल भाजपा के संबंधो को क्‍लीन चीट तो दे दी है। लेकिन नीतीश के तेवर ये साफ बता रहे है कि ये दौर मुश्‍कीलों से भरा है, और डगर भी आसान नहीं है। जदयू के कार्यकारीणी के बैठक में एक तरफ तो नीतीश ने भाजपा से मोहब्‍बत की बात कर दी है, लेकिन उनके तेवर बता रहें है कि आने वाला समय कुछ नए समीकरण लाएगा।
हले हीं चुनावी दृष्‍टीकोण से हुए प्रशासनिक फेर बदल ने जदयू की मुश्‍कीलें और बढ़ा दी है। भाजपा के मंत्री को कौन कहे शुशील मोदी के लिस्‍ट तक को तरहीज नहीं दी गई है। एसडीओ और एसडीएम में भाजपा की और से जितने भी नाम दिए गए उनकी पोस्‍टींग नहीं हुई। चुनाव में डीएम और एसडीओ का पद काफी महत्‍वपूर्ण होता है क्योंकी यही दो अधिकारी होते है जा रिटर्निग अधिकारी होते है। ऐसे में भाजपा की सुची को पूरी तौर पर खारीज करना गठबंधन के जड़ो को हिलने का संकेत है। हलांकी भाजपा भी पूरी तरह से ये बात समझने लगी है और इसपर मंथन भी चल रहा है। लेकिन भाजपा के लिए तो स्थिती अब पछताए होत का वाली हो गई है। हलॉंकी जदयू के कार्यकारीणी बैठक में ये संभावना प्रबल थी कि गठबंधन टूट सकता है लेकिन ऐन मौके पर नीतीश की बाजीगरी ने इसे पूरी तरह ध्‍वस्‍त कर दिया।
वैसे पार्टी  के एक बड़े नेता की माने जदयू दबाव की राजनीति खेल रहा है। ना उनके लिए आसान है कि वो भाजपा का साथ छोड़ दे ना भाजपा के लिए। वो बस ये चाहती है कि भाजपा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार की कर दें। लेकिन फिलहाल भाजपा इनसे बचना चाहती है। क्‍योंकी नरेन्‍द्र मोदी के नाम की धोषणा से भाजपा को मध्‍यप्रदेश, उत्‍तर प्रदेश और बिहार जहॉं मुस्‍लीम वोट लोकसभा का निर्णायक सीट है पूरी तौर पर खोना पड़ेगा और इसकी भारपाई सिर्फ उग्र हिन्‍दू वोट से ही की जा सकती है जा फिलहाल नरेन्‍द्र मोदी के बस का नहीं है।
धर बिहार में जहां भाजपा ने सभी सिटों पर अपनें उम्‍मीदवार उतारने की घोषणा की है वहीं जदयू अलग चुनाव लड़ने का फैसला कर एक तीर कई निशाना लगा रही है। एक तो कांग्रेस का राजद और लोजपा से गठबंधन ना हो, दुसरा बिहार में लालू के माय समीकरण को तोड़कर सबसे बड़ी पार्टी बनने की सोच रही है।
दयू के अनुसार सवर्ण के लिए उन्‍होने ऐसा कुछ भी नहीं किया है कि वो उन्‍हे या उनकी पार्टी को पूरी तरह नकार दें। भुमीहार को सत्‍ता और प्रशासन में जिम्‍मेदारी देकर हमने उन्‍हे अपनी और कर हीं लिया है। रही बात ब्राहमणों की तो उसे भी भाजपा से तोड़ने की तैयारी चल रही है। मिथिलांचल से संजय झा को अजमाया जा रहा है। संजय झा के स्‍थानीय होने के साथ हीं नेता विहीन समाज में संभावना दिख रही है। अगर नीतीश का ये तूरूप का ये पत्‍ता चल गया तो शायद कुछ बात बन सके। वैसे मिथिलांचल के नेता कृती आजाद के वचनों से भी जदयू आहत में है, उन्‍होने दरभंगा में कहा था कि अगर मोदी नाम पर गठबंधन टूट भी जाए तो आगे देखेंगे। फिलहाल जदयू के पास राजपूतो के लिए कुछ भी नही है। और शायद यह भी बड़ी वजह कि महाराजगंज लोकसभा के उपचुनाव के लिए अभी ता कोई उम्‍मीदवार सामने नही आया है। वैसे पी. के. शाही का नाम तो उछाला जा रहा है लेकिन जदयू का एक बड़ा वर्ग मानता है कि इससे राजपूत और भूमीहार में फिर 36 के आंकड़े हो जाए। वैसे नीतीश अब आक्रामक राजनीति की तैयारी मे लगा गए है और उनकी टीम इस बात से आस्‍वस्‍त है कि गठबंधन टूटने के बाद भी उनके सेहत पर कोइ फर्क नहीं पड़ेगा। उनका मानना है सवर्ण अभी भी लालू के खोप से बाहर नहीं निकला है इसलिये वो उन्‍हे वोट देंगे ही। साथ ही साथ दलित भी उनके साथ है वही भाजपा के अलग होने से मूसलमान का भी एक बड़ा वोट बैंक उनके हाथ लगेगा।
वैसे राजनीति चिंतको की माने तो नीतीश ये सब गठबंधन तोड़ने के लिए नहीं कर रहा है, उनका एक हीं मकसद है मोदी को रोकना और शायद हद तक वो उसमें कामयाब भी हो गये है। जदयू के महासचिव ने कार्यकारीणी की बैठक में साफ कह दिया है कि पार्टी धर्म-निरपेक्षता की नीति‍ से कभी भी समझौता नहीं करेगी।
राम जन्‍मभूमी के मुद्दे के बाद जब हालात बदले तो 1996 में अटल जी, आडवानी जी, जार्ज फर्नांडीस और नीतीश कि बैठक में भाजपा ने तीनो विवादस्‍पद मुद्दे राम जन्‍मभूमी, समान नागरीक संहिता और अनुच्‍छेद 377 को छोड़ा तो हम साथ आए। वैसे भाजपा नेताऔ की माने तो नीतीश अगर अलग हो गए तो उनकी स्‍थिती माया मिलें ना राम जैसी हो जाएगी। एक तो महाराजगंज लोकसभा का उपचुनाव जदयू को बिना भाजपा के संभव नहीं होगा। दुसरा युथ में नरेन्‍द्र मोदी का क्रेज है और फिर वो अति पिछड़ा है। एक अति पिछड़ा को प्रधानमंत्री बनने से रोकने की बात भाजपा गॉंव-गॉव में फैला देगी जो नीतीश के लिए कम खतरनाक नहीं होगा।

नीतीश के ये तेवर जदयू और भाजपा दोनो के लिए गले की हड्डी बन चुकी है। एक तरफ मोदी भाजपा की जरुरत है ता जदयू मजबूरी। हलांकी इसकी उम्‍मीद कम है कि भाजपा आडवानी को प्रधानमंत्री मान लेगी क्‍योंकी आक्रामक राज‍नीति के मुड मे फिलहाल भाजपा नहीं है और आडवानी के मानने पर यह समस्‍या भी खत्‍म हो जाएगी।