Friday, March 1, 2013

प्रिय तुम बहुत याद आती हो

प्रिय,

हम अलग हैं एक दुसरे से बहुत दिनों से। विछोह का दर्द दोनो तरफ उठ रहा हैं। जितना तुम तड़प रही हो उससे कहीं ज्यादा तड़प इस दिल में भी उठता हैं। रोता मैं भी हूँ, लेकिन आंसू खुद ही पोछना पड़ता हैं। सवाल ये नहीं हैं की यहाँ पर आंसू पोछने वाला कोई नहीं हैं, सवाल ये हैं की मैं उन्हें समझा नहीं सकता की प्रियतम से बिछड़ने का गम क्या होता हैं।

इस भीड़ भाड़ में ना तो समय मिलता हैं ना ही फुर्सत। मोबाइल कुछ कसर जरुर पूरी करता हैं लेकिन कमबख्त अरमान हैं जो पुरे ही नहीं होते। जी ही नहीं भरता और दिल भी। दिल ... कैसे भरेगा ये ... ये तो तुम्हारे पास हैं वहां ............बहुत दूर ..... तुम्हारे दिल के नज़दीक। प्रिय तुम्हारे ही धड़कन से धड़कता हूँ मैं। तुम हो तो मैं हूँ और बिना तुम्हारे मेरा भी नहीं हैं कोई वजूद।

प्रिय मुझे पता हैं तुम्हारी बेकरारी भी उतनी ही होगी जितना व्याकुल हूँ मैं। ठीक किसी विरहे की तरह तुम भी तड़प कर रही होगी मेरा इन्तेजार। चातक की तरह राह ताकती होगी तुम मेरा। मोबाइल के हरेक रिंग पर चमक जाती होगी तुम्हारी आँखे। दरवाजे की आहट पर उठ जाती होगी तुम्हारी नज़र। ध्यान होता होगा तुम्हारा उन चप्पलो की खडखडाहट पर जो हौले होले दस्तक देती हैं दरवाजे पर किसी अपने का। और फिर निराश हो जाती होगी ठीक किसी मोरनी की तरह जों धुएँ से भरे आसमान को सावन की घटा समझकर झुमने लगती हैं और फिर निराश हो जाती हैं धुवां छटने के बाद।

प्रिय मैं आऊंगा जल्द ही अपना वादा पूरा करने। आऊंगा जल्द ही क्योंकि मुझे पता हैं जी नहीं पाओगी तुम हमारे बिना और रह नहीं पाऊंगा मैं तुम्हारे बिना।

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