Friday, March 1, 2013

नारी अब स्वयंसिद्धा बनकर उभर रही हैं

प्रियतम,

तुम्हे पता हैं समाज किस कदर तेजी से बदल रहा हैं? इतना जितना नाभिकीय विस्फोट के समय परमाणु भी नहीं टकराते होंगे आपस में। अब महिलायें भी आगे आ रही हैं, पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर। अब वो भी ढूंढ़ रही हैं बराबरी का हक़ पुरुषो के वनिस्पत। अब वो भी आगे बढ़ रही हैं वक्त की रफ़्तार के संग नए स्वरुप में नए परिवेश में।

अब महिलाए चुप होकर नहीं सहती अपने पती और स्वसुर का रौब। अब वो खुद लेती हैं फैसला बनवास में  जाने का। चाहे दशरथ पुत्र वियोग में अपना प्राण क्यों ना त्याग दे। चाहे राम शोकाकुल हो वन में सन्यासी क्यों न बन जाए। अब वो नहीं सहती विमाता का क्रोध संताप। अब अग्नि परीक्षा भी नहीं देती महिलाए। मना कर देती हैं आप ही, रावण जैसे महापंडित पर नहीं लगने देती व्यभिचार का आरोप। अब राम के ना होने पर खुद ही संभाल लेगी राज पाट नहीं करती इन्तजार किसी भरत जैसे अनुज का चरण पादुका पर रोकर समय बिताने का  ।

अब किसी अहिल्या को पत्थर का नहीं बनना पड़ता अब वो स्वयं को सिद्ध करने के लिए भगवान् को भी उतार सकती हैं धरती पर। अब नहीं सहती वो किसी की टेढ़ी नज़र चाहे देवराज ही क्यों ना तान रखे हो भृकुटी उस पर।

प्रिय अब द्रोपदी भी किसी कृष्ण के चीर की मोहताज़ नहीं हैं। वो खुद कर सकती हैं अपने लाज की रक्षा। संभाल सकती हैं अपना आँचल वक्त के समय और लड़ सकती हैं किसी शेरनी की तरह दुश्मनों से। अब भगवान् भी दुहाई देते हैं महिलाओं की।

दामिनी अब बन गयी हैं मिशाल। बन गयी हैं निर्भया और दे गयी हैं शक्ति उन लाखो भुजाओं को जो अब खुलकर कर  सकती हैं हैवानो से अपनी रक्षा। प्रिय अब महिलायें लाज का गहना या प्रतिरूप से ऊपर उठ चुकी हैं। अब भारत माँ भी गर्व से अपनी बेटी की पीठ थपथपा सकती हैं, क्योंकि नारी अब सचमुच बदल रही और स्वयंसिद्धा बनकर उभर रही हैं।


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