Thursday, February 16, 2012

भ्रस्टाचार की रफ़्तार...

गुरुवार को अखबार में लालू की फोटो मुख्य पृष्ठ पर देख नज़र ठहर गयी, चुकी खबर लालू जी की थी और भी मुख्य पृष्ठ पर तो यह सोचकर की खबर बिहार की होगी पढने बैठ गया, जों-जों खबर पढता गया उत्सुकता और आश्चर्य दोनों सावन के मेघ की तरह बढ़ता गया। और खबर के अंत तक जो बात ठीक-ठीक समझ में आई उसको अगर एक शब्द में कहे तो वो था " भ्रस्टाचार की रफ़्तार"।


वैसे खबर पर गौर करे तो वो बिहार के बहुचर्चित घोटाले 'चारा घोटाला' से सम्बंधित था जिसका वृतांत अगर सही सही लिखा जाय तो यह आजाद भारत में भ्रस्टाचार का प्रतिनिधि उदहारण बन सकता है। खबर थी घोटाले में गुरवार को सीबीआई की आदालत में एक आरोप पत्र दाखिल किया गया जिसमे लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्रा, ध्रुव भगत और उनके कुछ सहियोगियो को इस घोटाले में आरोपी बनाया गया है। वैसे यह आरोप पत्र १९९४-१९९६ के बीच ४६ लाख रूपये के चारे घोटाले का है। यह आरोप पत्र यह भी बताता है की ताकतवर लोगों के लिए भारत में भ्रस्टाचार की गति कितनी तेज है। लगभग १७ साल सिर्फ आरोप पत्र दाखिल होने में लग गए तो कब मुकदमा चलेगा और कब सुनवाई होगी और कब सजा सुनाई जायेगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। वैसे भारत की न्याय-व्यवस्था से हर कोई परिचित है, ना तो यहाँ न्यायालयो की कमी है ना ही न्यायाधिशो की। वैसे भी बड़े लोगो का मामला हमेशा से ऊँची और ऊँची अदालतों में चलता रहता है, चलता रहता है, और कभी कभी तो ऐसा होता है की फैसला आते आते उम्र कम पड़ जाती है। कुछ ऐसा ही वाकया इस केस में भी हुआ है भोलाराम तूफानी, और राधो सिंह अब इस दुनिया को छोड़ चले है, शायद अब ऊपर की अदालत में उनका फैसला हो। वैसे ये बात अलग है की लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्रा इस घोटाले के सिलसिले में कई बार जेल भी जा जुके है, लालू जी के लिए ये तो इतना महंगा पड़ा की एक बार उन्हें मुख्यमंत्री के पद से भी हाथ धोना पड़ गया था। अब खुदा ना खास्ते कल को न्यायधीश बिक गए या फिर किसी और कारण से ये निर्दोष करार कर दिए गए तो क्या ? ये बेमतलब से इतने दिनों से इसे ढो रहे थे, बेकार में ही इन्होने बिना किसी वजह के मुख्यमंत्री का पद खो बैठे थे।
वैसे देखा जाय तो गलती हमरी है। १९८५ में अगर हमारी सरकार और कानून कैग की उस रिपोर्ट को गंभीरता से ले लेती तो ये ४५-४६ लाख का घोटाला आज करीब दस अरब तक नहीं पहुँचता। वैसे भारत में देखा हमेशा से देखा गया है कानून पूंजीपतियों और राजनेताओ की गुलाम रही है, चाँदी के जूते बड़े बड़े कानून का मुंह बंद कर देती है। और उस समय लालू जी सत्ता में थे और उनके कुछ सहियोगी केंद्र में इसलिए यह प्रकरण एक तरह से दब गया था या रुक रुक कर चल रहा था। लेकिन अब ना तो जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री है और ना ही लालू का राजीनीति में दबदबा है, बिहार से उनका राजनैतिक पतन तो हो ही गया है केंद्र में भी कुछ खास पहुँच नहीं दिखाई दे रही है, तो हो सकता है की अब इस मामले के निपटारे में तेजी आये और फैसला जल्द हो।
लेकिन अभी भी हमें जरुरत ये नहीं है की चारा घोटाले पर फैसला जल्द आ जाए या, सीबीआई किसी को भी झूठ मुठ फसाकर इस फ़ाइल को जल्द से जल्द बंद की जाय, हमें जरुरत है एक प्रभावी कानून की जो भ्रस्टाचार को रोकने में प्रभावी हो।
मेरा इस लेख का मैथिली अनुवाद, मैथिली के चर्चित न्यूज़ पोर्टल इसमाद.कॉम पर भी छप चूका है, आप इस लिंक का उपयोग कर इसे पढ़ सकते है... भ्रष्‍टाचार क रफ़्तार आ लालू