Saturday, March 31, 2012

जहाँ होती है खुशियों की बर्षा वही तो हैं मेरा सोनबरसा...


बहुत दिनों से दिल में टीस थी देश-विदेश से लेकर दुनिया के तमाम मुद्दे और राजनीती पर चर्चा करता आ रहा हूँ लेकिन अपने गाँव के बारे में नहीं लिख पाता था, वो तो मेरी दीदी ने अनुरोध किया तो अपने गाँव पर चन्द शब्द लिख पाया हूँ, आप भी पढ़िए शायद अच्छा लगे, एक ऐसा इतिहास जो आज भी दफ़न हैं....

परिचय
एक ऐसे राजा का गाँव है जो निरकुंश नहीं था, एक दिलवालों का गाँव जो खुशियाँ मानना जानते है, एक ऐसे किसानो का गाँव जिन्हें पता है मिटटी से सोना कैसे उगाया जाता है, एक ऐसे व्यापारियों का गाँव जिन्हें पता है व्यपार पैसों से नहीं दिल से किया जाता है, एक ऐसे युवाओं का गाँव जिन्हें अपना मुकाम खुद तय करना आता है, एक ऐसे नौनिहालों का गाँव जिन्हें सपने को हकीकत में बदलना आता है, एक ऐसी अर्थव्यवस्था का गाँव जिन्हें आज भी मुहताज नहीं होना पड़ता किसी और के दया और भीख की, एक ऐसे प्रसाशन का गाँव जहाँ बिना डंडे के जोर पर कानून चलता है, एक ऐसा गाँव जहाँ साम्प्रदायिकता नाम की कोई चीज़ नहीं है, एक ऐसे नारी शक्ति का गाँव जिन्हें पता है देश बराबरी से चलता है ना की मर्दों से, एक ऐसे इतिहास का गाँव जिन्हें महाभारत काल में भी याद किया गया था. जी हाँ हम बात कर रहे है सोनबरसा राज की, कोशी के कछार पर खड़े अगर किसी गाँव को हँसते हुए देखना चाहते है तो आइये इस गाँव में आपको पता चल जाएगा कैसे बिहार की शोक नदी कहलाने के बावजूद कैसे यहाँ के लोगो ने इसका मुकबला करना सिखा है और किस तरह हसी ख़ुशी से रह रहे हैं।

सोनबरसा राज जैसा की नाम से ही स्पस्ट है, सोनबरसा = सोना ( ख़ुशी) + बरसा (वर्षा) यानी जहाँ खुशियों की वर्षा होती है ऐसा है; ये गाँव. और राज इसलिए क्योंकि ये राजा का गाँव है।

इतिहास -
आरंभ में सोनबरसा राज  क्षेत्र अंगुत्तरप कहलाता था, और उत्तर बिहार प्रसिद्ध वैशाली महाजनपद के सीमा पर स्थित था। अंग देश के शक्ति समाप्त होने के बाद यह मगध साम्राज्यवाद का शिकार हो गया, इसके आस पास के इलाके में मौर्य स्तम्भ मिलने से यह बात प्रमाणित होता है। सोनबरसा राज के सटे बिराटपुर गाँव में खुदाई के दौरान बोध धर्म के कुछ स्मृति चिन्ह मिले है जिससे ये भी कहा जा सकता है की यहाँ बोध धर्मं का भी प्रादुर्भाव रहा होगा। महाभारत के समय पांडव के अज्ञात वास के समय में विराटपुर गाँव का नाम पड़ता है जिससे यह भी साबित होता है की वो इस गाँव से गुजरे होंगे।
 

भौगोलिक स्थिति -

सोनबरसा राज सहरसा जिले का एक प्रमुख गाँव है जिसके उत्तर में सोहा और बिराटपुर, दक्षिण में पररिया, पश्चिम में सुगमा और कोशी नदी और पूरब में देहद गाँव हैं। सोनबरसा राज का कुल क्षेत्रफल ....... इतना है, समूचा गाँव एक समतल उपजाऊ क्षेत्र है, लेकिन जनसँख्या घनत्व होने के कारण इसके कुछ ही हिस्सों में खेती की जाती है, मौसमी फलो जैसे आम, और लीची और अमरुद के संग कही कही केले की खेती भी देखने को मिल जाती है. यहाँ की मिटटी चिकनी और दोमट है जो धान और गेहूं की फसल के उपयुक्त है, यहाँ साल में तीन फसल हो जाती है, कही कही दलहन के बिच, तिलहन फसल उगाने का भी मिल जाता है. हरेक साल बिहार का शोक कही जाने वाली नदी कोशी की विभीषिका से भी इस गाँव को दो चार होना पड़ता है, हरेक साल कोशी की बाद लीला कइयो को लील जाती है. हरेक वर्ष कम से कम १०-१५ लोगो को डूबने से मौत हो जाती है. साथ ही बाढ़ अपने साथ महामारी भी लाती और उचित इलाज़ के आभाव में आज भी यहाँ बच्चे दम तोड़ते दिखाई पड़ जाते है.

प्रमुख नदी -
बिहार का शोक कही जाए वाली कोशी नदी मुख्य रूप से इस गाँव के पश्चिमी छोर से होकर गुजरती है जो इस गाँव को अन्य पडोसी पश्चिमी गांवों के सीमा क्षेत्र का काम करती है. हरेक वर्ष इसकी विभीषिका जान माल के संग अर्थव्यवस्था को भी क्षति पहुंचती है।

जनसँख्या और साक्षरता -
वर्ष २०११ की जनसँख्या के अनुसार इस गाँव की कुल जनसँख्या ९६४५ है जिसमे पुरुष वर्ग की संख्या ५०९६ और महिलाओं की संख्या ४५४९ है।

प्रशासनिक विभाजन -
सोनबरसा राज प्रशासनिक तौर पर भी भरा पूरा है, गाँव में पुलिस थाना, अस्पताल, मवेशियों का अस्पताल, डाकघर, दो मध्य विद्यालय, एक उर्दू मध्य विद्यालय, एक उच्च विद्यालय और एक महाविद्यालय भी है. साथ ही साथ यह सोनबरसा राज गाँव सोनबरसा प्रखंड होने के नाते इसका खुद का प्रखंड मुख्यालय भी है।

शैक्षणिक संस्थान -

सिक्षा में मामले इस गाँव को आप एक मिशाल कह सकते है। आस पास के करीब पंद्रह गांवों का इसे पालनहार कह सकते है। आस पास के करीब १५-२० गांवो में उच्च विद्यालय नहीं होने के कारण यह उन सभी गांवों के सिक्षा का केंद्र बिंदु है. इसकी खासियत यह है की यहाँ शिक्षक ज्ञानी और महान है ही साथ ही साथ उनके पढ़ाने का ढंग भी इस तरह का है विद्यार्थी ज्यादा आकर्षित होते है, एक तरह से आप कह सकते है की आसपास के लगभग १५-२० गांवों के सिक्षा का गढ़ है ये गाँव।
मध्य विद्यालय - ३ ( दो हिंदी मध्य विद्यालय और एक उर्दू मध्य विद्यालय )
उच्च विद्यालय - १ ( आठवी से बारहवी तक की पढाई)
महाविद्यालय -  १ ( बारहवीं और स्नातक की पढाई के लिए )
साथ ही साथ यहाँ तीन चार पब्लिक स्कूल भी है जो शिक्षा के परचम को दूर दूर तक फैला रहा है.
कोंचिंग संस्थानों की भी यहाँ कमी नहीं है जो गुणवत्ता पूर्ण सिक्षा मुहैया करवाते है वो भी कम शुल्को पर. यहाँ के स्कुलो में राष्ट्रीय अनुसंधान, सैक्षानिक परिषद् के द्वारा मान्य पाठ्यक्रम की पढाई होती है, लेकिन कुछ पब्लिक स्कुलो में केंद्रीय माध्यमिक सिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम भी पढाया जाता है।

पर्यटन स्थल - छोटा गाँव के होने के वाबजूद भी सोनबरसा अपने आप में कई महत्वपूर्ण स्थानों को सिमटे बैठा है जो ऐतिहासिक महत्व तो रखता ही है साथ ही साथ हमें अद्भुत वास्तुकला का नमूना भी दिखता है।

१) राज-विलास  या महाराज परिसर -  प्रकृति के गोद में बसा महाराजाधिराज सर हरिबल्लभ नारायण सिंह का यह महल इतिहास को तो दिखता ही है साथ ही साथ वास्तुकला का बेजोड़ नमूना भी पेश करता है, सरक्षण के आभाव में आज ये किला बर्बादी के कगार पर खड़ा जो इसके लिए बड़ी ही चिंता का विषय है। एक छोटे से गाँव के रजा होने के वाबजूद इन्हें सर की उपाधि से नवाजा गया था ये हमरे लिए गर्व की बात है. इतिहास के बेहतरीन पन्नो पर अंकित ये महल आज अपनी दुर्दशा पर खुद आँशु बहा रहा है. जरूरत है एक भागीरथी प्रयास की जो इसे फिर से संवार सके. महराजा परिसर कोशी नदी के किनारे बसे इस किले की अनुपम छटा देखते ही बनती है, बिना सीमेंट और बालू के सिर्फ खड़िया और कत्थे के बलबूते कड़ी की गयी इस आलिशान महल का सोंदर्य आज भी कुछ कम नहीं है, नक्काशी और आधुनिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना कुल मिलकर कह सकते है आप इसे।
२) उच्च विधालय सोनबरसा - यूँ कहने को तो ये सिक्षा का मंदिर है, लेकिन महाराजाधिराज के कर-कमलो से बना होने कारण ये और भी पूजनीय और दर्शनीय है, इसकी भव्यता और नक्काशी किस भी तरह महल से कम नहीं है, दो  मंजिले इस भवन के निर्माण में वास्तु विशेषज्ञों ने अपना जैसे संपूर्ण ज्ञान लगा दिया हो। पुरे ५००० वर्ग मीटर से भी ज्यादा में फैले इस विद्यालय का खुद का दो दो खेल के मैदान और आधुनिक सुविधाओ से युक्त एक व्ययाम शाला है. इस विद्यालय का गौरव इस लिहाज से भी बढ़ जाता है क्योंकि पुरे बिहार में भागलपुर के बाद सिर्फ यही एक गाँव है जिसमे आधुनिक व्यायाम शाला होने का गौरव प्राप्त है.
३) रानी सती मंदिर -  २०वीं के सदी के प्रारंभ में इस गाँव में प्रवासी माड़वारियो का आगमन हुआ जो आज भी इस गाँव में देखने को मिल जाएंगे में से एक ने इस मंदिर का निर्माण किया. अति भव्य इस मंदिर में माँ रानी सती की प्रतिमा विराजमान है जो स्वेत संगमरमर के मंदिर में विराजमान है, धर्मार्थ के लिए ये मंदिर परिसर रानी सती विद्या मंदिर को दिया गया है जिससे गाँव के बच्चे कम शुल्क में लाभान्वित होते है. रानी सती मंदिर की भव्य छटा इस मंदिर में देखते ही बनती है। प्रातः और सायं काल में प्रार्थना के समय श्रधालुओ की भीड़ मंदिर परिसर में देखते ही बनती है. खास त्योहारों और पर्वो के मौको पर भी यहाँ अच्छी भीड़ जुटती है।
४) धर्म-स्थान - सोनबरसा राज की विसेषता यह भी है की यहाँ मंदिर गली कुचो में ना होकर एक ही जगह सारे मंदिर अवस्थित है, इस मंदिर समूह को धर्म स्थान कहा जाता है. यहाँ विभिन्न देवी-देवताओं की करीब पाँच से ज्यादा मंदिर है जिसमे दुर्गा माँ का प्रांगन कुछ ज्यादा ही विशाल है। नवरात्रों और काली पूजा में प्रमुख रूप से भीड़ जमा होती है और मेले का आयोजन किया जाता है. मंदिर से सटा ही राजाओ के ज़माने के एक पोखर भी है जो इस मंदिर परिसर की महत्ता और भी बढ़ा देती है।
५) मुक्ति-स्थान -  पर्यटन स्थल के रूप में तो नहीं लेकिन इसका जिक्र यहाँ पर इसलिए हो रहा है की जो भी इस गाँव में आता है इस जगह को एक बार देखना जरुर चाहेगा. हिन्दू-मुश्लिम के परस्पर भाई चारे के रूप में विख्यात यह स्थान हिन्दू मुश्लिम के सोह्रद का प्रतिक है, यह संभवतया पहली जगह है जहाँ हिन्दुओ का शमशान और कब्रिस्तान एक जगह है। कोशी नदी के किनारे बसे इस मुक्ति धाम की प्राकृतिक छटा भी देखने को बनती है, इस जगह पर आ कर भी दर का अनुभव नहीं होता अपितु एक अजीब जी सुखद अनुभूति होती है.
६) कोशी का किनारा - कोशी का यह रमणीय किनारा किसी भी मायने में यहाँ के लोगो को गंगा की अनुभूति से कम सुख नहीं देता है, प्रकृति के गोद के बीच गुजरती कोशी की शांत धारा देखते ही बनती है. ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया हो।

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