Monday, December 10, 2012

पहले मिलन पर प्रियतम के नाम


प्रिय प्रियतम,

नहीं भूल पाऊंगामैं , हमारा वो पहला मिलन। जब हम मिले थे पहली बार वातानुकूलित कमरे के उस लाल मकान में। की जब चमक गई थी तुम्हारी आँखे मुझे देखकर उसी तरह, की जैसे मिल गया हो, मोरनी को मोर, और चाँद को चकोर। की जैसे बन के आया होऊं मैं वो उसके बूंद जिसके लिए तरसती हैं सीपियाँ भी चातक से ज्यादा। जगमग करते उस कमरे की हज़ार वाट की लाईट भी पर गई थी मद्धम जब चमकी थी तुम्हारी आँखे, और तुम्हारी वो हँसी मुझे अब तक याद हैं, की खिड़की से झांकता चाँद भी छुप गया था शरमाकर बादलो के बीच।

और प्रिय मुझे दिख गया था तुम्हारा वो नम चेहरा भी, जब दिल की बात पहली दफे आई थी तुम्हारे जुबान पर। सर्द होंठो के अल्फाज अब भी गूंज रहे हैं मेरे कानो में जब तुमने हौले से पूछा था 'क्यों करते हो मुझसे इतना प्यार' . और मैं चुप सा देखता रह गया था तुम्हारी उन आँखों को। प्रिय तुम्हारी वो आँखे; सुनी होते हुए भी इन बंद होठो से जवाब मांग रही थी। तब मैंने सुनी थी तुम्हारी दिल की धड़कन भी जैसे चल रहा हो कोई मालगाड़ी किसी पथरीली जमीं पर। मुझे पता हैं तुम्हे ये दो पल की ख़ामोशी दो साल लगा होगा। प्रिय मैंने देखा था तुम्हारा वो गुलाब सा खिला चेहरा जैसे सूरजमुखी को मिल गया हो चार किरणे सूरज की, और वो मुश्किल से झलकने वाली मोतियों जैसे दांत जब निकलती थी तो शर्मा जाती थी वो ट्यूबलाईट भी इन सफ़ेद मोतियों के आगे। और जब धक् से रुक गई थी तुम्हारी को मालगाड़ी की धक्-धक् जब मैंने थमा था तुम्हारा हाथ अपने हाथों में याद हैं ना तुम्हे, कैसा अजीब सा शुकून अजीब सा प्यार छलक रहा था तुम्हारे चेहरे पर, चुप रहते हुए भी जैसे बहुत कुछ कह गए हो हम दोनों एक दुसरे से।

और प्रियतम कैसे भूल पाओंगे तुम भी वो मिलन की बेला, जब एक दुसरे से लिपटे हुए हम हो गए थे एकाकार, और वो पहला चुम्बन की होठो को छूते ही शर्म की लाली करने लगी थी तुम्हारे चेहरे पर अठखेलियाँ, और लाख थामने के बाद  भी धडकने लगा था तुम्हारा दिल जम्बो जेट की स्पीड से। लेकिन फिर भी तुम थी शांत, स्थिर मेरे बाहों में खुद को देती सांत्वना, की मैं हम महफूज़ अपने प्रियतम के पास।

और प्रिय मुझे याद हैं वो बिछुड़ने की बेला भी जब अधूरे मन से विदा किया था मैंने आपको आपके घर एक पुनर्मिलन की आकांक्षा के साथ की हम फिर मिलेंगे इसी जगह, इसी तरह, एक नए सिरे से प्यार के कुछ नए पल लिए। और प्रिय हम बिछड़ गए फिर मिलने के लिए। क्योंकि बिछड़ कर मिलने का अपना अलग ही मज़ा होता हैं। प्रिय तुम फिर मिलना क्योंकि भूल नहीं पाऊंगा मैं उस याद को तब तक, जब तक की हम मिल न ले दुबारा फिर से

तुम्हारा
प्रिय





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