Tuesday, May 13, 2014

गंधवरिया राजवंश का इतिहास


स्व. श्री राधाकृष्ण चौधरी के अनुसार – स्वर्गीय पुलकित लाल दास ‘मधुर’ जी ने अथक परिश्रम करके गन्धवरिया के इतिहास को लिखकर श्री भोला लाल दास जी के यहॉं प्रकाशन के लिए भेजे थे । किसी कारणवश यह पाण्डुलिपी (जो कि उस समय जीर्णावस्थामें में था ) प्रकाशि‍त नहीं हो सका । फिर बहुत दिनों के बाद ये पाण्डुलिपी श्री चौधरी को प्राप्त हुआ । उनके अनुसार ये इतिहास किंवदंती के आधार पर लिखा गया था । क्योंकि गंधवरिया के विषय में कहीं भी कुछ भी प्रामाणि‍क इतिहास सामग्री नही है । सोनवर्षा राज के केसमें गन्धवरिया का इतिहास दिया गया है लेकिन उसमें से जो गन्धवरिया के लोग सोनवर्षा राज के विरोध में गवाही दिये थे उनमें से एक प्रमुख व्यक्ति‍ स्वर्गीय श्री चंचल प्रसाद सिंह मरने से पहले श्री राधाकृष्ण चौधरी से मिले थे । उन्होंने व्यक्त‍िगत रूप से ये कहा था कि उनका बयान जो उस केज में हुआ था से एकदम उल्टा है । इसलिए गन्धवरिया के इतिहास के लिए उसका उपयोग करते समय उसको रिभर्स करके पढ़ा जाय । उसी केस में एक महत्वपूर्ण बात ये मिला जो गन्धवरिया के द्वारा दिया गया दानपत्र था । जिसमें से कुछ चुने हुए दानपत्र के अंग्रेजी अनुवाद का अंश ‘हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल इन तिरहूत ‘ में प्रकाशि‍त किया गया है । सहरसा जिला में गंधवरिया वंश का इतना प्रभूत्व था तब भी उसका कोई उल्लेख ना ही पुराने वाले भागलपुर गजेटियर में है ना ही जब सहरसा जिला बना और उसका नया गजेटियर बना तब भी उसमें गन्धवरिया की चर्चा एक पाराग्राफ में हुई । इस संबंध में ना ही कोई प्रमाणि‍क इतिहास है और ना ही इसके लिए कोई पहल और प्रयास की जा रही है ।

गंन्धवरिया लोगों का गन्धवारडीह अभी भी शकरी और दरभंगा स्टेशन के बीच में है और वहां वो लोग अभी भी जीवछ की पूजा करते हैं । गंधवरिया डीह पंचमहला में फैला हुआ है । ये पंचमहला है – बरूआरी, सुखपुर, परशरमा, बरैल आ जदिया मानगंज । इन सबको मिलाकर पंचमहला कहा जाता है । 

दरभंगा विशेषत: उत्तर भागलपुर (सम्प्रति सहरसा जिला ) मे गन्धवरिया वंशज राजपूत की संख्या अत्याधि‍क है । दरभंगा जिलांतर्गत भीठ भगवानपुर के राजा साहेब तथा सहरसा जिलांतगर्त दुर्गापुर भद्दी के राजा साहेब और बरूआरी, पछगछिया, सुखपुर, बरैल, परसरमा, रजनी, मोहनपुर, सोहा, साहपुर, देहद, नोनैती, सहसौल, मंगुआर, धवौली, पामा, पस्तपार, कपसिया, विष्णुपुर एवं बारा इत्यादि‍ गॉव बहुसंख्यक छोटे बड़े जमीन्दार इसी वंश के वंशज थे । सोनवर्षा के स्वर्गीय महाराज हरिवल्लभ नारायण सिंह भी इसी वंश के राजा थे । ये राजवंश बहुत पुराना था । इस राजवंश का सम्बन्ध मालवा के सुप्रसिद्ध धारानगरी के परमारवंशीय राजा भोज देव के वंशज है । इस वंश का नाम ‘’गंधवरिया’’ यहाँ आ के पड़ा है । राजा भोज देव की 35वीं पीढ़ी के बाद 36वीं पीढ़ी राजा प्रतिराज साह की हुई । एक बार राजा प्रतिराज सिंह अपनी धर्मपत्नी तथा दो पुत्र के साथ ब्रह्मपुत्र स्नान के लिए आसाम गए थे । इस यात्रा से लौटने के क्रम में पुर्ण‍ियॉं जिलांतगर्त सुप्रसिद्ध सौरिया ड्योढ़ी के नजदीक किसी मार्ग में किसी संक्रामक रोग से राजा-रानी दोनों को देहांत हो गया । 

सौरिया राज के प्रतिनिधि‍ अभी भी दुर्गागंज में है । माता-पिता के देहांत होने पर दोनों अनाथ बालक भटकते-भटकते सौरिया राजा के यहॉं उपस्थ‍ित हुए, और अपना पूर्ण परिचय दिए । सौरिया राज उस समय बहुत बड़ा और प्रतिष्ठि‍त राज था । उन्होंने दोनो भाईयों का यथोचित आदर सत्कार किया । और अपने यहॉं दोनों को आश्रय प्रदान किये । बाद में सौरिया के राजा ने ही दौनों का उपनयन (जनेउ) संस्कार भी करवाएं । उपनयन के समय उन दोनों भाईयों का गोत्र पता नहीं होने के कारण उन दोनों भाईयों को परासर गोत्र दियें जबकि परमार वंश का गोत्र कौण्ड‍िल्य था । दोनो राजकुमार का नाम लखेशराय और परवेशराय था । दोनों वीर और योद्धा थे । सौरिया राज की जमीन्दारी दरभंगा में भी आता था । किसी कारण से एकबार वहां युद्ध शुरू हो गया । राजा साहेब इन दौनो भाईयों को सेनानायक बनाकर अपने सेना के साथ वहां भैजे । कहा जाता है कि दोनो भाई एक रात किसी जगह पर विश्राम करने के लिए रूकें कि नि:शब्द रात में शि‍विर के आगें कुछ दूर पर एक वृद्धा स्त्री के रोने की आवाज उन दोनों को सुनाई पड़ा । दोनो उठकर उस स्त्री के पास गए । रोने का कारण पुछा । उस स्त्री ने बताया कि ‘’ हम आपदोनों के घर के गोसाई भगवती हैं । मुझे आपलोग कही स्थान (स्थापित कर) दे‘’ । इस पर उन दोनो भाईयों ने कहा हम सब तो स्वयं पराश्रि‍त हैं । इसलिए हमलोगों को वरदान दीजिए कि इस युद्ध में विजयी हो । कहा जाता है उस स्त्री ने तत्पश्चात उन दोनों भाईयों को एक उत्तम खड़ग प्रदान किएं । जिसके दोनों भागपर सुक्ष्म अक्षर में संपुर्ण दुर्गा सप्तशती अंकित था । ये खड़ग पहले दुर्गापुर भद्दी में था । उसके पश्चात सोनवर्षा के महाराजा हरिवल्लभ नारायण सिंह उसे सोनवर्षा ले आएं थे । उस खड़ग में कभी जंग नहीं लगता था । वो खड़ग एक पनबट्टा (पानदान – पान रखने का बॉक्स) में मोड़ कर रखा जाता था । और खोल कर झाड़ देने से एक संपुर्ण खड़ग के आकार में आ जाता था । उस खड़ग और देवी की महिमा से दोनो भाई युद्ध में विजयी हुएं । पुरा रणक्षंत्र मुर्दा से पट गया और लाश की दुर्गन्ध दुर-दुर तक व्याप्त हो गई । इससे सौरिया के राजा बहुत प्रसन्न हुए और इस वंश का ना ‘’गन्धवरिया’’ रखें । ये युद्ध दरभंगा जिलांतर्गत गंधवारि नामक स्थान में हुआ था । गंधवारी और कई और क्षेत्र इन लोगों को उपहार में मिला । लखेशराय के शाखा में दरभंगा जिलांतर्गत (अभी का मधुबनी) भीठ भगवानपुर के राजा निर्भय नारायणजी आएं । और परवेशराय के शाखा में सहरसा के गन्धवरिया जमीन्दार लोग हुए । सहरसा का अधि‍कतर भूभाग इसी शाखा के अधीन था । दुर्गापुर भद्दी इसका प्रमुख केन्द्र था । 

परिसेशराय को चार पुत्र हुए । लक्ष्मण सिंह, भरत सिंह, गणेश सिंह, वल्लभ सिंह । गणेश सिंह और वल्लभ सिंह निसंतान भेलाह । भरत सिंह के शाखा में धवौली की जमीन्दार आई । लक्ष्मण सिंह को तीन पुत्र हुए – रामकृष्ण सिंह, निशंक सिंह और माधव सिंह । इसमें माधव सिंह मुसलमान हो गए और नौहट्टाक शासक हुए । ‘निशंक’ के नाम पर निशंकपुर कुढ़ा परगन्ना का नामकरण हुआ । पहले इस परगना का नाम सिर्फ ‘’कुढ़ा’’ था बाद में उसमें‍ निशंकपुर जोड़ा गया । निशंक को चार पुत्र हुए – दान शाह, दरियाव शाह, गोपाल शाह और छत्रपति शाह । दरियाव शाह के शाखा में बरूआरी, सुखपुर, बरैल तथा परसरमा के गन्धवरिया लोक हुए । 

लक्ष्मण सिंह के बड़े बेटे रामकृष्ण को चार पुत्र हुए – वसंत सिंह, वसुमन सिंह, धर्मागत सिंह, रंजित सिंह । वसुमन सिंह के शाखा में पछगछिया का राज मिला । धर्मागत सिंह के शाखा में जदिया मानगंज की जमीन्दारी मिली । और रंजित सिंह के शाखा में सोनवर्षा राज मिला । इसी वंश का राजा हरिवल्लभ नारायण सिंह हुए । 1908 में सोनवर्षा राज से 10-12 मील उत्तर में कांप नामक सर्किल में साढ़े नौ बजे रात में शौच के समय मार‍ दिया गया । इनकी एक कन्या का विवाह जयपुर स्टेट के संम्बन्धी के संग हुआ । और इनको एक पुत्र भी नहीं थे । उस कन्या के पुत्र रूद्रप्रताप सिंह सोनवर्षा राज के राजा हुए । इस शाखा में सोहा, साहपुर, सहमौरा, देहद, बेहट, विराटपुर, तथा मंगुआर के गंधवरिया की जमीन्दारी आई । इसमें साहपुर की राजदरबार भी प्रसिद्ध था । उनके दरबार में बिहपुर मिलकी श्यामसुंद कवि और शाह आलमनागर के गोपीनाथ कवि उपस्थ‍ित थे । स्वर्गीय चंचल प्रसाद सिंह भी सोनवर्षा के दामाद थे । 

वसंत सिंह को जहाँगीर से राजा की उपाधि‍ मिली थी । राजा वसंत सिंह गंधवरिया से अपने राजधानी हटाकर सहरसा जिला में वसंतपुर नामक गाव में बसाएं और वहीं अपनी राजधानी बनाएं । वसंतपुर मधेपुरा से 18 से 20 मील पुरब है । वसंत सिंह को चार पुत्र हुए – रामशाह, वैरिशाह, कल्याण शाह, गंगाराम शाह । पहले बेटे का शाखा नहीं चला वो निसंतान हुए । वैरिशाह राजा हुए । कल्याण शाह के शाखा में रजनी की जमीन्दारी आई । और गंगाराम शाह के शाखा में बारा की जमीन्दारी आई । इन्होंने अपने नाम पर गंगापुर की तालुका बसाई । वैरीशाह को दो रानी हुए । जिसमें पहले वाली पत्नी से केसरी सिंह और जोरावर सिंह हुए और दुसरे पत्नी से पद्मसिंह हुए । जोरावर सिंह के शाखा में मोहनपुर और पस्तपार की जमीन्दारी आई । पद्मसिंह की शाखा में कोड़लाही की जमीन्दारी आई । राजा केसरी सिंह बड़े प्रतिभाशाली व्यक्त‍ि थे । उनको औरंगजेब से उपाधि‍ मिली थी । केसरी सिंह को धीरा सिंह, धीरा सिंह को कीर्ति सिंह और कीर्ति सिंह को जगदत्त सिंह नामक पुत्र हुए जो बड़े वीर, दयालू और प्रतापी थे । गंगापुर, दुर्गापुर और बेलारी तालुका इनके अधि‍कार में था । ए‍क जनश्रुति‍ इस इलाके में विख्यात है कि उस समय दरभंगा राज की कोई महारानी कौशि‍की स्नान के लिए आई थी । उन्हें जब ये पता चला कि ये दुसरे लोगों का राज्य है तो बोली – हम किसी दुसरे के राज्य में अन्न जल ग्रहण नहीं कर सकते हैं । उसके बाद जगदत्त सिंह तुरंत उनको बेलारी तालुका का दानपत्र लिख उनसे स्नान भोजन का आग्रह कियें । वो बेलारी तालुका अभी तक बड़हगोरियाक खड़ोडय बबुआन लोगों के अधि‍कार में था । उसके बाद राज दरभंगा का हुआ । जगदत्त सिंह को चार पुत्र हुए । हरिहर सिंह, नल सिंह, त्र‍िभुवन सिंह और रत्न सिंह । त्र‍िभुवन सिंह ‘’पामा’’ में अपनी ड्योढ़ी बनाई । 

वैसे पंचगछि‍या के राजवंश अपने आपको नान्यदेव का वंशज बताते थे । हरिसिंह देव के पुत्र पतिराज सिंह की उत्पति मानते हैं । पतिराज सिंह ‘गन्धवारपुर’ में अपना निवास स्थान बताए थे । और इसलिए गन्धवरिया कहलाएं । लेकिन ये भी लोग अपने आपको पतिराज सिंह के पुत्र और परवेश राय के वंशज कहते हैं । रामकृष्ण सिंह के वंशज पछगछिया स्टेट हुए । सोनवर्षा राज, पछगछिया तथा बरूआरी प्रसिद्ध स्टेट माना जाता है । पंचमहला में बरूआरी स्टेट प्रमुख था । इस वंश में राजा कोकिल सिंह प्रख्यात हुए । इनको शाह आलम से 1184 हिजरी में शाही फरमान मिला था । राजा की उपाधी इनको सम्राठ से मिला था । बरूआरी तिरहुत सरकार के अधीन था । और कोकिल सिंह को इस क्षेत्र के ननकार का हैसियत मिला था । गन्धविरया की कूलदेवी ‘’जीवछ’’ की प्रतिमा बरूआरी राजदरबार में थी और नियमित रूप से वहां के लोग इनकी पूजा करते थे । जीवछ की प्रतिमा नोहट्टा से यहाँ लाई गई थी । 

इतना सबकुछ होते हुए भी गन्धवरिया के वंश का कोई प्रमाणि‍क इतिहास नही बन पाया है । जो कुछ दानपत्र अंग्रेजी दानपत्र के अनुवाद से मिला है उसमें से भी ज्यादा भीठ-भगवानपुर राजा साहेब का । भीठ-भगवानपुर गन्धवरिया के सबसे बड़े हिस्से की राजधानी थी और उनलोगों का स्ति‍त्व निश्च‍ित रूप से दृढ़ था और वो दानपत्र देते थे जिनका की प्रमाण है । दरभंगा के गन्धवरिया लोगों ने भी अपनी इतिहास की रूपरेखा प्रकाशि‍त नहीं की है । इसलिए इस सम्बन्ध में कुछ कहना असंभव है । बकौल राधाकृष्ण चौधरी ओइनवार वंश के पतन के बाद ‘भौर’ क्षेत्र में राजपुत लोगों ने अपना प्रभुत्व जमा लिए थे । और स्वतंत्र राज्य स्थापित किये थे । खण्डवला कुल से उनका संघर्ष भी हुआ था । और इसी संघर्ष के क्रम में वो लोग भीठ-भगवानपुर होते हुए सहरसा- पुर्ण‍ियाँ की सीमा तक फैल गए । गन्ध आ भर (राजपुत) के शब्द मिलन से गन्धवारि बनल और उसी गाँव को इन लोगों ने अपनी राजधानी बनाई । कालांतर में भीठ भगवानपुर इन लोगों को प्रधान केन्द्र बना । इतिहास की परंपरा का पालन करते हुए इन लोगों ने भी अपना सम्बन्ध प्राचीन परमार वंश के जोड़ा और ‘’नीलदेव’’ नामक एक व्यक्त‍ि की खोज की । उसी क्रम में कोई अपने आप को विक्रमादित्य के वंशज तो कोई अपने आप को नान्यदेव के वंशज बतलाते हैं । राधाकृष्ण चौधरी के अनुसार – उनके पास भीठ भगवानपुर की वंश तालिका नहीं है । लेकिन सहरसा के गंधवरिया लोगों की वंश तालिका देखने से ये स्पष्ट होता है कि परमार भोज और नान्यदेव से अपने को जोड़ने वाले गन्धवरिया लखेश और परवेश राय को अपना पूर्वज मानते हैं । एक परंपरा ये भी कहती है कि नीलदेव गंधवरिया में आकर बसे थे और ‘जीवछ’ नदी को अपना कुलदेवता बनाए थे । कहा जाता है कि नीलदेव राजा गंध को मारकर अपना राज्य बनाए थे । सहरसा जिला में भगवती के आशीष स्वरूप राज मिलने की जो बात है इसमें भी कई प्रकार की किंवदंती है । सिर्फ एक बात पर सभी एकमत है कि उपनयन के समय इन लोगों को अपना गोत्र याद नहीं रहने पर इन्हे परासर गोत्र दे दिया गया था । अब जब तक कोई वैज्ञानिक साधन उपलब्ध नहीं होता तबतक गंधवरिया को इतिहास ऐसे ही किंवदंती बनी रहेगी । 


संदर्भ – मिथि‍लाक इतिहास ( स्व. श्री राधाकृष्ण चौधरी )

24 comments:

  1. आप ने जो इतिहास बताया है रजा नीलदेव को कोजा गया है ये गलत है जहा तक लकेस और पकेइस् दो भाई का हे तो भटक के आए हुऐ नहीं थे वो रजा नीलदेव के 6 पीढ़ी के संतान थे जिसका प्रमाण मेरे पास है

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  2. आप ने जो इतिहास बताया है रजा नीलदेव को कोजा गया है ये गलत है जहा तक लकेस और पकेइस् दो भाई का हे तो भटक के आए हुऐ नहीं थे वो रजा नीलदेव के 6 पीढ़ी के संतान थे जिसका प्रमाण मेरे पास है

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    1. निवेदन है प्रमाण आप मेरे मेल आईडी sonbarsaraj@gmail.com पर भेजने की कृपा करेंगे ।

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  3. दुर्भाग्यवश इसमें जम्हरा गांव का कहीं जिक्र नहीं है जो राजपूत का बहुत बड़ा बस्ती है। जम्हरा में लगभग एक सौ पचास घर गंधवरिया ।।।
    राजपूत हैं। जम्हरा गांव के संस्थापक बाबू बौद्धी सिंह बहुत बड़े दानी व्यक्ति हुए और आज भी इनके नाम पर ही जम्हरा बाबू बोधी सिंह का जम्हरा कहलाता है जम्हरा गांव पंचगछिया के गंधवरिया खानदान से ताल्लुक रखता है और आज भी पंचगछिया में बाबू बौद्धि सिंह के पूर्वज का डीह आज भी वहां सुरक्षित है।

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    1. आपने सही कहा मैं भी यही dundh रहा था।पर बाबू बौधी सिंह का जिक्र कही नही मिला । मेरे हिसाब से ये हिस्ट्री को अच्छे से फिर से लिखा जाए । और सभी गांव वंश का जिक्र अच्छे से हो ताकि आने वाली पीढ़ी इसे अच्छी तरह जाने ।

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    2. क्या जम्हारा के गंधवरिया राजपूत मधुश्रावणी करते हैं ?

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  4. दुर्भाग्यवश इसमें जम्हरा गांव का कहीं जिक्र नहीं है जो राजपूत का बहुत बड़ा बस्ती है। जम्हरा में लगभग एक सौ पचास घर गंधवरिया ।।।
    राजपूत हैं। जम्हरा गांव के संस्थापक बाबू बौद्धी सिंह बहुत बड़े दानी व्यक्ति हुए और आज भी इनके नाम पर ही जम्हरा बाबू बोधी सिंह का जम्हरा कहलाता है जम्हरा गांव पंचगछिया के गंधवरिया खानदान से ताल्लुक रखता है और आज भी पंचगछिया में बाबू बौद्धि सिंह के पूर्वज का डीह आज भी वहां सुरक्षित है।

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    1. Rajputon ka sbse bda gaon Dhabauli hai sbhi rajput hi hai wha

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  5. मुजफ्फरपुर के गायघाट प्रखंड के अंतर्गत गंधवरिया खानदान के आठ गाँव बेरूआ ,पूरा ,ककरिया ,कोठिया ,मैठी और अन्य गाँव है।

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  6. यदि आपके पास जानकारी है तो पतरघट प्रखंड के जम्हरा गांव का इतिहास बतावे।

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    1. जानकारी पूरी दे ।

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  7. पचगछिया गांव में गंधवरिया राजपुत के पीढ़ी छै,,डीह सैहो छै,,हमर बहिन के सासुर छै इ लेल हम कह सकै छी ,उपनयन,मधुश्रारवणि, चतुर्थी सैहो होय छै इ राजपुत में,,,,

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  8. गंधवारि गाम अभी भी है पंडौल के पास,डीह के नाम से जो हमलोगों का खेत हैं वहां कभी बसाबट रहा होगा उचा भी और खपरैल भी और मिट्टी कभी भी हलका नहीं होता है। कभी कभी पहले आते थे लोग मिट्टी लेने सही या गलत ये शोध का बिषय है।

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  9. Is vans ke hi ham soha gandhbariya parivar hai

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    1. रिसर्च अधूरा है सकरी से 7 कलोमीटर पर गंधवारि गव बसा हूआ है।

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  10. जम्हरा गाँव के अमृत महोत्सव में नाम जोड़ दिया जाए कि जम्हरा निशंक पुर कुढ़ा पुराने नक्शे में है रेवेन्यू नाम जमीरा था जिला भागलपुर

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  11. जम्हरा का जिक्र किया जाए।

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  12. मैं राजीव रंजन सिंह, पिता श्री सुबोध नारायण सिंह, पस्तपार से सभी बड़ों को प्रणाम व छोटे को आशिर्वाद.....!!

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  13. मैं पंकज कुमार सिंह पिताजी स्वर्गीय श्री, उदित नारायण सिंह निवासी, ग्राम, पामा, जिला, सहरसा, वर्तमान निवासी फ़रीदाबाद हरियाणा से आप सभी परम आदरणीय को मेरा सादर प्रणाम, कुछ त्रुटि है गंधवारिया के बारे में जो लिखा गया है सबसे पहले हमलोगों का पूर्वज राजस्थान सवाई माधोपुर से आये थे जो हमारे दादाजी बताते थे, और ओट परगना पूरा स्टेट गंधवारिया का था कहते थे गंधवारिया का ओट परगना का क्षेत्रफल, कोसी से घोसी गंग से संघ, अर्थात कोसी नदी की शुरुआत नेपाल के सीमा से निकल कर भागलपुर मुंगेर के बिच गंगा में जहाँ मिलता है वहाँ तक ओट परगना था,जो आज का वर्तमान जिला दरभंगा,
    मधुबनी, कुछ एरिया मुजफ्फरपुर, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, भागलपुर, है हमारे पूर्वज लकेश और पकेश दोनों भाई बहुत वीर योद्धा थे जिन्होंने ओट परगना पर विजय प्राप्त किये थे माँ जीवच्छ के बारे में सत्य हीं लिखा है ये दोनों भाई अनाथ थे ये गलत है औऱ शोध की बिषय है
    धन्यवाद









    जो कोसी से घोसी गंग से संग मतलब जहाँ से कोसी नदी निकलता है,
    नेपाल के औऱ जहाँ गंगा में मिलता है, वहाँ तक ओट औऱ गंधवारिया का राज था जो जो ओट परगना लश




    मनगंधात
    परम आदरणीय को सादर प्रणाम
    कुछ गंधवारिया के बारे में लिखा जो लिखा गया है कुछ सही है कुछ
    मनगान्धीत








    भी परम आदरणीय को मेरा सादर प्रणाम

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    1. Mai bhetbhagwanpur gandwaria rajput hu

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  14. Manoj Singh mangwar gandhwaiya
    Rajput ye baat ko hi Satya Mane
    Jay maa jiwachh

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  15. Chandan singh supaul raghopur Radhanagar se hu.hum log vishanupur se aakar base hai..jay gandhwariya..jay rajputana..

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  16. इसमें महाराजा हरिदत सिंह जी का नाम कही भी नही है , जो की परसरमा के महाराजा हुआ करते थे,

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  17. Bhai Ye Kya Hai Be Sale Nakli Hai Sab Bihari Log Dihari Lagate Hai 1 BIHARI 100 BIMARI

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